BJP के लिए कठिन होती जा रही महाराष्ट्र में सीट शेयरिंग की गणित, शिंदे-पवार का बढ़ रहा दबाव
महाराष्ट्र में भाजपा के लिए घटक दलों को साथ रखना इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि लोकसभा चुनाव में भगवा खेमे का यहां काफी निराशाजनक प्रदर्शन रहा था। 48 में से सिर्फ 17 सीटों पर जीत मिली थी।
इस साल के अंत में महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इसके लिए सत्तारूढ़ गठबंधन में सीटों के बंटवारे पर बातचीत अभी आधिकारिक रूप से शुरू नहीं हुई है। हालांकि, सीटें के लिए घटक दलों के बीच खींचतान शुरू हो चुकी है। महाराष्ट्र विधानसभा में 288 सीटें हैं। एनडीए में शामिल घटक दलों की मांगों को देखें तो इस गणित को सुलझाना आसान नहीं दिख रहा है।
एनडीटीवी ने अपनी एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा है कि भाजपा कम से कम 150 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। वहीं, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना कम से कम 100 सीटें चाहिए। जबकि उपमुख्यमंत्री अजीत पवार की एनसीपी कम से कम 80 सीटें चाहती है। न्यूनतम आंकड़ों को भी एक साथ जोड़ें तो यह संख्या विधानसभा की कुल संख्या से कम से कम 40 अधिक है। यही कारण है कि घटक दलों के बीच बातचीत का दौर शुरू होने वाला है।
महाराष्ट्र में भाजपा के लिए घटक दलों को साथ रखना इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि लोकसभा चुनाव में भगवा खेमे का यहां काफी निराशाजनक प्रदर्शन रहा था। 48 में से सिर्फ 17 सीटों पर जीत मिली थी। वहीं, महा विकास अघाड़ी को 30 सीटों पर शानदार जीत मिली थी। विशेषज्ञों का कहना है कि चुनावों के लिए सीट बंटवारे को लेकर असहमति ने एनडीए के खराब प्रदर्शन में अहम भूमिका निभाई।
सूत्रों ने कहा कि अजित पवार ने गुरुवार को नई दिल्ली में भाजपा के साथी उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस के साथ गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और सीटों के बंटवारे पर चर्चा हुई। उन्होंने कहा कि जूनियर पवार पर अपनी पार्टी के नेताओं का दबाव है कि वे 80-90 सीटों से कम पर समझौता न करें। उनका तर्क है कि उन्हें उन सभी 54 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए, जिन्हें अविभाजित एनसीपी ने 2019 के विधानसभा चुनावों में जीते थे। आपको बता दें कि शरद पवार के नेतृत्व वाली अविभाजित एनसीपी ने 2019 के चुनावों में कांग्रेस के साथ गठबंधन में 120 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ा था।
सत्तारूढ़ गठबंधन के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि अजित पवार गुट जानता है कि वह मुश्किल स्थिति में है। लोकसभा चुनाव में शरद पवार गुट ने आठ सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं, उन्हें सिर्फ एक लोकसभा सीट पर सफलता मिली। बारामती सीट भी हार गई। यहां अजित पवार ने अपनी पत्नी सुनेत्रा को अपनी चचेरी बहन और शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के खिलाफ खड़ा करके प्रतिष्ठा की लड़ाई बना दिया था।
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद से ही अटकलें लगाई जा रही हैं कि अजित पवार की पार्टी के कई नेता पिछले साल जुलाई में एनसीपी के विभाजन के बाद वापस लौटने के लिए शरद पवार के गुट के संपर्क में हैं। इससे अजित पवार पर यह दबाव बढ़ रहा है कि वह यह सुनिश्चित करें कि पार्टी पर्याप्त उम्मीदवार उतार सके ताकि असंतोष को कम से कम रखा जा सके।
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के करीबी माने जाने वाले साप्ताहिक पत्रिका ऑर्गनाइजर में छपे एक लेख में भाजपा की अजीत पवार की एनसीपी के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ने की आलोचना की गई थी।
हालांकि सहयोगी दलों ने ऐसी किसी भी असंतोष को खारिज कर दिया है। इस महीने की शुरुआत में विधान परिषद चुनाव में गठबंधन ने शानदार प्रदर्शन किया। भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री नारायण राणे शुक्रवार को फिर से हलचल मचाते दिखे। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब उनसे पूछा गया कि विधानसभा चुनाव में भाजपा कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी तो उन्होंने मजाक में कहा, "मैं चाहूंगा कि भाजपा सभी 288 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे।"
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