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शिवराज का ही फैसला बना कमलनाथ की खुशी की वजह, BJP को पड़ गया भारी

मध्य प्रदेश में शहरी निकाय चुनाव के बाद भाजपा एक तरफ निगमों में पार्षदों की संख्या और नगर पालिका, नगर परिषद में मिली कामयाबी का जश्न मना रही है तो कांग्रेस के कैंप में भी खुशी की लहर है।

Sudhir Jha लाइव हिन्दुस्तान, भोपालThu, 21 July 2022 10:59 AM
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मध्य प्रदेश में शहरी निकाय चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) एक तरफ निगमों में पार्षदों की संख्या और नगर पालिका, नगर परिषद में मिली कामयाबी का जश्न मना रही है तो कांग्रेस के कैंप में भी खुशी की लहर है। हो भी क्यों ना, छत्तीसगढ़ अलग होने के बाद पहली बार मध्य प्रदेश के 5 शहरों में कांग्रेस पार्टी को मेयर पद हासिल हुआ है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ ग्वालियर से लेकर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के संसदीय क्षेत्र मुरैना तक में भगवा पार्टी को कमलनाथ की अगुआई वाली कांग्रेस ने मात दी है। हालांकि, जिन 5 शहरों में कांग्रेस ने मेयर का पद जीता है, उनमें से 3 में बीजेपी के पार्षदों की संख्या ज्यादा है। अब शिवराज सिंह के 2 साल पुराने एक फैसले की चर्चा हो रही है और कहा जा रहा है कि यदि उन्होंने कमलनाथ के फैसले को ना बदला होता तो आज बीजेपी को 9 की जगह कम से कम 14 शहरों में मेयर पद मिल गया होता।   

बुधवार को प्रदेश के जिन 5 नगर निगम में वोटों की गिनती हुई, उनमें से दो में बीजेपी ने जीत हासिल की तो दो में कांग्रेस ने मेयर का पद जीता। वहीं शहर में निर्दलीय महापौर बनने जा रहा है। कुल 16 नगर निगम में हुए चुनाव में भाजपा को 9 मेयर पद हासिल हुए हैं। कांग्रेस को 5, आम आदमी पार्टी को एक शहर में मेयर पद मिला है। कांग्रेस पार्टी ने छिंदवाड़ा, जबलपुर, छिंदवाड़ा, मुरैना, रीवा में महापौर चुनाव में जीत हासिल की है तो बीजेपी को देवास, रतलाम, भोपाल, इंदौर, खंडवा, उज्जैन, सागर, सतना और बुरहानपुर में सफलता मिली है। 

बीजेपी ने जीते ज्यादा वार्ड
हालांकि, जिन 5 शहरों में कांग्रेस ने मेयर पद जीता है, उनमें से 3 में बीजेपी के पार्षदों की संख्या ज्यादा है। रीवा में कांग्रेस को भले ही मेयर पद मिला लेकिन यहां कुल 45 वार्ड में से 18 में भाजपा ने जीत हासिल की है तो कांग्रेस को 16 में जीत मिली। जबलपुर में मेयर का चुनाव कांग्रेस ने जीता लेकिन यहां के 79 वार्ड में से 44 में बीजेपी को जीत मिली तो कांग्रेस को 26 और अन्य को 9 वार्ड में कामयाबी मिली। सिंधिया के गढ़ ग्वालियर में भले ही माहापौर का पद बीजेपी को नहीं मिला लेकिन यहां भी 66 में से 34 पार्षद भगवा दल के हैं। कांग्रेस के 25  और अन्य के 7 पार्षद प्रत्याशी जीते। मुरैना और छिंदवाड़ा में ही कांग्रेस ने मेयर पद के साथ ही वार्डों की संख्या में भी बीजेपी को मात दी है। कटनी में जहां निर्दलीय (भाजपा बागी) ने चुनाव जीता वहां 45 में से 27 वार्ड में कमल खिला है।  

कमलनाथ के फैसले को शिवराज ने पलटा 
दरअसल, शिवराज सिंह चौहान ने ही 2 साल पहले कमलनाथ के फैसले को पलटते हुए मध्य प्रदेश में मेयर पद के लिए सीधा चुनाव कराने का निर्णय लिया था। 2015 में एक भी मेयर पद हासिल ना कर सकी कांग्रेस जब 2018 में सत्ता में आई तो कमलनाथ ने मध्य प्रदेश में मेयर पद के लिए प्रत्यक्ष चुनाव की प्रथा बदल दी और अध्यादेश जारी किया कि जीते हुए पार्षद ही अपने बीच से मेयर का चुनाव करेंगे। भारतीय जनता पार्टी ने इसका जमकर विरोध किया। 2020 में सिंधिया की बगावत के बाद जब शिवराज सत्ता में आए तो उन्होंने कमलनाथ के फैसले को रद्द कर दिया और कहा कि मेयर का चुनाव जनता ही करेगी। अब शिवराज के इसी फैसले का जिक्र करते हुए कहा जा रहा है कि यदि कमलनाथ के फॉर्मुले पर चुनाव हुआ होता तो बीजेपी के कम से कम 14 मेयर होते, जबकि कांग्रेस को 2 से ही संतोष करना पड़ता। 

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