काव्य इंसान को सृजनकर्ता बनाता है
बहरागोड़ा महाविद्यालय में बंगला विभाग ने श्री राधे की बिरह वेदना पर सेमिनार आयोजित किया। अध्यक्षता डॉक्टर बालकृष्ण बेहरा ने की। मुख्य अतिथि डॉक्टर लायक अली खान ने प्रेम और विरह के महत्व पर चर्चा की।...
बहरागोड़ा महाविद्यालय में बंगला विभाग की ओर से श्री राधे की बिरह वेदना पर सेमिनार का आयोजन किया गया। इसकी अध्यक्षता प्रभारी प्रचार्य डॉक्टर बालकृष्ण बेहरा ने की। मुख्य वक्ता एवं मुख्य अतिथि डॉक्टर लायक अली खान (विद्यासागर विवि के पूर्व विभागाध्यक्ष) को अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया गया। उन्होंने कहा कि प्रेम की तुलना में विरह ज्यादा महत्वपूर्ण है। ज्यादातर महाकाव्य में विरह पर अधिक से अधिक लिखा गया है। प्रारंभिक काल से ही सत्ता ने साहित्य को नियंत्रित किया है। यही वजह रही है कि संस्कृत भाषा एवं साहित्य से निम्न तबके के लोगों को दूर रखा गया। नारी को आर्यों ने उचित सम्मान नहीं दिया। प्रेम मनुष्य को मुक्ति की ओर ले जाता है। प्रेम मनुष्य को जकड़ लेता है और वही प्रेम उसे परित्याग के रास्ते पर भी चलना सिखाती है। चैतन्य ने जिन्हें पाया नहीं उन्होंने उन्हें राधा और कृष्ण में देखा। काव्य इंसान को सृजनकर्ता बनाता है। रविंद्र नाथ का प्रेम उन्हें जब प्राप्त नहीं हुआ तब उन्होंने लिखना प्रारंभ किया। उसे वेदना ने साहित्य के जगत में महान विभूति बना दिया। उनके बाद बलराम दास और ज्ञान दास जैसे लेखक हुए तत्पश्चात चंडी दास ने कई रचनाएं की। उत्तर काल में राधा और कृष्णा को अलग नहीं माना जाता था। चैतन्य के बाद बिरह का काल आया। अंतहीन विरह विद्यापति और चंडी दास के लिखे में मिलता है। विद्यापति ने राधा के प्रत्येक मनोभाव को दर्शाया है। राधा से दूर जाने के बाद ही कृष्ण का विशाल रूप एक तरह से नियंता के रूप में सामने आया। विद्यापति ने अपनी भावना को सह्रदय रूप में रखा है। प्रेम इंसान को कभी-कभी इतना दूर कर देता है कि वह चाह कर वापस नहीं लौट पाता है। कहा तो यह भी जाता है कि राधा से विच्छेद के उपरांत कंस जैसे वध की प्रेरणा कृष्ण को मिली थी। वह दूरी नहीं उन्हें महानायक बनाया। इस मौके पर कई शिक्षक एवं विद्यार्थियों द्वारा व्याख्यान से संबंधित प्रश्न किए गए। जिनका उत्तर डॉक्टर खान ने दिया। इस अवसर पर बांगला विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. तपन कुमार मंडल, कौशिक कुमार महतो, पूनम कुमारी, अरुण दे, रूपा सीट उपस्थित थे।
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