धर्म की आधारशिला
- महाकुम्भ भारत की विराट संस्कृति और पुरातन धरोहर का भव्य समागम है। जैसे एक विशाल समुद्र अपने गर्भ में अनमोल रत्नों के भंडार और गूढ़ रहस्यों को एकत्रित कर वर्षों तक उनका संरक्षण करता है, वैसे ही यदि हम महाकुम्भ को भारत की सनातन परंपरा…
महाकुम्भ भारत की विराट संस्कृति और पुरातन धरोहर का भव्य समागम है। जैसे एक विशाल समुद्र अपने गर्भ में अनमोल रत्नों के भंडार और गूढ़ रहस्यों को एकत्रित कर वर्षों तक उनका संरक्षण करता है, वैसे ही यदि हम महाकुम्भ को भारत की सनातन परंपरा, धर्म-कर्म, भक्ति-उपासना और दर्शन शास्त्रों की भिन्न शैलियों का संरक्षक कहें, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह भव्य समागम न केवल भारत में प्रचलित अनेक विचारधाराओं का अद्वितीय समावेश है, बल्कि एक महोत्सव है, एक प्रतीक है, एक प्रतिशब्द है भारत की अखंडता का, उसके गौरवमयी इतिहास का, उसकी आध्यात्मिक विरासत का। महाकुम्भ एक नाद है, जिसमें भारत में उपजे और पल्लवित हुए सभी आध्यात्मिक मार्गों का स्पंद हृदय को झंकृत करता है। यही कारण है कि यह सभी भक्तों के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव बन जाता है। अनेक ऊर्जाओं से स्पंदित हुआ महाकुम्भ का भव्य महोत्सव जीवन रूपांतरण का द्वार है।
महाकुम्भ के आरंभ के संबंध में पुराणों में समुद्र मंथन की कथा आती है। अमृत प्राप्त करने के लिए देवों और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन आरंभ किया। मंथन के दौरान जब अमृत-कलश निकला, तब उसे प्राप्त करने के लिए देवों और असुरों के मध्य लड़ाई हुई। इस छीना-झपटी में जिन चार क्षेत्रों में उस कलश से बूंदें गिरीं, वहां कुम्भ का आयोजन किया जाता है। आदि शंकराचार्य ने भी ऐसा विधान किया था कि इन चार स्थानों पर संत समाज और धर्मानुरागी एकत्रित हों। कुछ विद्वानों का कहना है कि पहला कुम्भ उत्सव भगवान शिव ने ही रखा था। भगवान शिव का संबंध ज्ञान से भी है, विज्ञान से भी है और धर्म से भी है। शिव की सवारी है वृषभ नंदी, नंदी अर्थात् धर्म का सक्रिय रूप। पुरुषार्थ के चार स्तंभ हैं- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इन चारों का विचार हो और इनकी गति ऊर्ध्वगामी हो सके, इसलिए महाकुम्भ का महत्व बढ़ जाता है।
हमारे देश में मुख्य रूप से छह दर्शन हैं। इन सभी दर्शनों के जितने भी आचार्य, संत, ज्ञानी और दर्शनशास्त्री हैं, वे सभी लाखों की संख्या मेें कुम्भ मेले में एकत्रित होते हैं। कोई यम-नियम, योगासन सिखाता है, कोई वेदांत, तो कोई दान की महिमा बताता है। इस प्रकार जीवन में धर्म के संस्कारों की एक सुदृढ़ आधारशिला रखी जा सकती है।
हमारे अधिकतर ऋषि-महात्मा इन पावन नदियों के किनारे रहकर ही तपस्या करते रहे हैं। जब हम इन देव नदियों के जल में प्रवेश करते हैं, तो हमारा संबंध उन सभी से जुड़ जाता है। यह हमारे जीवन की अविस्मरणीय घटना हो जाती है। महाकुम्भ हमारी युवा पीढ़ी को धर्म का संस्कार देने का सबसे उत्तम अवसर है।
आनंदमूर्ति गुरुमां
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