शी जिनपिंग ने आपदा में भी ढूंढ़ लिया अवसर, ट्रंप के 10% टैरिफ के बावजूद चीन के दोनों हाथ लड्डू कैसे
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के इस दांव से चीन बौखलाया हुआ है क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था पहले से ही सुस्त चल रही है। ऐसे में अमेरिकी टैक्स से चीनी निर्यात को झटका लगने की आशंका है।
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अमेरिका और चीन के बीच चल रहा व्यापार युद्ध अह और गहरा गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल के तीसरे हफ्ते में पड़ोसी कनाडा और मैक्सिकों पर 25 फीसदी का कर लगा दिया, जबकि पुराने प्रतिद्वंद्वी चीन पर 10 फीसदी का टैरिफ लगा दिया। टैरिफ लागू होता, इससे पहले ट्रंप ने दोनों पड़ोसियों से बात कर उन्हें फौरी राहत दे दी और एक महीने तक 25 फीसदी कर थोपने के अपने फैसले को टाल दिया लेकिन चीन को यह अवसर नहीं दिया। उधर, ट्रंप प्रशासन के फैसले से भड़के चीन ने अमेरिका से आयात होने वाले सामानों पर भी 10 से 15 फीसदी का जवाबी टैक्स लगा दिया।
चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने मंगलवार को घोषणा की कि वह अमेरिका के खिलाफ कई उत्पादों पर जवाबी शुल्क लगा रहा है। साथ ही उसने अमेरिकी सर्च इंजन ‘गूगल’ की जांच सहित अन्य व्यापार संबंधी उपायों की भी घोषणा की है। चीनी सरकार ने कहा, वह कोयला तथा तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) उत्पादों पर 15% शुल्क लागू करेगी। साथ ही कच्चे तेल, कृषि मशीनरी, बड़ी कारों पर 10% शुल्क लगाया जाएगा। बयान में कहा गया, ‘‘अमेरिका की एकतरफा शुल्क वृद्धि विश्व व्यापार संगठन के नियमों का गंभीर उल्लंघन है। यह अपनी समस्याओं को हल करने में कोई मदद नहीं करेगा, बल्कि यह चीन तथा अमेरिका के बीच सामान्य आर्थिक व व्यापार सहयोग को नुकसान पहुंचाएगा।’’
अमेरिकी दांव से चीन क्यों परेशान
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के इस दांव से चीन बौखलाया हुआ है क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था पहले से ही सुस्त चल रही है। ऐसे में अमेरिकी टैक्स से चीनी निर्यात को झटका लगने की आशंका है। ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल (2017-2021) में भी चीनी सामानों पर टैक्स लगाकर अरबों डालर कमाए थे लेकिन चीन ने इस आसन्न आपदा से निपटने की तैयारी पहले ही कर ली थी। चीन ने ट्रंप के पहले कार्यकाल में लगे शुल्क से सीख लेते हुए अपना बाजार अमेरिका से इतर दूसरे देशों में फैला लिया है। यानी चीनी अर्थव्यवस्था अब अमेरिकी बाजार पर उतनी निर्भर नहीं रह गई है, जितनी कि 2020 में थी।
चीन ने इस दौरान अब अपना उपभोक्ता बाजार अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और दक्षिण पूर्व एशिया में शिफ्ट कर लिया है और करीब 120 से ज्यादा देशों को अपना व्यापारिक साझेदार बना लिया है। ऐसे में चीन को 10 फीसदी अतिरिक्त अमेरिकी टैरिफ से उतना घाटा नहीं होगा, जितना कि अमेरिका ने पहले कमाया था। इसके अलावा चीन-अमेरिका के बीच अभी भी बातचीत होने और व्यापार युद्ध पर समझौते के आसार बने हुए हैं। बीजिंग अभी भी शांत बना हुआ है और वह अंतिम क्षण तक शांत बना रहा। बीजिंग ने वॉशिंगटन द्वारा टैरिफ लगाने के बाद ही जवाबी कर लगाया। इसमें भी चीन ने 10 फरवरी से उसे लागू करने का ऐलान किया है। दूसरी तरफ अमेरिका अपने कदमों से अनिश्चितता का सामना कर रहा है।
चीन को नया अवसर कैसे
विशेषज्ञों का कहना है इस व्यापार युद्ध और टैरिफ लगाने की परिस्थिति में भी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग बड़ा अवसर देख रहे हैं क्योंकि ट्रंप ने एक साथ कई मोर्चों पर जंग छेड़ दी है। ट्रंप ने कहा है कि उनका अगला निशाना 27 देशों वाला यूरोपीय यूनियन होगा। उनके इस ऐलान से अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के बीच चल रही वर्षों की साझेदारी अब खतरा महसूस कर रही है। ऐसे में यूरोपीय देशों का बड़ा समूह अमेरिका से मोहभंग कर दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था की ओर अपने जरूरी सामानों के लिए शिफ्ट हो सकता है, जहां उसे अमेरिकी सामान की तुलना में सस्ता सामान उपलब्ध हो सके।
चीन के बड़े आयातक देश
चीन पूरी दुनिया में सस्ता सामान बनाने के लिए मशहूर है। फिलहाल वह शांत और स्थिर है और इस मौके की तलाश में है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के कदम से भन्नाए देशों को कैसे साधा जा सके और अपने करीब सवा सौ साझेदार देशों के कुनबे को कैसे आगे बढ़ाया जा सके। चीनी सामानों के बड़े आयातक देशों में अमेरिका के अलावा, हॉन्गकॉन्ग, जापान, दक्षिण कोरिया, वियतनाम, भारत, रूस, जर्मनी, नीदरलैंड, मलेशिया, मैक्सिको और यूके भी है। ये देश अमेरिका से भी सामान आयात करते हैं। ट्रंप की गाज गिरने की स्थिति में चीन इन देशों में और व्यापार बढ़ा सकता है।
जिनपिंग को 50 साल पुरानी व्यवस्था पलटने का इंतजार
स्टिमसन सेंटर में चीनी प्रोग्राम के डायरेक्टर यूं सन ने BBC को बताया कि ट्रंप की अमेरिका-प्रथम की नीति दुनिया के लगभग सभी देशों के लिए चुनौतियां और खतरे लेकर आया है। उन्होंने कहा कि ऐसे हालात यानी अमेरिका-चीन के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा के दौर में ट्रंप के नेतृत्व में दूसरे देशों से अमेरिका के रिश्ते खराब हो सकते हैं, जबकि रिश्तों में आई इस गिरावट का फायदा चीन को मिल सकता है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की यही महत्वाकांक्षा भी रही है कि वह विश्व व्यापार में सबसे बड़ा साझीदार बनकर उभरें और पूरी दुनिया में चीनी सामानों की डिमांड दिन ब दिन बढ़े। यानी जिनपिंग पिछले 50 सालों से अमेरिका के नेतृत्व में चली आ रही वैश्विक व्यवस्था को पलटने का अवसर देख रहे हैं, जिससे आखिरकार उन्हें फायदा हो सकता है। हालांकि, चीन के इस राह में कई रोड़े हैं क्योंकि उसके पड़ोससी देशों में से आधे से अधिक के साथ उसके रिश्ते खराब रहे हैं जो उसे विश्व शक्ति बनाने में बाधा पहंचाती रही है।
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