मुस्लिमों का कर दिया जबरन दाह संस्कार, अब माफी मांगेगी ये सरकार; कैबिनेट में प्रस्ताव पारित
Sri Lanka News: एक कैबिनेट नोट के अनुसार, श्रीलंकाई मंत्रिमंडल ने सोमवार को एक बैठक में मार्च 2020 में थोपे गए आदेश के लिए मुस्लिम समुदाय से माफी मांगने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है।
श्रीलंका की सरकार ने मंगलवार को कहा कि वह कोविड-19 से जान गंवाने वाले मुस्लिम व्यक्तियों के जबरन दाह संस्कार के मामले में देश के मुस्लिम समुदाय से औपचारिक रूप से माफी मांगेगी। श्रीलंकाई सरकार ने स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के कारण कोरोना महामारी के दौरान विवादित शवदाह की नीति लागू की थी। वर्ष 2020 में कोविड-19 पीड़ितों के दाह संस्कार का अनिवार्य आदेश जारी किया गया था जिससे मुसलमानों सहित कई अन्य अल्पसंख्यक समुदायों को उनके धार्मिक अधिकारों से वंचित होना पड़ा था।
श्रीलंका सरकार की इस नीति के खिलाफ बढ़ती अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं के बीच फरवरी 2021 में इस आदेश को रद्द कर दिया गया था। एक कैबिनेट नोट के अनुसार, श्रीलंकाई मंत्रिमंडल ने सोमवार को एक बैठक में मार्च 2020 में थोपे गए आदेश के लिए मुस्लिम समुदाय से माफी मांगने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। इसमें कहा गया है कि मंत्रिमंडल ने सरकार की ओर से सभी समुदायों से माफी मांगने का फैसला किया है।
मंत्रिमंडल ने ऐसे विवादास्पद कदमों की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए कानून लाने का भी निर्णय लिया। बयान में कहा गया है कि मंत्रिमंडल ने धर्म के आधार पर शवों को दफनाने या दाह संस्कार पर एक प्रस्तावित कानून को भी मंजूरी दे दी है। इसमें एक कानून लाने की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है जो किसी खास व्यक्ति या रिश्तेदारों को मृत व्यक्ति को दफनाने या उसका दाह संस्कार के चयन की अनुमति देगा।
श्रीलंका में मुस्लिम समुदाय ने जबरन दाह संस्कार नीति का विरोध किया था और कुछ ने तो अपने प्रियजनों के शवों को अस्पताल के मुर्दाघरों में छोड़ दिया था। समुदाय के सदस्यों ने कहा था कि या तो उन्हें शव जलाने की अनुमति देने के लिए मजबूर किया गया था या उनकी जानकारी के बिना ऐसा किया गया था। बता दें कि इस्लाम में शव दाह वर्जित है।
फरवरी 2021 में आदेश के रद्द किये जाने से पहले श्रीलंका में 276 मुस्लिमों का दाह संस्कार किया गया। श्रीलंका की सरकार ने स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का हवाला देकर दफनाने की अनुमति देने की मांग का विरोध किया था। तब सरकार ने कुछ विशेषज्ञों की राय का हवाला दिया था जिसमें उन्होंने दावा किया था कि कोविड-19 पीड़ितों को दफनाने से जल स्तर प्रदूषित हो जाएगा जिससे महामारी और फैलेगी।
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