विश्लेषण : मेवात की 3 विधानसभा सीटों पर BJP के लिए कमल खिलाना चुनौती; समझें यहां का राजनीतिक इतिहास
हरियाणा के नूंह जिले में मेवात इलाके की तीन विधानसभा सीटों पर भाजपा के लिए कमल खिलाना बड़ी चुनौती बना हुआ है। यहां भाजपा को जीतने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है, जबकि अन्य क्षेत्रीय पार्टियां भी अपना खाता खोल चुकी हैं।
हरियाणा के नूंह जिले में मेवात इलाके की तीन विधानसभा सीटों पर भाजपा के लिए कमल खिलाना बड़ी चुनौती बना हुआ है। यहां भाजपा को जीतने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है, जबकि अन्य क्षेत्रीय पार्टियां भी अपना खाता खोल चुकी हैं। मेवात के दिग्गज नेता जाकिर हुसैन भी हार के इस सिलसिले को नहीं रोक पाए हैं। बहरहाल, इस साल 1 अक्टूबर को होने वाले चुनाव में भी भाजपा को कड़ी मशक्कत करनी होगी।
दिग्गज नेता जाकिर हुसैन को भी मिली हार : वर्ष 2019 के विधानसभा चुनावों में नूंह सीट से भाजपा ने जाकिर हुसैन को मैदान में उतारा था। जाकिर हुसैन मेवात के एक प्रमुख नेता माने जाते हैं, लेकिन उनकी मजबूत छवि भी भाजपा को इस सीट पर जीत नहीं दिला सकी। कांग्रेस के उम्मीदवार आफताब अहमद ने इस चुनाव में जाकिर को हरा दिया। इससे यह स्पष्ट होता है कि मेवात में भाजपा की पकड़ कमजोर है और यहां के मतदाताओं का समर्थन प्राप्त करना उसके लिए कठिन है।
यहां मतदान प्रतिशत भी भाजपा के पक्ष में नहीं बढ़ पाया है। मेवात की तीनों विधानसभा सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवारों को भाजपा से अधिक वोट मिले हैं, चाहे वो विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा चुनाव। इस क्षेत्र में भाजपा का कमजोर नेटवर्क और प्रभावी नेतृत्व का अभाव इसका मुख्य कारण माना जा रहा है। मेवात की तीन सीटों पर भाजपा का कमजोर प्रदर्शन उसकी राजनीतिक चुनौतियों को उजागर करता है।
वर्ष 1967 से कांग्रेस, निर्दलियों का रहा दबदबा
मेवात क्षेत्र में कांग्रेस, निर्दलीय, इनेलो का दबदबा रहा है। नूंह, फिरोजपुर झिरका, पुन्हाना सीट पर 9 बार कांग्रेस, 7 बार निर्दलीय, 6 बार इनेलो और 7 बार अन्य पार्टियों की जीत हुई है। भाजपा अब तक हुए 13 चुनावों में एक बार भी जीत दर्ज नही कर सकी है। यह स्थिति वर्ष 1967 से लेकर वर्ष 2019 तक बनी हुई है। राजनीति के जनकारों का कहना है कि भाजपा के लिए इस इलाके में न सिर्फ सीटें जीतना बल्कि अपना खाता खोलना भी एक बड़ी चुनौती है।
किसी एक दल के साथ नहीं मतदाता
इतिहासकार सिद्दीक अहमद के अनुसार, मेवात का मतदाता किसी एक राजनीतिक दल से बंधा हुआ नहीं है। यहां के मतदाता समय-समय पर विभिन्न दलों को समर्थन देते रहे हैं। इस क्षेत्र में कांग्रेस को छोड़कर अन्य दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी सफलता पाई है। यह दर्शाता है कि मेवात के मतदाता चुनावी राजनीति में अपने विवेक का इस्तेमाल करते हैं और किसी एक दल को निरंतर समर्थन नहीं देते।
मेवात में नेटवर्क को मजबूत करना होगा
राजनीति के जनकारों का कहना है कि भाजपा के लिए मेवात क्षेत्र में अपनी जड़ें मजबूत करना और यहां के मतदाताओं का विश्वास जीतना अभी भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। आगामी चुनावों में यदि भाजपा इस क्षेत्र में अपनी स्थिति सुधारना चाहती है, तो उसे अपने संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने, स्थानीय नेतृत्व को उभारने, और जनसमर्थन बढ़ाने के लिए रणनीतिक कदम उठाने होंगे।
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