बांग्लादेश से तनाव के बीच चीन भी देने लगा भारत को टेंशन, इस्लामिक नेताओं को बुलाया
- जमात-ए-इस्लामी समेत कई कट्टरपंथी धड़े भी सरकार का हिस्सा बन गए हैं और हिंदुओं के खिलाफ वहां हिंसा का दौर लगातार जारी है। इसके चलते भी भारत के साथ बांग्लादेश के रिश्तों में खटास पैदा हुई है। इस बीच दोनों देशों के बीच पैदा हुई फॉल्टलाइन का फायदा उठाने में चीन जुट गया है।
बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार को बेदखल किए जाने और कट्टरपंथी तत्वों के सत्ता में आने के बाद से भारत के साथ रिश्ते खराब हुए हैं। शेख हसीना 5 अगस्त को ढाका से निकलकर भारत आ गई थीं तो वहीं मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार वहां सत्ता संभाले हुए है। उनके साथ जमात-ए-इस्लामी समेत कई कट्टरपंथी धड़े भी सरकार का हिस्सा बन गए हैं और हिंदुओं के खिलाफ वहां हिंसा का दौर लगातार जारी है। इसके चलते भी भारत के साथ बांग्लादेश के रिश्तों में खटास पैदा हुई है। इस बीच दोनों देशों के बीच पैदा हुई फॉल्टलाइन का फायदा उठाने में चीन जुट गया है।
फिलहाल बांग्लादेश की इस्लामिक पार्टियों के नेता चीन के दौरे पर हैं और वहां कम्युनिस्ट पार्टी की मेहमाननवाजी का आनंद ले रहे हैं। जानकारों का मानना है कि अफगानिस्तान, ईरान जैसे देशों को अपने पक्ष में लाने की कोशिश में जुटा चीन अब बांग्लादेश को भी अपने पाले में रखना चाहता है। इसी रणनीति के तहत उसने बांग्लादेश की इस्लामिक पार्टियों के नेताओं को आमंत्रित किया है। वह चाहता है कि भारत के साथ उपजे तनाव का फायदा उठाया जाए और यही समय है जब उन्हें साधा जा सकता है। शेख हसीना की सरकार को भारत का करीबी माना जा रहा था, लेकिन अब सत्ता पलटने के बाद बांग्लादेश का रुख भी पलट रहा है।
बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के एक नेता तो यहां तक कह चुके हैं कि बांग्लादेश का निर्माण ही गलत था और यह भारत के चलते हुआ था। यही नहीं नई सरकार का रुख यहां तक बदल चुका है कि बंग बंधु मुजीबर रहमान की तस्वीरों को सरकारी दफ्तरों से हटाया गया है। उनकी मूर्ति को तोड़ डाला गया और राष्ट्रगान एवं झंडे तक में बदलाव की मांग अब उठ रही है। अब यही तत्व फिलहाल चीन की सैर कर रहे हैं। चीन जाने वालों में जमात-ए-इस्लामी के 14 नेता शामिल हैं। यह एक कट्टरपंथी संगठन है, जो भारत के खिलाफ अपनी राय के लिए जाना जाता है।
चीन जाने वाले जमात-ए-इस्लामी के नेताओं में पूर्व सांसद सैयद अब्दुल्ला मोहम्मद ताहिर भी शामिल हैं। चीन के जमात-ए-इस्लामी और बीएनपी के साथ पुराने रिश्ते रहे हैं। वैचारिक तौर पर अवामी लीग की भारत से करीबी रही है। इसी के चलते चीन के संबंध उससे सहज नहीं रहे। दिलचस्प बात है कि बांग्लादेश के कट्टरपंथियों ने कभी भी चीन में उइगुर मुस्लिमों के उत्पीड़न पर बात नहीं की है। वहीं चीन की एक रणनीति यह भी है कि बांग्लादेश के नेताओं को साध कर वहां ठेके हासिल किए जा सकें और आर्थिक हितों की पूर्ति की जाए। पिछले दिनों ढाका के चीनी राजदूत ने इस्लामिक पार्टियों के नेताओं को दावत भी दी थी।