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MBBS : मिसाइलें, घायल सैनिकों का इलाज, खाने को नहीं, बिहार के छात्र ने बताया युद्ध के बीच यूक्रेन से कैसे किया एमबीबीएस

  • यूक्रेन से एमबीबीएस करने वाले बिहार के पंकज ने कहा कि हम अपने सामने बैलिस्टिक मिसाइल, रॉकेट और ड्रोन हमले देखते थे। ये सब हम लाइव देखते थे। रात को भी हम सही से सो नहीं पाते थे कि कही हमला न हो जाए।

Pankaj Vijay लाइव हिन्दुस्तानFri, 23 Aug 2024 05:13 PM
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यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध छिड़ने के चलते वर्ष 2022 में भारतीय मेडिकल छात्र स्वदेश लौट आए थे। तनाव कम होने पर बहुत से छात्र एमबीबीएस करने वापस यूक्रेन लौट गए जबकि कुछ ने फिर से वहां जाने की नहीं सोची। डॉक्टरी की बीच में छूटी पढ़ाई पूरी करने के लिए वापस यूक्रेन जाने की हिम्मत करने वाले स्टूडेंट्स में बिहार में पंकज कुमार राय भी थे। यूक्रेन से हाल ही में एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने वाले डॉ. पंकज राजधानी कीव में प्रैक्टिस कर रहे हैं। उन्होंने एमबीबीएस की पढ़ाई के दौरान रूस यूक्रेन युद्ध के चलते सामने आईं चुनौतियों को बयां किया है। उन्होंने न्यूज एजेंसी एएनआई से कहा, "मैंने 2018 में यूक्रेन से एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू की। जब युद्ध शुरू हुआ (फरवरी 2022 में), मैं यूक्रेन में था। इसके तुरंत बाद, मैं भारत के लिए रवाना हो गया। नवंबर में यूक्रेन वापस लौट आया। मैं अपना ज्यादातर समय अस्पताल में अपने शिक्षकों की मदद करने में बिताता था। मैं दिन में 4-6 सर्जरी में उनकी मदद करता था। घायल सैनिकों को ज्यादातर कीव लाया जाता था। 2022 में, रोजाना हमले और अलर्ट होते थे। उस समय खाने की भी कमी थी। हम अपने सामने बैलिस्टिक मिसाइल, रॉकेट और ड्रोन हमले देखते थे। ये सब हम लाइव देखते थे। रात को भी हम सही से सो नहीं पाते थे कि कही हमला न हो जाए। मैं अस्पताल में ज्यादा रहता था क्योंकि वहां सेफ था, बंकर थे। डॉक्टर्स अंडर ग्राउंड बने कमरों में रहते थे। इस बीच, हमें पढ़ाई भी करनी थी और काम भी करना था...मुझे यहां काम करने के बहुत मौके मिले।"

उन्होंने कहा, 'घरवालों की चिंताओं से भी तनाव होता था। मैंने पहले सुना था कि विदेश में कम एक्सपोजर है। ऐसा कुछ नहीं है। यहां हर टीचर ने मुझे आगे बढ़कर मौका दिया। मैं एक बार डेडबॉडी के बगल से गुजर रहा था। तब डॉक्टर ने मुझसे पूछा कि कभी ऑटोप्सी देखी है। तो उन्होंने अगले दिन बुलाकर चार से पांच बॉडी का मेरे सामने ऑटोप्सी किया। क्लास के बाद डिपार्टमेंट खुद ही बुलाते हैं। बहुत सारी सर्जरीज में मैंने डॉक्टरों को असिस्ट किया है। मुझे अपनी यूनिवर्सिटी की तरफ से एक्सीलेंस अवॉर्ड मिला है।'

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आपको बता दें कि भारत में हर साल करीब 25 लाख स्टूडेंट्स मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट देते हैं जिसमें से करीब 13 लाख पास हो पाते हैं। लेकिन नीट क्वालिफाई करने वाले इन 13 लाख स्टूडेंट्स के लिए देश में एमबीबीएस की सिर्फ 1.10 लाख सीटें ही हैं। यह स्थिति हर साल देखने को मिलती है। नीट पास विद्यार्थियों में से अच्छी रैंक पाने वालों को ही सरकारी मेडिकल कॉलेजों में सस्ती एमबीबीएस की सीट मिल पाएगी। देश में एमबीबीएस की बेहद कम सीटें और प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की भारी भरकम फीस के चलते डॉक्टर बनने का ख्वाब संजोए हजारों स्टूडेंट्स विदेश से एमबीबीएस करने की ऑप्शन चुनते हैं।बहुत से तो ऐसे होते हैं जिन्हें देश में ही प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की एमबीबीएस सीट मिल रही होती है लेकिन उसकी भारी भरकम फीस के चलते उन्हें यूक्रेन, रूस जैसे देशों का रुख करना पड़ता है। ये ऐसे देश हैं जहां एमबीबीएस का खर्च भारत के प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों से काफी सस्ता पड़ता है। भारत की तुलना में इन देशों में कम नीट मार्क्स से दाखिला लेना संभव है।

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