कहां तैयार हो रहा चीन-अमेरिका की जंग का नया अखाड़ा? क्या है इस तनातनी की असली वजह
- अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने अफ्रीका को नया शीत युद्ध का केंद्र बना दिया है। दोनों महाशक्तियां अफ्रीका में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए संघर्षरत हैं, जबकि भारत और ब्राजील जैसे उभरते दिग्गज इस क्षेत्र में संतुलन बना कर चल रहे हैं।
अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा किसी से छिपी नहीं है। दोनों के बीच की तकरार के लिए अब अफ्रीका एक नया अखाड़ा तैयार हो रहा है। अफ्रीका में चीन और अमेरिका के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा को 21वीं सदी का नया शीत युद्ध कहा जा सकता है। इस संघर्ष के केंद्र में अब अफ्रीका ही क्यों है जहां दोनों महाशक्तियां अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए जोर-आजमाइश कर रही हैं।
इतिहास की बात करें तो अपनी आजादी के बाद 1950 के दशक से चीन ने अफ्रीका के साथ अपने संबंधों की नींव रखी थी, जब पश्चिमी देशों ने अफ्रीका में अपनी श्रेष्ठता बनाए रखने के लिए संघर्ष किया था। चीन ने बांडुंग सम्मेलन जैसे कई मंचों के माध्यम से अफ्रीका की स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता की वकालत की थी।
चीन के लिए अफ्रीका क्यों इतना अहम?
चीन ने दशकों में अफ्रीका में अपने प्रभाव को बढ़ाया है। बांडुंग सम्मेलन के बाद, जब एशिया और अफ्रीका के 29 देशों के प्रतिनिधि उपनिवेशवाद का विरोध करने और आपसी आर्थिक सहयोग की मांग करने के लिए एकत्र हुए थे तब से चीन ने अफ्रीका के साथ एकजुटता दिखाई थी। पिछले कुछ दशकों में, विशेष रूप से 2008 के वैश्विक मंदी के बाद चीन की उपस्थिति अफ्रीका में और भी बढ़ी है। चीन ने अफ्रीका में सड़कों, रेलवे, बंदरगाहों और बिजली संयंत्रों में भारी निवेश किया है।
फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ने अफ्रीका के साथ व्यापारिक साझेदारी में अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है और उसकी निवेश नीति ने अफ्रीकी महाद्वीप के आर्थिक परिदृश्य को आकार दिया है। इसके साथ ही चीन अफ्रीका में राजनीतिक शासन के ट्रेनिंग भी दे रहा है, जिससे उसकी पकड़ और मजबूत हो रही है। अफ्रीका में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा स्थापित न्येरे स्कूल जैसी संस्थाएं अफ्रीकी नेताओं को चीनी शासन मॉडल में प्रशिक्षित कर रही हैं, जिससे बीजिंग का प्रभाव और बढ़ रहा है।
चीन के प्रभाव से चिंचित है अमेरिका
दूसरी ओर, अमेरिका भी चीन के बढ़ते प्रभाव से चिंतित है और अफ्रीका में अपनी उपस्थिति बनाए रखने के लिए नई रणनीतियां अपना रहा है। अमेरिका ने अफ्रीका में अपने आर्थिक और सैन्य कार्यक्रमों का विस्तार किया है, ताकि वह चीन की चुनौती का मुकाबला कर सके। लंबे समय से अमेरिका अफ्रीका में फैसले लेने का आदी रहा है। अब चीन के उदय के साथ, उस प्रभुत्व को गंभीर चुनौती मिली है। इथियोपिया से लेकर युगांडा और अंगोला तक कई देशों में चीन व्यावहारिक रूप से बाजार की शर्तों को निर्धारित करने लगा है।
दोनों देशों की इस प्रतिस्तपर्था में अफ्रीकी देश में चुन नहीं हैं। अफ्रीका के कई देश दोनों महाशक्तियों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रहे हैं। कई अफ्रीकी नेता दोनों पक्षों के साथ खेलने में माहिर हो गए हैं, अपने देशों के लिए हित के लिए चीन और अमेरिका के साथ अपने संबंधों का इस्तेमाल कर रहे हैं। हालांकि, उनके बीच संतुलन बैठाने का कार्य चुनौतियों से भरा है। अफ्रीका में विश्व की कुछ सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाएं हैं - जिनमें नाइजर, सेनेगल, लीबिया, रवांडा, इथियोपिया और गाम्बिया शामिल हैं। ये देश प्राकृतिक संसाधनों का विशाल भंडार है, जिसके कारण चीन और अमेरिका दोनों इस क्षेत्र में रुचि रखते हैं।
कोविड के बाद की दुनिया में अफ्रीका का भविष्य अनिश्चित है क्योंकि चीन की अर्थव्यवस्था स्थिर हो रही है और बड़ी कंपनियों का पलायन जारी है। हालांकि, अफ्रीका को चीन, अमेरिका के अलावा भारत और ब्राजील जैसे उभरते आर्थिक दिग्गजों से भी बढ़ते ध्यान और निवेश का लाभ हो सकता है। वैश्विक मंचों पर भारत अफ्रीका का पक्ष ले चुका है। भारत जी-20 और जी-7 जैसे मंचों पर अफ्रीका के गौरव को दुनिया के सामने ला रहा है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि दोनों महाशक्तियों के बीच की प्रतिस्पर्धा को उभरती अर्थव्यवस्थाएं किस तरह प्रभावित करती हैं।
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