कितने काम की है वर्चुअल रैम, क्या सच में बढ़ जाता है फोन का परफॉर्मेंस? जानिए सब कुछ
Virtual RAM फीचर की मदद से फोन की रैम को दोगुनी या उससे ज्यादा बढ़ाया जा सकता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर 4GB रैम बढ़कर 8GB कैसे हो जाती है। कौनसी टेक्नोलॉजी है जो इसके पीछे काम कर रही है। यहां हम आपको वर्चुअल रैम के बारे में बता रहे हैं। डिटेल में जानिए
कैसा हो अगर आप 4GB फोन खरीदें लेकिन उसकी रैम खुद-ब-खुद 8GB हो जाए? स्मार्टफोन के मामले में आपने भी कई बार ऐसा सुना होगा। दरअसल, यह सब वर्चुअल रैम टेक्नोलॉजी की मदद से संभव हो पाता है। अलग-अलग कंपनियां इस तकनीक को अलग-अलग नाम से पेश करती हैं। कुछ इसे एक्सटेंटेड रैम कहती हैं, कुछ वर्चुअल रैम, रैम प्लस तो कुछ डायनामिक रैम। काम सभी का एक है, यानी रैम को बढ़ाना।
6,499 रुपये के Samsung Galaxy M05 फोन 4GB स्टैंडर्ड रैम के साथ आता है लेकिन रैम प्लस फीचर से रैम 8GB तक हो जाती है। हाल ही में टेक्नो ने 6,499 रुपये में अपना नया Tecno Pop 9 फोन लॉन्च किया है। फोन में वास्तव में 3GB रैम है, लेकिन कंपनी इसकी मार्केटिंग 6GB रैम वाले फोन के तौर पर कर रही है, क्योंकि इसकी रैम को वर्चुअली 6GB तक बढ़ाया जा सकता है। इसी तरह, टेक्नो अपने pova 6 neo 5G की मार्केटिंग 16GB वाले फोन के तौर कर रही है, जिसमें वास्तव में 8GB रैम है, जिसे वर्चुअली 16GB तक बढ़ाया जा सकता है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर यह वर्चुअल रैम क्या है, जो रैम को दोगुना कर देती है।
वर्तमान में, सैमसंग, वीवो, वनप्लस और शाओमी से लेकर रियलमी तक लगभग सभी स्मार्टफोन कंपनियों ने अपने फोन में वर्चुअल रैम देना शुरू कर दिया है। आपने भी कभी न कभी किसी फोन के मार्केटिंग मटेरियल पर (8GB+XGB) ब्रैकेट में 16GB RAM लिखा देखा होगा। पहले यह फीचर केवल बजट या मिडरेंज फोन्स में देखने को मिलता था लेकिन धीरे-धीरे इस फीचर ने हाई-एंड फोन्स में भी अपनी जगह बनाना शुरू कर दिया है। लेकिन फोन में मिलने वाली वर्चुअल रैम (Virtual RAM) वास्तव में क्या है, यह कैसे काम करती है, और इसका फायदा क्या है? चलिए आज वर्चुअल रैम के बारे में डिटेल में जानने की कोशिश करते हैं। तो चलिए बिना और समय बर्बाद किए, शुरू करते हैं।
क्या है वर्चुअल रैम?
इंटरनल स्टोरेज तस्वीरों और वीडियो जैसे डेटा को स्टोर करता है औ RAM याद रखता है कि आपने कौन से ऐप खोले हैं, और पिछली बार जब आपने उन्हें खोला था तो आप क्या कर रहे थे। ऐसा करके, RAM आपको जितनी जल्दी हो सके ऐप लोड करने की अनुमति देता है। जब भी आप कोई ऐप खोलते हैं, तो वह रैम में स्टोर होता है, जिससे उसे जल्दी से एक्सेस किया जा सकता है। इसलिए, ज्यादा रैम आपको बैकग्राउंड में अधिक संख्या में ऐप रखने और उन्हें तेजी से बिना लैग के साथ जल्दी से फिर से खोलने में सक्षम बनाता है।
वहीं, वर्चुअल रैम शब्द से मतलब उस रैम से है जो आपके फोन पर फिजिकली मौजूद नहीं होती (जैसे स्टैंडर्ड रैम होती है), लेकिन जरूरत पड़ने पर उपयोग में आती है। दरअसल, जब हम मल्टीटास्किंग करते हैं या फिर फोन पर कोई हैवी गेम खेलते हैं, तो फोन को उसे परफॉर्म करने के लिए ज्यादा रैम की जरूरत पड़ती है। ऐसे में, वर्चुअल रैम तकनीक, फोन के स्टोरेज के कुछ हिस्से को एडिशनल रैम की तरह इस्तेमाल करता है, जिससे वास्तविक रैम बढ़ जाती है और फोन पर किया जा रहा काम स्मूदली हो जाता है। यह एक टेम्परेरी सॉल्यूशन है। इस प्रोसेस में, गैर-जरूरी ऐप डेटा को कम्प्रेस करके इस वर्चुअल स्पेस में भेज दिया जाता है, जिससे आपके द्वारा एक्टिवली यूज किए जा रहे ऐप्स के लिए वास्तविक रैम में जगह खाली हो जाती है।
उदाहरण से समझने के लिए, अपने फोन की रैम को एक बिजी रेस्तरां किचन के रूप में कल्पना करें। यह वह जगह है जहां शेफ (ऐप्स) आपके ऑर्डर (काम) को तेजी से और अच्छी तरह से तैयार करते हैं। लेकिन बहुत ज्यादा ऑर्डर आने पर, किचन पर बहुत ज्यादा काम हो जाता है, जिससे देरी (लैग) होती है और ग्राहक (आप!) निराश हो जाते हैं। ऐसे में काम बांटने के लिए, वर्चुअल रैम, किचन के बाहर एक टेम्परेरी वर्क स्टेशन स्थापित करने जैसा है।
वर्चुअल रैम कैसे काम करती है?
