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जलकुम्भी से मिलेगा रोजगार, सजेगा आपका घर-आंगन; बिहार के इस जिले में रिसर्च

जलकुंभी पर शोध करने में असम से आए प्रशिक्षक मदद करेंगे। इन उत्पादों को तैयार करने में छात्रों से ज्यादा छात्राओं को जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। ज्यादा से ज्यादा छात्राओं को इसके उत्पाद तैयार करने के लिए प्रेरित किया जाएगा। किलकारी बिहार बाल में योजनाओं को अंतिम रूप दिया जा रहा है

Sudhir Kumar हिन्दुस्तान, भागलपुर, रवि कुमारWed, 6 Nov 2024 04:01 PM
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आम तौर पर तालाब-पोखर आदि में उग आने से लोगों के जी का जंजाल बनी जलकुंभी अब उनका घर-आंगन सजाएगी। न सिर्फ इससे घर-द्वार सजाने के लिए सजावट के सामान बनाये जाएंगे, बल्कि घरेलू उपयोग के सामान भी प्रचुर मात्रा में बनाया जाएगा। इसके अलावा इससे मोटे गत्ते, कागज और कॉपियां भी बनाई जाएंगी। एक तरफ जलकुंभी से सजावटी सामान का निर्माण किया जाएगा तो दूसरी ओर इससे तैयार उत्पाद लोगों के लिए रोजगार का द्वार भी खोलेगा। इसके लिए जल्द ही किलकारी बिहार बाल भवन के सहयोग से छात्र-छात्राएं जलकुंभी पर शोध करने साहू परबत्ता स्थित जगतपुर झील जाएंगे।

जलकुंभी पर शोध करने में असम से आए प्रशिक्षक इनकी मदद करेंगे। इन उत्पादों को तैयार करने में छात्रों से ज्यादा छात्राओं को जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। ज्यादा से ज्यादा छात्राओं को इसके उत्पाद तैयार करने के लिए प्रेरित किया जाएगा। इसको लेकर जिला मुख्यालय के कंपनीबाग स्थित किलकारी बिहार बाल में योजनाओं को अंतिम रूप दिया जा रहा है।

जगतपुर झील को बनाया जाएगा शोध स्थल

दरअसल, जलकुंभी पत्ते और उसके तना रूपी निचले हिस्से से आर्ट और क्राफ्ट उत्पाद और उसके अंदरूनी रेशे से मोटे गत्ते तथा कागज बनाए जाने पर किलकारी की ओर से छात्र-छात्राओं को शोध कराया जाएगा। इस शोध प्रक्रिया के दौरान बच्चों को जगतपुर झील ले जाया जाएगा।

इस बाबत भागलपुर किलकारी बिहार बाल भवन के कमिश्नरी कार्यक्रम समन्वयक साहिल राज ने बताया कि बच्चों को जलकुंभी पर शोध कराया जाएगा। इससे अलग-अलग सजावटी सामान समेत घरेलू उपयोग की सामग्री भी तैयार करने का प्रशिक्षण बच्चों को दिया जाएगा। बच्चों को प्रशिक्षण दिलाने के लिए असम से प्रशिक्षकों को बुलाने की योजना है। इस साल दिसंबर में इस दिशा में काम किया जाएगा। इससे सबसे ज्यादा फायदा साहू परबत्ता स्थित कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय की छात्राओं को सबसे ज्यादा फायदा होगा। वहां नामांकित सभी छात्राओं को जलकुंभी से उत्पाद निर्माण करने का प्रशिक्षण दिया जाएगा।

असम में जलकुंभी से उत्पाद तैयार करने की परंपरा

गौरतलब है कि इसमें छोटे-छोटे सुंदर नीले फूल भी होते हैं। यह जलकुंभी पानी का बड़े पैमाने पर अवशोषण कर उसे प्रदूषित करती है। इसलिए किसानों के लिए यह एक बड़ी समस्या है। दरअसल, असम में बड़े पैमाने पर जलकुंभी के रेशों से सुंदर कलाकृतियां समेत अन्य घरेलू उत्पाद बनाने की परंपरा सी रही है। वहां जलकुंभी से सुंदर पर्स, डोलची, खाना रखने के डिब्बे, रोटियां रखने के डिब्बे आदि समेत कुर्सियां व अन्य उत्पाद बनाए जाते हैं। इसको लेकर कमिश्नरी कार्यक्रम समन्वयक साहिल राज ने बताया कि किलकारी बच्चों को कला-संस्कृति को समझने और उसे जीवंत रखने की कला सिखाती है। इससे बच्चों का शारीरिक ही नहीं, बल्कि बौद्धिक विकास भी होता है।

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