ठगी के लिए झारखंड के ठग कर रहे चैट जीपीटी का इस्तेमाल, आपको चौंका देगा उनका हाईटेक प्लान
- झारखंड के साइबर अपराधी अब फर्जी ऐप तैयार करना भी सीख गए हैं। ये फर्जी ऐप एंटी वायरस की पकड़ में न आए, इसकी तोड़ भी साइबर अपराधियों ने निकाल ली है। आइए जानते हैं कि वो इसे किस तरह से इस्तेमाल करते हैं।
झारखंड के साइबर अपराधी अब फर्जी ऐप तैयार करना भी सीख गए हैं। ये फर्जी ऐप एंटी वायरस की पकड़ में न आए, इसकी तोड़ भी साइबर अपराधियों ने निकाल ली है। इसका खुलासा जामताड़ा में डीके बोस के नाम से 11 करोड़ से अधिक की ठगी कर चुके साइबर अपराधियों के समूह की गिरफ्तारी के बाद हुआ।
खुलासे के बाद राज्य सीआईडी मुख्यालय और केंद्रीय गृह मंत्रालय की संस्था आई4सी के द्वारा नए साइबर ठगी के मॉडल की तोड़ निकालने की कोशिश शुरू हो गई है। जामताड़ा पुलिस ने मो महबूब आलम, सफुद्दीन अंसारी, आरिफ, जसीम, एसके बेलाल, अजय मंडल को गिरफ्तार किया था। पूछताछ में पता चला कि सभी पहले से साइबर अपराध से जुड़े थे। अप्रैल 2023 में सभी एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के संपर्क में आए। उसी ने इन्हें ऐप डेवलप करने के लिए ऑनलाइन ट्रेनिंग दी। जिसके बाद उनका गिरोह जावा प्रोग्रामिंग का इस्तेमाल कर सरकारी योजनाओं के नाम पर मिलते-जुलते ऐप बनाने लगा।
एआई आधारित चैटबॉट का किया इस्तेमाल
जांच में यह बात सामने आयी है कि चैट जीपीटी का इस्तेमाल कर साइबर अपराधियों ने एआई आधारित चैटबॉट का इस्तेमाल किया। जब कभी ऐप में दिक्कत आती तो ये चैट जीपीटी का इस्तेमाल कर नया कोड जेनरेट कराते थे। इसके बाद फर्जी ऐप एंटी वायरस को भी बाइपास कर जाता था। सरकारी योजनाओं के नाम पर बने इन फर्जी ऐप को ये उपभोक्ताओं के मोबाइल में एपीके के जरिए इंस्टाल कराते थे। एपीके फाइल इंस्टॉल होते ही फोन में मौजूद बैंक खाते, ओटीपी की जानकारी, सारे एसएमएस और कॉल का डाटा साइबर अपराधियों तक पहुंचता था। इस डाटा की मॉनिटरिंग के लिए अपराधियों ने अलग से वेबसाइट बनाई थी।
ऐसे काम करता है गिरोह
अपराधी जावा प्रोग्रामिंग का इस्तेमाल कर सरकारी योजनाओं के नाम पर मिलते-जुलते ऐप बनाते हैं। ऐप में कोई समस्या आने पर चैट जीपीटी का इस्तेमाल कर नया कोड जेनरेट कराते हैं। चैट जीपीटी से तैयार किया गया फर्जी ऐप एंटी वायरस की पकड़ से भी बाहर रहता है। फिर चैट जीपीटी से बने ऐप को एपीके फाइल के जरिए मोबाइल में इंस्टॉल कराते हैं। एपीके फाइल मोबाइल में डाउनलोड होते ही सारा डाटा अपराधियों के पास पहुंचता है। मोबाइल में मिले डाटा की मॉनिटरिंग के लिए अलग से वेबसाइट भी ठगों ने बना रखी है।