Hindi Newsओपिनियन ब्लॉगHindustan opinion column 21 January 2025

गाजा में अमन का नया आगाज

  • तीन इजरायली बंधकों की रिहाई के साथ हमास और इजरायल के बीच युद्ध-विराम के पहले चरण की शुरुआत तो हुई है, लेकिन यह अपने अंजाम तक पहुंच सकेगा, इस पर फिलहाल संदेह है…

Hindustan लाइव हिन्दुस्तानMon, 20 Jan 2025 10:52 PM
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गाजा में अमन का नया आगाज

विवेक काटजू, पूर्व राजदूत

तीन इजरायली बंधकों की रिहाई के साथ हमास और इजरायल के बीच युद्ध-विराम के पहले चरण की शुरुआत तो हुई है, लेकिन यह अपने अंजाम तक पहुंच सकेगा, इस पर फिलहाल संदेह है। करीब 15 महीने पहले 7 अक्तूबर, 2023 को हमास के लड़ाकों ने इजरायली सुरक्षा में सेंध लगाते हुए करीब 1,200 इजरायली व अन्य देशों के नागरिकों की हत्या कर दी थी और करीब 245 लोगों को बंधक बनाकर अपने साथ ले गए थे। इस घटना की स्वाभाविक ही दुनिया भर के तमाम देशों ने निंदा की थी, लेकिन इजरायल में गुस्सा इस कदर था कि प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इसे नाजी नरसंहार के बाद यहूदियों के लिए सबसे भयंकर दिन बताया था।

हमास के खिलाफ इस जंग में तकरीबन 46,700 गाजावासियों की मौत हुई है, जिनमें हमास के लड़ाके भी शामिल हैं। औरतों व बच्चों की भी बड़ी संख्या में जान गई है। इजरायली हवाई व जमीनी हमलों से गाजा में इतनी बर्बादी हुई है कि शायद ही कोई घर या इमारत सुरक्षित बची हो। यहां के ज्यादातर लोग बेघर हो चुके हैं और खाने-पीने, दवाई, ईंधन जैसी बुनियादी सुविधाओं की भी यहां घोर कमी हो गई है। यही वजह थी कि हमास के आतंकी हमले के कारण दुनिया भर में सहानुभूति बटोरने वाले इजरायल पर जल्द से जल्द युद्ध-विराम करने का दबाव बनाया जा रहा था। मगर इजरायल बार-बार यही कहता रहा कि जब तक हमास को समूल खत्म न कर दिया जाए, तब तक युद्ध का अंत नहीं होगा।

बहरहाल, अमेरिका, मिस्र और कतर की मध्यस्थता के कारण इजरायल को हमास के साथ हाथ मिलाना पड़ा है। इसमें अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की प्रमुख भूमिका रही है। उन्होंने अपने मित्र स्टीव विटकॉफ को हमास और इजरायल में सुलह कराने की जिम्मेदारी सौंपी थी। विटकॉफ को ‘ट्रंप-2.0’ में पश्चिम एशिया का विशेष दूत बनाया गया है। दरअसल, चुनाव जीतने के बाद ही ट्रंप ने यह साफ कर दिया था कि अपने शपथ-ग्रहण से पहले वह युद्ध-विराम की इच्छा रखते हैं। ऐसा ही हुआ है। ट्रंप की शपथ से एक दिन पहले गाजा-पट्टी में बंदूकें थम गई हैं।

इस युद्ध-विराम के कई पहलू उल्लेखनीय हैं। मसलन, हमास 33 बंधकों को छोड़ेगा और इजरायल अपनी तरफ से लगभग 1,890 फलस्तीनी कैदियों को रिहा करेगा। यह कवायद छह हफ्तों में पूरी होगी। इसी दौरान इजरायल की सेना गाजा-पट्टी के आबादी वाले इलाकों को छोड़कर अन्य स्थानों पर चली जाएगी और गाजा के लोगों के लिए लगभग 600 ट्रकों में ईंधन, खाद्य-सामग्री, दवाइयां आदि रोज पहुंचाने में मदद करेगी। यह भी तय हुआ है कि युद्ध-विराम के दूसरे चरण पर आगामी 4 फरवरी से हमास व इजरायल में बातचीत शुरू होगी और 2 मार्च को पहले चरण के समाप्त होते-होते अगले छह हफ्तों में हमास की तरफ से तमाम बंधकों को रिहा कर दिया जाएगा। इजरायल का मानना है कि करीब 90-100 नागरिक अब भी हमास के कब्जे में हो सकते हैं, जिनमें से 65 तो जीवित हैैं ही। इस रिहाई के एवज में इजरायल बाकी फलस्तीनी कैदियों को रिहा करेगा और इजरायली सेना गाजा-पट्टी को खाली करके बाहर निकल जाएगी। मगर यह दूसरा चरण जितना कागजों पर आसान दिख रहा है, उतना शायद ही हकीकत की जमीन पर उतर सकेगा।

