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श्रीमद्भागवत गीता मनुष्य को कर्म योगी बनने के लिए करता है प्रेरित

बिंदापाथर गांव में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिन कथावाचक मुकुंद दास अधिकारी ने महाभारत के राजा परीक्षित को मृत्यु का श्राप, नारद जी के उपदेश, और भगवान भागीरथ की उत्पत्ति का मधुर...

Newswrap हिन्दुस्तान, जामताड़ाWed, 27 Nov 2024 01:09 AM
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बिंदापाथर। बिंदापाथर गांव में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिन कथावाचक मुकुंद दास अधिकारी द्वारा श्रीमद्भागवत कथा के अंतर्गत महाभारत राजा परीक्षित को सात दिन में मृत्यु का श्राप, नारद जी के उपदेश, भगवान भागीरथ की उत्पत्ति आदि प्रसंग के बारे में मधुर वर्णन किया। इस मार्मिक प्रसंग में कथावाचक ने व्याख्यान करते हुए कहा की श्रीमद्भागवत गीता एक ऐसा धर्म ग्रंथ है जो मनुष्य को कर्म योगी बनने के लिए प्रेरित करता है। श्रीमद्भागवत जो भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य का परमोपदेशक ग्रंथ-रत्न है तथा रामायण, जो मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के पावन, आदर्श चरित्र से परिपूर्ण है, देवर्षि नारदजी की कृपा से ही हमें प्राप्त हो सकें हैं। इन्होंने ही प्रह्लाद, ध्रुव, राजा अम्बरीष आदि महान भक्तों को भक्ति मार्ग में प्रवृत्त किया। नारदजी को अपनी विभूति बताते हुए योगेश्वर श्रीकृष्ण श्रीमद्भागवत गीता के दशम अध्याय में कहते हैं अश्वत्थ: सर्ववूक्षाणां देवर्षीणां च नारद:। वहीं कथावाचक ने शुकदेव मुनि का जन्म का व्याख्यान करते हुए कहा की महर्षि वेद व्यास के अयोनिज पुत्र थे और यह बारह वर्ष तक माता के गर्भ में थे। शुक जान बचाने के लिए तीनों लोकों में भागता रहा, भागते-भागते वह व्यास जी के आश्रम में आया और सूक्ष्मरूप बनकर उनकी पत्नी के श्रीमुख में प्रवेश कर गया। वह उनके गर्भ में रह गया तथा बारह वर्ष तक वहां से बाहर ही नहीं निकले। जब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं आकर इन्हें कहा कि बाहर निकलने पर तुम्हारे ऊपर माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा, तभी ये गर्भ से बाहर निकले और व्यासजी के पुत्र कहलाये। शुकदेवजी कोई साधारण प्राणी नहीं बल्कि श्री राधाजी के द्वारा लालित पालित शुक हैं। यह कथा गर्ग संहिता में आती है। एक बार रास रासेस्वरी श्रीराधा रानी जब श्री हरि के साथ व्रज मण्डल में अवतरित होने लगीं तब वह शुक भी साथ चलने के लिए लालायित हुआ। तब शुकदेव जी से राधा जी बोलीं- शुक हम अभी व्रजभूमि में लीला करने जा रहे हैं, तुम वहाँ क्या करोगे । यह सुन शुकदेवजी घबराए और बोले माँ मैं आपसे दूर नहीं, मैं आपके साथ चलूँगा माँ। आप वहाँ लीलाएँ करना मैं आपकी लीलाओं को देखा करूँगा। पर आपके बिना मैं नहीं रह सकता हूं। राधाजी झट से शुक को ह्रदय से लगाकर बोलीं ठीक है चलो। इस तरह से वही शुक व्यासजी के पुत्र रूप जन्म लेकर भगवान श्री के कथा का गान करने लगे। कार्यक्रम में धार्मिक कथा के साथ-साथ सुमधुर भजन संगीत भी प्रस्तुत किया गया जिससे उपस्थित श्रोता-भक्त भावविभोर हो कर कथा स्थल पर भक्ति से झुमते रहे।

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