'भारत माता की जय' के नारे लगाना नफरती भाषण है? कर्नाटक हाई कोर्ट ने क्या कहा
- अदालत ने ‘भारत माता की जय’ नारे को घृणा भाषण या धार्मिक वैमनस्य को बढ़ावा देने के लिए सही नहीं माना । यह फैसला धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले भाषण की परिभाषा को साफ करने में अहम है।
कर्नाटक हाई कोर्ट ने विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच शत्रुता को रोकने के लिए दंडात्मक प्रावधानों का दुरुपयोग करने की निंदा की है। साथ ही, भारत माता की जय नारा लगाने के आरोप में 5 लोगों के खिलाफ दर्ज FIR को भी रद्द कर दिया है। यह जानकारी एक वकील ने शुक्रवार को दी। कर्नाटक के उल्लाल तालुक के निवासियों पर भारत माता की जय के नारे लगाने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 153A के तहत मामला दर्ज किया गया था। अदालत ने इस नारे को घृणा भाषण या धार्मिक वैमनस्य को बढ़ावा देने के लिए सही नहीं माना । यह फैसला धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले भाषण की परिभाषा को साफ करने में अहम है।
जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने अपने फैसले में कहा कि यह मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए का अभूतपूर्व दुरुपयोग है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 153A के तहत आरोप साबित करने के लिए आवश्यक कोई भी तत्व इस मामले में मौजूद नहीं थे। उन्होंने कहा कि यह मामला धारा 153ए का क्लासिक दुरुपयोग है और यह केवल एक प्रतिकार के रूप में दर्ज किया गया था। उन्होंने कहा कि भारत माता की जय का नारा लगाना किसी भी तरह से धार्मिक वैमनस्य को बढ़ावा नहीं देता है, बल्कि यह राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देता है।
'वैमनस्य को बढ़ावा देने वाला यह नारा नहीं'
न्यायाधीश ने कहा, 'भारत माता की जय के नारे की जांच की इजाजत देना यह गलत धारणा को बढ़ावा देने के समान होगा कि ऐसे नारे धार्मिक समूहों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देते हैं।' यह बयान एक महत्वपूर्ण मामले में आया है, जहां 5 लोगों पर आरोप था कि उन्होंने भारत माता की जय का नारा लगाया। इसे अदालत ने घृणा भाषण या धार्मिक वैमनस्य को बढ़ावा देने के लिए सही नहीं माना। सीनियर वकील एम अरुणा श्याम और अधिवक्ता ई सुयोग हेराले याचिकाकर्ताओं की ओर से व अतिरिक्त राज्य लोक अभियोजक बी एन जगदीश राज्य की ओर से पेश हुए थे।