वर्चुअल रैम आपके फोन के इंटरनल स्टोरेज के एक हिस्से को एलोकेट करके काम करता है, जो एडिशनल रैम के रूप में काम करता है। सरल शब्दों में कहें तो फोन पर तीन प्रकार की मेमोरी होती है,
- RAM (एक्टिव टास्क के लिए उपयोग की जाती है।)
- इंटरनल स्टोरेज (ऐप्स और डेटा स्टोर करने के लिए)
- zRAM (बैकग्राउंड टास्क के लिए रैम के भीतर एक कम्प्रेस्ड पोर्शन)
आमतौर पर, फोन 'पेजिंग' नाम की प्रोसेस का उपयोग करके मेमोरी को मैनेज करते हैं, जो रैम को 'पेज' नाम के छोटे टुकड़ों में बांट देता है। जब आपके फोन की फिजिकल रैम खत्म हो जाती है, तो यह इंटरनल स्टोरेज में स्वैप पार्टीशन बनाने के लिए वर्चुअल रैम का उपयोग करता है। यह पार्टीशन zRAM की तरह काम करता है, कम प्राथमिकता वाले या इनएक्टिव डेटा को स्टोर करता है और ज्यादा जरूरी कामों के लिए वास्तविक रैम को खाली करता है।
क्या वर्चुअल रैम आपके फोन के लिए अच्छी है?
इसका उत्तर है हां। वर्चुअल रैम आसानी से मल्टीटास्किंग में मदद कर सकती है, और बिना परफॉर्मेंस में कमी के बैकग्राउंड में ज्यादा से ज्यादा ऐप को खुला रख सकती है। फिर भी, क्या आपने कभी सोचा है कि वर्चुअल रैम को केवल बजट या मिड-रेंज डिवाइस में ही क्यों दिया जाता है? ऐसा इसलिए है क्योंकि बजट डिवाइस की कीमत सीमित होती है और परिणामस्वरूप, कीमत को मैनेज रखने के लिए छोटी रैम का उपयोग करना पड़ता है।
इसके अलावा, यह जानना भी जरूरी है कि वर्चुअल रैम कोई जादुई गोली नहीं है जो आपके 8GB रैम वाले डिवाइस को 16GB वाले डिवाइस की तरह चला देगी। इसके अलावा, यह ध्यान रखना जरूरी है कि वर्चुअल रैम के अपने नुकसान भी हैं। हमने उनमें से कुछ का उल्लेख यहाँ किया है:
- फिजिकल रैम की तुलना में स्लो परफॉर्मेंस: इंटरनल स्टोरेज, कम्प्रेशन के साथ भी, फिजिकल रैम की तुलना में काफी स्लो है। इसका मतलब है कि वर्चुअल रैम से डेटा एक्सेस करने में अधिक समय लगता है, जिससे संभावित रूप से कभी-कभी रुकावटें आती हैं।
- स्टोरेज की लाइफ कम हो जाना: इंटरनल स्टोरेज पर लगातार डेटा राइट-रीराइट करने से स्टोरेज की लाइफ, समय के साथ कम हो सकती है।
- हाई-एंड डिवाइसेस के लिए लिमिटेड बेनिफिट्स: पर्याप्त फिजिकल रैम वाले हाई-एंड स्मार्टफोन्स में वर्चुअल रैम से बेहद कम इम्प्रूवमेंट देखने को मिलता है।
तो हां, वर्चुअल रैम का होना, खास तौर पर बजट और मिड-रेंज डिवाइस पर अच्छा है। हालांकि, वास्तविक फिजिकल रैम की तुलना में इसमें कुछ सीमाएं हैं, लेकिन यह परफॉर्मेंस में काफी सुधार कर सकता है, खास तौर पर मल्टीटास्किंग के लिए।
हालांकि, यह ध्यान रखना जरूरी है कि वर्चुअल रैम का होना कोई परमानेंट सॉल्यूशन नहीं है और इससे आपके डिवाइस के परफॉर्मेंस में कोई खास सुधार नहीं आएगा। फिर भी, लिमिटेड रिसोर्सेस के साथ कुछ एक्स्ट्रा परफॉर्मेंस हासिल करने के लिए यह एक मददगार टूल है।
(कवर फोटो क्रेडिट-yahoo)
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