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एक्सप्लेनर: IPO में सबको क्यों नहीं मिल पाते शेयर? क्या है अलॉटमेंट का गणित?

  • How is IPO allotment done: बहुत से निवेशक आईपीओ में पैसा लगाते हैं, लेकिन उन्हें शेयर अलॉट नहीं होते। आखिर ऐसा क्यों होता है? किसी को शेयर मिल जाते हैं और कोई हाथ मलता रह जाता है। आईपीओ अलॉटमेंट कैसे होता है? इन सभी सवालों के जवाब इस एक्सप्लेनर के जरिए समझेंगे..

Drigraj Madheshia लाइव हिन्दुस्तानThu, 26 Dec 2024 04:59 AM
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How is IPO allotment done: इस साल अबतक बीएसई पर 149 आईपीओ लिस्ट हुए। इनमें से 127 अपने पब्लिक इश्यू प्राइस से ऊपर और केवल 21 नीचे हैं। 127 आईपीओ लिस्टिंग डेट के दिन ही अपने निवेशकों को मुनाफा देने में कामयाब रहे। जाहिर है, सबकी किस्मत उन निवेशकों जैसी नहीं रही, जिन्हें इन 127 आईपीओ में शेयर पाने में सफल रहे। बहुत से निवेशक आईपीओ में पैसा लगाते हैं, लेकिन उन्हें शेयर अलॉट नहीं होते। आखिर ऐसा क्यों होता है? किसी को शेयर मिल जाते हैं और कोई हाथ मलता रह जाता है। आईपीओ अलॉटमेंट कैसे होता है? इन सभी सवालों के जवाब इस एक्सप्लेनर के जरिए समझेंगे..

आईपीओ क्या है

आईपीओ का फ़ुल फॉर्म इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके जरिए कोई कंपनी पहली बार अपने शेयर पब्लिक को बेचती है। जिसे प्राइमरी मार्केट कहते हैं। बाजार से जो शेयर हम खरीदते हैं, वो पहले से किसी के पास होते हैं। आईपीओ के जरिए कंपनी खुद अपना शेयर बेचकर कैपिटल मार्केट से फंड जुटाती है।

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कैसे अलॉटमेंट होता है आईपीओ शेयर

अच्छे रिटर्न की उम्मीद में हर कोई आईपीओ में इन्वेस्टमेंट करना चाहता है। लिस्टिंग के दिन ही मुनाफे की उम्मीद आईपीओ में निवेश को आकर्षित करती है। आईपीओ ऑफर की बात करें तो आमतौर कंपनियां इंस्टिट्युशनल इन्वेस्टर्स को आईपीओ के शेयर का 50 पर्सेंट हिस्सा ऑफर किया जाता है। रिटेल इन्वेस्टर्स को 35 और बड़े निवेशकों के लिए 15 प्रतिशत शेयर रखे जाते हैं। अगर कोई कंपनी 3 साल से प्रॉफिट में नहीं है तो शेयर की हिस्सेदारी का पैटर्न बदल जाता है।

शेयरों के डिमांड के मुताबिक आवेदकों को शेयर अलॉट किए जाते हैं। हम बात करेंगे कि रिटेल इन्वेस्टर्स को किस पैटर्न पर और कैसे शेयर अलॉट किए जाते हैं। उदाहरण के लिए मान लीजिए कोई कंपनी आईपीओ लाती है तो लॉट साइज और प्राइस बैंड का निर्धारण करती है।

लॉट साइज का मतलब है कि कम से कम कितने शेयर के लिए इन्वेस्टर अप्लाई कर सकता है। प्राइस बैंड का मतलब है शेयर के आईपीओ मूल्य से। अपने यहां शेयर बाजार में एक लॉट का मूल्य करीब 15000 और इससे ऊपर भी हो सकता है।

एक अन्य उदाहरण से इसे ऐसे समझें। मान लीजिए किसी कंपनी ने रिटेल इन्वेस्टर्स के लिए आईपीओ में 1000 शेयर बेचना चाहती है। इसका लॉट साइज 10 शेयरों का रखा गया है। यानी रिटेल इन्वेस्टर्स के दावेदारी के लिए 100 लॉट ही हैं।

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अलॉटमेंट का गणित

अगर यह आईपीओ कम सब्सक्राइब यानी अंडर सब्सक्राइब होता है तो लगभग सभी को इसके शेयर मिल जाएंगे, लेकिन स्थिति एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति यानी ओवर सब्सक्रिप्शन के केस में अलॉटमेंट लॉटरी सिस्टम से होता है। यानी अगर आपकी किस्मत अच्छी रही तो शेयर मिलेंगे अन्यथा नहीं।

क्या आपको आईपीओ में निवेश करना चाहिए?

एंजेल वन के मुताबिक यह तय करना कि आपके पैसे को अपेक्षाकृत नई कंपनी के आईपीओ में रखना है या नहीं, वास्तव में बेहद कठिन होता है। कंपनी के पास आपके फैसले को वापस करने के लिए पर्याप्त ऐतिहासिक डेटा नहीं होता है, क्योंकि यह अब सार्वजनिक हो रहा है। रेड हेरिंग आईपीओ डिस्ट्रीब्यूशन पर डेटा होता है, जो प्रोस्पेक्टस में दिया जाता है, आपको इसकी जांच करने की जरूरत होती है।

आईपीओ के सार्वजनिक होने के बाद अक्सर आईपीओ एक गहरी डाउनट्रेंड लेता है। शेयर प्राइस के इस गिरावट के पीछे कारण लॉक–अप पीरियड होती है। लॉक-अप पीरिएड एक संविदात्मक चेतावनी होती है, जो कंपनी के अधिकारियों और निवेशकों को अपने शेयरों को बेचने के लिए टाइम लिमिट बताती है। लॉक–अप अवधि समाप्त होने के बाद शेयर प्राइस में गिरावट हो सकती है।

फ़्लिपिंग क्या है

जो लोग सार्वजनिक रूप से जा रहे कंपनी के शेयरों को खरीदते हैं और जल्दी पैसा पाने के लिए सेकेंड्री मार्केट में बेचते हैं, उन्हें फ्लिपर्स कहा जाता है।

आईपीओ में निवेश करने से पहले आपको क्या चीजें पता होना चाहिए

यह आपके पोर्टफोलियो की यह संपत्ति होती है, जिसमें रिटर्न को रिवार्ड करने की उच्चतम क्षमता होती है। आपको पता होना चाहिए कि एक कंपनी जो जनता को अपने शेयर ऑफर करती है वह सार्वजनिक निवेशकों को पूंजी की प्रतिपूर्ति करने के लिए ऋणी नहीं होते है। आईपीओ में निवेश करने से पहले आपको अपने संभावित जोखिमों और फायदों का आंकलन करना चाहिए। अगर आप नए हैं तो किसी विशेषज्ञ या अपने व्यक्तिगत वित्तीय सलाहकार से बात कर लें।

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