ब्रांड नेम पर सिंबल भारी, असली-नकली के चक्कर में कैसे 'निपट' गई महा विकास अघाड़ी
- कानूनी लड़ाई और चुनाव आयोग के फैसलों के बावजूद, जनता ने अपने वोट से असली-नकली की तस्वीर साफ कर दी। विधानसभा चुनाव के नतीजों ने दिखा दिया कि सिर्फ 'ब्रांड नेम' काफी नहीं है, असली लड़ाई चुनावी सिंबल और जमीनी पकड़ की है।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 के नतीजों ने न केवल सत्ता के समीकरण बदले बल्कि यह भी तय कर दिया कि असली शिवसेना और असली एनसीपी कौन है। कानूनी लड़ाई और चुनाव आयोग के फैसलों के बावजूद, जनता ने अपने वोट से असली-नकली की तस्वीर साफ कर दी। विधानसभा चुनाव के नतीजों ने दिखा दिया कि सिर्फ 'ब्रांड नेम' काफी नहीं है, असली लड़ाई चुनावी सिंबल और जमीनी पकड़ की है।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 के नतीजों ने यह तय कर दिया कि असली शिवसेना और असली एनसीपी कौन है, दोनों पार्टियों की विरासत दांव पर थी। लोकसभा चुनाव के बाद शिवसेना और एनसीपी के दोनों धड़े आमने-सामने थे। कानूनी लड़ाई के बाद शिवसेना का नाम और धनुष-बाण का चुनाव चिह्न शिंदे गुट के पास है, जबकि अजित पवार के गुट को एनसीपी का चिह्न घड़ी मिला। उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) मशाल और शरद पवार की एनसीपी (एसपी) तुरही बजाते आदमी के चिह्न के साथ मैदान में उतरी थी। हालांकि ठाकरे और शरद पवार का ब्रांड नेम उनके गुटों के पास है, लेकिन नतीजों ने साबित कर दिया कि चुनावी सिंबल और संगठन ब्रांड नेम पर भारी पड़े।
एनसीपी की विरासत पर हुआ बारामती में फैसला
एनसीपी के दोनों गुटों की सबसे बड़ी परीक्षा बारामती सीट पर हुई। डिप्टी सीएम अजित पवार यहां से लगातार आठवीं बार चुनाव लड़ रहे थे और उनका मुकाबला एनसीपी (शरद पवार गुट) के युगेंद्र पवार से था। युगेंद्र, अजित पवार के भतीजे और शरद पवार के पोते हैं। हालांकि, इस सीट पर अजित पवार ने भारी जीत दर्ज की। यह बात यहां गौर करने वाली है कि यह सीट 1967 से पवार परिवार के कब्जे में है और हमेशा से शरद पवार गुट के लिए एक गौरव रही है। वहीं लोकसभा चुनाव में इसी सीट से शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार को हराया था। लेकिन विधानसभा चुनाव में अजित पवार की जीत ने यह साबित कर दिया कि सिंबल और संगठन शक्ति के दम पर असली एनसीपी का दावा उन्हीं का है।
शिवसेना में ठाकरे बनाम शिंदे की लड़ाई
शिवसेना के दोनों गुटों के बीच सबसे दिलचस्प मुकाबला कोपरी-पचपाखड़ी सीट पर हुआ, जहां मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने अपने गुरु आनंद दिघे के भतीजे केदार दिघे को हराया। शिंदे गुट के पास शिवसेना का नाम और धनुष-बाण का चुनाव चिह्न है, जबकि ठाकरे गुट मशाल के साथ मैदान में था। इस चुनाव में डेढ़ दर्जन सीटों पर सीधा मुकाबला ठाकरे और शिंदे गुट की शिवसेना के बीच हुआ। नतीजों ने साफ कर दिया कि जनता के लिए 'शिवसेना' का मतलब अब सिर्फ ब्रांड ठाकरे नहीं रहा। शिंदे गुट ने अधिक सीटें जीतकर यह दिखा दिया कि असली लड़ाई संगठन और सिंबल के दम पर होती है।
ब्रांड नेम पर भारी पड़ा सिंबल
नतीजों के बाद ऐसा लग रहा है कि महा विकास अघाड़ी (एमवीए) बिखर सी गई है। इस गठबंधन में शिवसेना (यूबीटी), एनसीपी (एसपी), और कांग्रेस शामिल थीं। कांग्रेस और ठाकरे गुट के प्रदर्शन के बावजूद, एनसीपी के दोनों गुटों की आपसी लड़ाई और शिवसेना का विभाजन एमवीए के लिए घातक साबित हुआ। इसके साथ ही चुनाव नतीजों ने यह दिखा दिया कि जनता के लिए अब पार्टी की विरासत से ज्यादा महत्वपूर्ण उनका संगठनात्मक दमखम और चुनाव चिह्न है। ब्रांड नेम के मुकाबले सिंबल की अहमियत ने न केवल शरद पवार और उद्धव ठाकरे के लिए चुनौतियां बढ़ा दी हैं, बल्कि यह भी बता दिया कि महाराष्ट्र की राजनीति अब पूरी तरह नए दौर में प्रवेश कर चुकी है।