एकनाथ शिंदे ने फिर गांव में डाला डेरा, विभाग बंटने के बाद किस चीज पर नाराजगी; इनसाइड स्टोरी
- एकनाथ शिंदे के फिर से गांव पहुंचने पर चर्चाएं तेज हैं। सोमवार को अजित पवार अपना कामकाज संभालने जा रहे हैं तो वहीं एकनाथ शिंदे गांव पहुंच गए हैं। यह सामान्य बात नहीं हो सकती। दरअसल विभागों के बंटवारे के बाद अब महाराष्ट्र के तीन सत्ताधारी दलों के बीच प्रभारी मंत्रियों को लेकर संघर्ष की स्थिति है।
महाराष्ट्र के ढाई साल सीएम रहे और अब उपमुख्यमंत्री की भूमिका संभाल रहे एकनाथ शिंदे रविवार को फिर से अपने पैतृक गांव पहुंचे। वह डिप्टी सीएम बनने के बाद पहली बार सतारा स्थिति दरेगांव पहुंचे। वह अपने बेटे श्रीकांत शिंदे के साथ हेलीपैड पर उतरे, जहां अधिकारियों और स्थानीय नेताओं ने उनका स्वागत किया। इस दौरान ग्रामीण भी मौजूद थे। वह तीन दिनों के लिए यहां आए हैं और इसे विश्राम दौरा कहा जा रहा है। इसी के चलते यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या एक बार फिर से वह भाजपा और देवेंद्र फडणवीस सरकार पर दबाव बनाने के लिए यहां पहुंचे हैं। वह सरकार गठन से पहले भी अपने पैतृक गांव पहुंचे थे और यहां तीन दिन ठहरे थे। तब कहा गया था कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए यहां आए हैं।
तब भी यही चर्चाएं थीं कि वह नाराज हैं और मुख्यमंत्री पद या फिर कम से कम होम मिनिस्ट्री अपने लिए चाहते हैं। अब एक बार फिर से तीन दिन के लिए गांव पहुंचने से कयास तेज हैं। डिप्टी सीएम का तमगा और तीन भारी-भरकम मंत्रालय संभालने वाले एकनाथ शिंदे का यूं तीन दिनों के लिए गांव पहुंचना सामान्य बात नहीं है। चर्चा है कि वह प्रभारी मंत्री बनाने को लेकर मची खींचतान के बीच दबाव बनाने के लिए यहां पहुंचे हैं। एकनाथ शिंदे भाजपा नेतृत्व के सामने इसी तरह अपना रुख पेश करते रहे हैं। हालांकि वह सार्वजनिक तौर पर लगातार कहते रहे हैं कि हमारे बीच सब कुछ सही है और किसी भी चीज के लिए तनाव नहीं है।
अजित पवार संभालने जा रहे काम, फिर एकनाथ शिंदे क्यों नहीं?
यही वजह है कि एकनाथ शिंदे के फिर से गांव पहुंचने पर चर्चाएं तेज हैं। सोमवार को अजित पवार अपना कामकाज संभालने जा रहे हैं तो वहीं एकनाथ शिंदे गांव पहुंच गए हैं। यह सामान्य बात नहीं हो सकती। दरअसल विभागों के बंटवारे के बाद अब महाराष्ट्र के तीन सत्ताधारी दलों के बीच प्रभारी मंत्रियों को लेकर संघर्ष की स्थिति है। राज्य में कुल 42 मंत्री बनाए गए हैं। इनमें से ज्यादातर लोग चाहते हैं कि उन्हें किसी जिले का प्रभारी मंत्री बना दिया जाए। खासतौर पर नेता ऐसे जिलों का प्रभारी मंत्री बनना चाहते हैं, जहां उनका जनाधार है। इसका कारण यह है कि प्रभारी मंत्री के पास जिले की योजना और विकास परिषद के फंड का नियंत्रण होता है। यह फंड शहर के विकास और सौंदर्यीकरण के लिए प्रयोग होता है।
दो जिलों पर तो खासतौर पर तेज है जंग
खासतौर पर संभाजीनगर और रायगढ़ जैसे जिलों के लिए प्रतिस्पर्धा तेज है। जैसे रायगढ़ में शिवसेना के नेता भारत गोगावाले दावा ठोक रहे हैं तो वहीं एनसीपी की लीडर अदिति तटकरे का भी यहां दावा है। गोगावाले ने कहा कि रायगढ़ में तीन मंत्री हैं। पिछली बार प्रभारी मंत्री का पद शिवसेना को मिला था। इस बार मैं यहां से शिवसेना का मंत्री हूं और मेरा स्वाभाविक दावा इस पद पर है। ऐसी ही स्थिति संभाजीनगर को लेकर भी है। कई अन्य जिलों में भी प्रभारी मंत्री को लेकर संघर्ष की स्थिति है और कुल 11 जिलों में खींचतान जारी है।