कौन हैं सुधाकर दलेला जो बनाए जा सकते हैं भूटान में भारत के हाई कमिश्नर?
सुधाकर दलेला भूटान में भारत के नए हाई कमिश्नर नियुक्त किए जा सकते हैं। 1993 बैच के भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी सुधाकर मौजूदा वक्त में वाशिंगटन में मिशन के उप प्रमुख के तौर पर काम कर रहे हैं।
मौजूदा वक्त में भूटान में भारत की हाई कमिश्नर हैं रुचिरा कंबोज। रिपोर्ट्स के मुताबिक थिंपू में उनका कार्यकाल जल्द ही खत्म होने वाला है और वह संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति की जगह लेंगी जो कि अगले महीने रिटायर हो रहे हैं। ऐसे में सुधाकर दलेला भूटान में भारत के नए हाई कमिश्नर नियुक्त किए जा सकते हैं। अधिकारियों के मुताबिक हाई कमिश्नर की लिस्ट में सुधाकर दलेला का नाम सबसे आगे चल रहा है।
कौन हैं सुधाकर दलेला?
1993 बैच के भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी सुधाकर मौजूदा वक्त में वाशिंगटन में मिशन के उप प्रमुख के तौर पर काम कर रहे हैं। सुधाकर ने अपने राजनयिक करियर की शुरुआत तेल अवीव, इजरायल से की थी। इसके बाद से वह ब्राजील, स्विट्जरलैंड, बांग्लादेश और अमेरिका में कई पदों पर काम कर चुके हैं। सुधाकर हिंदी, इंग्लिश के साथ ही हिब्रू भाषा में भी निष्णात हैं।
सुधाकर दिल्ली में रहते हुए भी कई महत्वपूर्ण पदों पर काम कर चुके हैं। वह पीएम ऑफिस में डायरेक्टर रहते हुए चीन, हिंद-प्रशांत, मिडिल-ईस्ट और अफ्रीका पर केंद्रित रहते हुए काम कर चुके हैं। इसके साथ ही वह जॉइंट सेक्रेटरी (उत्तर) भी रहे हैं जिसके तहत उन्होंने नेपाल और भूटान से संबंधित कामकाज संभाला था।
भूटान पर है भारत का विशेष फोकस
भूटान के शाही परिवार, टॉप नेता, सेना आदि के साथ भारत के गहरे संबंध रहे हैं। बावजूद इसके चीन भूटान में घुसपैठ की हर संभव कोशिश कर रहा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन ने युवा पीढ़ी को सफलतापूर्वक टारगेट किया है। युवाओं को लुभाने के लिए चीन ने लिए स्कॉलरशिप, एक्सचेंज प्रोग्राम आदि कार्यक्रम की शुरुआत की है।
इसके साथ ही चीन ने पिछले कुछ सालों में भूटान की जमीन पर निराधार और अवैध दावा किया है। 2017 का डोकलाम मसला उसका एक उदाहरण मात्र है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि चीन सामरिक तौर पर महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर अपना दावा कर रहा है।
ऐसे में सुधाकर के लिए भूटान में एक मुश्किल टास्क दिख रहा है। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि उन्हें न सिर्फ भूटान में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकना होगा बल्कि भूटान की नई पीढ़ी को भारत के नजदीक लाते हुए चीनी दुनिया से दूर ले जाना होगा। चूंकि सुधारक को चीन से निपटने का अनुभव है और उन्हें चीनी रणनीतिक सोच और रणनीति की भी समझ है, ऐसे में उनके लिए राह थोड़ी आसान हो जाती है।
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