दरअसल, ऐसी कई वजहें हैं, जिनसे दूसरा चरण प्रभावित हो सकता है। पहली, इजरायल अपने सैनिकों को मिस्र और गाजा-पट्टी के बीच रखना चाहता है, जो हमास को शायद ही मंजूर होगा। दूसरी, इजरायल की गाजा-पट्टी से वापसी के बाद वहां शासन की बागडोर कौन संभालेगा, क्योंकि हमास की सत्ता शायद ही इजरायल या अमेरिका को मंजूर हो सकेगी? एक बड़ा सवाल पुनर्वास का भी है। गाजा के पुनर्निर्माण का यह काम आखिर कैसे पूरा होगा? संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियां मानती हैं कि 40 अरब डॉलर इसमें खर्च हो सकता है, तो यह पैसा कहां से आएगा? फिर, युद्ध-विराम तो ट्रंप की धमकी से लागू हो गया, लेकिन क्या अमेरिकी सरकार इजरायल पर इतना दबाव बना सकेगी कि वह दूसरे चरण के लिए सफलतापूर्वक आगे बढ़ सके? हालांकि, नेतन्याहू ने धमकी दी है कि यदि दूसरे चरण में मुश्किलें पेश आईं या युद्ध-विराम को हमास ने तोड़ा, तो फिर वह हमले करने से पीछे नहीं हटेंगे।

मेरा मानना है कि यदि एक बार युद्ध-विराम हो गया, तो भले ही छिटपुट घटनाएं होती रहें, लेकिन भीषण जंग अब शायद ही होगी। अब वैश्विक महाशक्तियों को पश्चिम एशिया की स्थिति पर गौर करना चाहिए। 1948 से चली आ रही फलस्तीन-समस्या के समाधान के लिए अरब देशों, इजरायल और फलस्तीन पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को दबाव डालना होगा। यह काम मुश्किल दिखता है, क्योंकि इजरायल और फलस्तीन के बीच की खाई वेस्ट बैंक और येरुशलम पर अधिकार को लेकर इतनी गहरी हो चुकी है कि इसे पाटना अब असंभव-सा दिखता है।

इसके अतिरिक्त, दुनिया की नजर डोनाल्ड ट्रंप की पश्चिम एशिया नीति पर भी है। हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि अपने पहले कार्यकाल की नीतियों को ही वह किसी न किसी तरह से फिर से लागू करने की कोशिश करेंगे। वह चाहेंगे कि इजरायल और अरब देशों के बीच रिश्ते फिर से व्यापक रूप से सामान्य बन जाएं, खासतौर से इजरायल और सऊदी अरब के बीच में राजनयिक संबंध शुरू कराने की वह कोशिश करेंगे। मगर इसमें खासी मुश्किलें भी हैं, क्योंकि जिस प्रकार से इजरायल ने गाजा-पट्टी में कार्रवाई की है, उससे अरब और इस्लामी दुनिया में खासी नाराजगी है।

इन सबके बीच ट्रंप की पश्चिम एशिया नीति का सबसे प्रमुख उद्देश्य होगा, ईरान पर फिर से पूर्ण राजनयिक और राजनीतिक चोट। दरअसल, वह चाहते हैं कि ईरान में सत्ता-परिवर्तन हो। तेहरान पर शिकंजा कसने के लिए वह उस पर और प्रतिबंध लगाने की सोच सकते हैं, लेकिन पिछले चार वर्षों में ईरान को चीन और रूस का काफी साथ मिला है। इसी कारण, उस पर अमेरिका का दबाव तो बनेगा, लेकिन ट्रंप के लिए ईरान पर पूर्ण अंकुश लगाना आसान नहीं होगा। ईरान पश्चिम एशिया का एक प्रमुख देश है और चीन अनवरत इसी कोशिश में है कि उसके और सऊदी अरब के बीच रिश्ते सामान्य बन जाएं। कुल मिलाकर, अब भी कई सवालों के जवाब तलाशे जाने बाकी हैं।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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