विदेश गए राष्ट्रपति, सेना प्रमुख ने हड़प ली सत्ता; आज के दिन कैसे जल्लाद ईदी अमीन बना तानाशाह
- ईदी अमीन ने सत्ता संभालते ही युगांडा में तानाशाही और आतंक का शासन शुरू किया। उसके कार्यकाल (1971-1979) के दौरान लाखों लोगों को हत्या, यातना और दमन का शिकार होना पड़ा।
Idi Ami History: ईदी अमीन दादा (Idi Amin Dada) को अफ्रीका के इतिहास में सबसे क्रूर तानाशाह के रूप में जाना जाता है। उसका जीवन सत्ता, ताकत और आतंक से भरा हुआ था। युगांडा की सशस्त्र सेना के प्रमुख ईदी अमीन ने सैन्य तख्तापलट के जरिए आज ही के यानी 25 जनवरी 1971 को राष्ट्रपति मिल्टन ओबोट से सत्ता छीनी। ओबोट 1962 में आजादी के बाद से देश का नेतृत्व कर रहे थे और तख्तापलट के समय सिंगापुर में राष्ट्रमंडल सम्मेलन में भाग लेने गए थे। ईदी अमीन का जन्म 1925 में युगांडा के कोबोको में हुआ था। वह एक निम्नवर्गीय परिवार से था और औपचारिक शिक्षा बहुत कम प्राप्त की थी। इसके बावजूद, उसका सैन्य जीवन उसे युगांडा की राजनीति के केंद्र में ले आया।
सैन्य जीवन की शुरुआत
ईदी अमीन ने 1946 में ब्रिटिश औपनिवेशिक सेना "किंग्स अफ्रीकन राइफल्स" (KAR) में भर्ती होकर अपने करियर की शुरुआत की। उसने द्वितीय विश्व युद्ध और मऊ मऊ विद्रोह के दौरान सेवा की। अपने कद-काठी और साहस के कारण वह जल्दी ही अफसरों की नजर में आ गया। 1962 में जब युगांडा को आजादी मिली, तो अमीन को युगांडा सेना में अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया। अमीन 1962 में युगांडा की स्वतंत्रता से पहले अधिकारी रैंक तक पदोन्नत किए गए कुछ युगांडा सैनिकों में से एक था। वह देश के नए प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति मिल्टन ओबोटे के साथ बेहद करीबी संबंध रखता था।
तख्तापलट और सत्ता तक का सफर
1966 में ईदी अमीन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मिल्टन ओबोटे के साथ मिलकर युगांडा के राष्ट्रपति एडवर्ड मुतासा को सत्ता से हटाने में भूमिका निभाई। इसके बाद ओबोटे राष्ट्रपति बने और अमीन को सेना का प्रमुख बनाया गया। हालांकि, दोनों के बीच मतभेद बढ़ने लगे। ओबोटे ने महसूस किया कि अमीन एक बड़ा खतरा बन सकता है। 1971 में जब ओबोटे सिंगापुर गए हुए थे, तब अमीन ने तख्तापलट कर दिया और खुद को युगांडा का राष्ट्रपति घोषित कर दिया।
तानाशाही का दौर
ईदी अमीन ने सत्ता संभालते ही युगांडा में तानाशाही और आतंक का शासन शुरू किया। उसके कार्यकाल (1971-1979) के दौरान लाखों लोगों को हत्या, यातना और दमन का शिकार होना पड़ा। उसने एशियाई समुदायों, विशेष रूप से भारतीयों को युगांडा से निष्कासित कर दिया। इससे युगांडा की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ा। अमीन का शासन क्रूरता और अराजकता के लिए कुख्यात था। उसने खुद को "स्कॉटलैंड का अंतिम राजा" और "जीवन भर का राष्ट्रपति" जैसे उपनाम दिए। उसकी सनक और क्रूरता ने युगांडा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग कर दिया।
उसने 1972 में युगांडा से सभी एशियाई लोगों को निष्कासित कर दिया, जोकि एक ऐसा कदम था जिसने युगांडा की अर्थव्यवस्था को तहस-नहस कर दिया। उसने कई बार सार्वजनिक रूप से ग्रेट ब्रिटेन और अमेरिका के साथ-साथ कई विश्व नेताओं का अपमान किया। एक मुस्लिम होने के नाते, उसने युगांडा के इजरायल के साथ अच्छे संबंधों को उलट दिया और लीबिया और फिलिस्तीनियों के साथ दोस्ती की। वह जुलाई 1976 में एंटेबे में एक फ्रांसीसी एयरलाइनर के अपहरण में व्यक्तिगत रूप से शामिल था। अमीन को उसकी क्रूरता के कारण “युगांडा का कसाई” कहा जाने लगा और ऐसा माना जाता है कि उसके राष्ट्रपतित्व के दौरान लगभग 300,000 लोगों की हत्या कर दी गई तथा अनगिनत लोगों को यातनाएं दी गईं।
पतन की शुरुआत
अक्टूबर 1978 में अमीन ने तंजानिया पर हमले का आदेश दिया। लेकिन यह उसकी सबसे बड़ी भूल साबित हुई। तंजानिया ने युगांडा की विपक्षी सेनाओं के साथ मिलकर अमीन की सेना को हरा दिया। 1979 में अमीन को सत्ता छोड़कर भागना पड़ा। 11 अप्रैल, 1979 को जब तंजानिया के नेतृत्व वाली सेना युगांडा की राजधानी कंपाला के पास पहुंची, तो अमीन देश छोड़कर भाग गया। दो दिन बाद यूसुफु लुले ने राष्ट्रपति पद संभाला। पहले लीबिया भागने के बाद, अमीन आखिरकार सऊदी अरब में बस गया।
निर्वासन और मौत
अमीन सऊदी अरब भाग गया, जहां उसे शरण दी गई। उसने अपना बाकी जीवन सऊदी अरब में निर्वासन में बिताया और 16 अगस्त 2003 को उसकी मौत हो गई। ईदी अमीन का जीवन सत्ता और आतंक का प्रतीक है। उसके शासनकाल ने युगांडा को गहरे संकट में डाल दिया। हालांकि, उसके पतन ने यह साबित किया कि तानाशाही का अंत निश्चित होता है। उनका नाम आज भी एक क्रूर तानाशाह के रूप में याद किया जाता है।
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