बिहार में क्यों है बड़े भूकंप का अधिक खतरा, हर जिला है जद में; 8 अतिसंवेदनशील
- हिमालयन टेक्टोनिक प्लेट के पास बिहार के स्थित होने के चलते वैज्ञानिकों को हमेशा बड़े झटके की आशंका रहती है। पिछला रिकॉर्ड देखें तो 1764 में रिक्टर पैमाने पर 6 तीव्रता वाला भूकंप आया था। उसके बाद 1833 में 7 तीव्रता वाला भूकंप आया।
हिमालय से नजदीक होने के कारण बिहार पर भूकंप का खतरा अधिक रहता है। रिकॉर्ड देखें तो हर सौ वर्ष पर राज्यवासियों को बड़े झटके झेलने पड़ रहे हैं। पिछली बार आए विनाशकारी भूकंप की 100वीं बरसी आने में दस वर्ष ही बचे हैं। यही कारण है कि हाल के झटकों ने प्रशासनिक अमला के साथ ही बिहार के लोगों की चिंता बढ़ा दी है। भूगर्भशास्त्रित्तें और भूकंप पर अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने क्षति कम करने के उपाय करने और लोगों को जागरूक करने की अपील की है।
बिहार के सभी जिलों के लोगों ने मंगलवार को भूकंप के झटके महसूस किए। इससे पहले अप्रैल 2015 में दो दिनों तक झटके महसूस किए गए थे। हिमालयन टेक्टोनिक प्लेट के पास बिहार के स्थित होने के चलते वैज्ञानिकों को हमेशा बड़े झटके की आशंका रहती है। पिछला रिकॉर्ड देखें तो 1764 में रिक्टर पैमाने पर 6 तीव्रता वाला भूकंप आया था। उसके बाद 1833 में 7 तीव्रता वाला भूकंप आया। उसके 99 साल बाद 1934 में आए भूकंप से बड़ी तबाही मची थी।
1934 में भूकंप की तीव्रता 8.4 थी, तब राज्य में करीब दस हजार लोगों की मौत हुई थी। 1934 के 80 साल बाद 25-26 अप्रैल 2015 को दो दिनों तक बिहार में भूकंप के झटके महसूस किए गए थे। वैज्ञानिकों का मानना है कि प्लेट के टकराने के बाद भूगर्भ के अंदर का तनाव (स्ट्रेन इनर्जी) पूरी तरह बाहर नहीं आ पाया है। यह निकलना चाहता है। यही खतरा नेपाल और बिहार पर मंडराते रहता है। यही कारण है कि बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने राजमिस्त्रित्त्यों, अभियंताओं को प्रशिक्षण देने के साथ ही लोगों को जागरूक करने का काम तेज कर दिया है।
हर जिला भूकंप की जद में
राज्य का हर जिला भूकंप की जद में है। कुल 38 में से आठ जिले अतिसंवेदनशील जोन पांच में आते हैं। 24 जिले जोन चार में और दक्षिण बिहार के छह जिले जोन तीन में आते हैं।
● जोन 5 : किशनगंज, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, अररिया, सीतामढ़ी, दरभंगा और मधुबनी।
● जोन 3 : गया, औरंगाबाद, अरवल, रोहतास, बक्सर, कैमूर।
● जोन 4 : शेष 24 जिले।