कांग्रेस सांसद प्रतापगढ़ी को HC से झटका, भड़काऊ वीडियो मामले में रद्द नहीं होगी FIR
कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी को गुजरात हाई कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने भड़काऊ वीडियो मामले में दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया। सांसद पर जामनगर शहर में एक सामूहिक विवाह समारोह में भड़काऊ गीत के साथ एक वीडियो पोस्ट करने के लिए केस दर्ज किया गया था।
गुजरात हाई कोर्ट ने शुक्रवार को कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी की याचिका को खारिज कर दिया। याचिका में कथित रूप से भड़काऊ गीत के साथ एक संपादित वीडियो पोस्ट करने के लिए जामनगर में उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई थी।
कांग्रेस नेता ने दावा किया कि एफआईआर गुजरात पुलिस द्वारा दुर्भावनापूर्ण इरादे से दर्ज की गई है। हाई कोर्ट के जस्टिस संदीप भट्ट ने याचिका खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा, "चूंकि जांच शुरुआती चरण में है, इसलिए मुझे भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 528 या भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करने का कोई कारण नहीं दिखता है।''
इमरान प्रतापगढ़ी पर 3 जनवरी को जामनगर शहर में आयोजित एक सामूहिक विवाह समारोह में कथित रूप से भड़काऊ गीत के साथ एक संपादित वीडियो पोस्ट करने के लिए मामला दर्ज किया गया था। कांग्रेस के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रतापगढ़ी पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 196 (धर्म, नस्ल आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और धारा 197 (राष्ट्रीय एकता के लिए खतरनाक दावे) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
प्रतापगढ़ी ने एक्स पर 46 सेकेंड का वीडियो अपलोड किया था। वीडियो क्लिप में जब वह हाथ हिलाते हुए चल रहे हैं तो उन पर फूलों की वर्षा की जा रही है और पृष्ठभूमि में एक गाना बज रहा है। एफआईआर में कहा गया है कि गाने के बोल भड़काऊ हैं और राष्ट्रीय एकता के लिए खतरनाक है। साथ ही धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे हैं।
कांग्रेस नेता ने एफआईआर रद्द करने के लिए दी गई अपनी याचिका में दावा किया कि पृष्ठभूमि में पढ़ी जा रही कविता प्रेम और अहिंसा का संदेश देती है। प्रतापगढ़ी ने दावा किया कि एफआईआर का इस्तेमाल उन्हें परेशान करने के लिए किया गया है। कहा कि इसे दुर्भावनापूर्ण और गलत इरादे से दर्ज किया गया है।
उन्होंने दावा किया कि उनका सोशल मीडिया पोस्ट किसी भी तरह से समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा नहीं देता है और कोई मामला नहीं बनता है। उन्होंने आगे कहा कि उन्हें कांग्रेस से जुड़े होने के कारण उन्हें फंसाया जा रहा है। याचिका में कहा गया है कि एफआईआर अप्रमाणित आधारों पर आधारित है। एफआईआर को देखने से पता चलता है कि कुछ शब्दों को संदर्भ से बाहर किया गया है।
वहीं, लोक अभियोजक हार्दिक दवे ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि कविता के शब्द राज्य व्यवस्था के खिलाफ उठाए जाने वाले गुस्से को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं। दवे ने अदालत को बताया कि 4 जनवरी को एक नोटिस जारी किया गया था जिसमें प्रतापगढ़ी को 11 जनवरी को उपस्थित रहने के लिए कहा गया था, लेकिन वह उपस्थित नहीं हुए। उसके बाद 15 जनवरी को एक और नोटिस जारी किया गया।
दवे के तर्कों को पर विचार करते कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इस स्तर पर कोई राहत नहीं दी जा सकती क्योंकि जांच बहुत प्रारंभिक चरण में है। यहां तक कि एफआईआर को पढ़ने पर भी बीएनएस की धारा 197, 302 और 299 के तत्व सामने आते हैं। जांच अधिकारी के पास उपलब्ध सामग्री दर्शाता है कि उक्त पोस्ट निश्चित रूप से सामाजिक सद्भाव को परेशान करने वाला है।
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