मां-बाप की हार का बदला; सुशील पांडे ने ऐसे तरारी में पहली बार भाजपा का कमल खिलाया
- भोजपुर जिले में चार बार विधायक रहे नरेंद्र पांडेय उर्फ सुनील पांडेय के बेटे विशाल प्रशांत उर्फ सुशील पांडेय ने तरारी सीट पर पिता सुनील पांडेय और मां गीता पांडेय की हार का बदला सीपीआई-माले से लेकर यहां पहली बार भाजपा का कमल खिला दिया है।
भोजपुर जिले में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी- मार्क्सवादी लेनिववादी (सीपीआई-एमएल) के बढ़ रहे राजनीतिक वर्चस्व के बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में तीन महीने पहले शामिल हुए विशाल प्रशांत उर्फ सुशील पांडेय ने तरारी सीट पर पहली बार बीजेपी का कमल खिला दिया है। विशाल प्रशांत पीरो और बाद में तरारी से लगातार चार बार विधायक रहे बाहुबली नेता नरेंद्र पांडेय उर्फ सुनील पांडेय के बेटे हैं। विशाल ने सीपीआई-माले के राजू यादव को 10612 वोटों से हराया है। पिछले नौ साल में जेडीयू, लोजपा और रालोजपा के रास्ते भाजपा में पहुंचे सुनील पांडेय के बेटे के लिए तरारी सीट जीतना विधायक बनने से कुछ ज्यादा भी है। विशाल ने तरारी में माले को हराकर अपनी मां और अपने पिता की हार का बदला ले लिया है।
तरारी सीट परिसीमन से पहले पीरो सीट हुआ करती थी। 2000 से 2005 के दूसरे चुनाव तक पीरो से सुनील पांडेय पहले समता पार्टी और बाद में जेडीयू के विधायक बने। जेडीयू से खटपट के बाद भी 2010 के चुनाव में उनको टिकट मिला और वो चौथी बार जीते। दबंगई और नटखट वजहों से विवाद में रहने वाले सुनील पांडेय 2015 के चुनाव से पहले रामविलास पासवान की लोजपा में चले गए थे। रामविलास ने सुनील पांडेय की पत्नी गीता पांडेय को लड़ाया लेकिन उनको 272 वोट के मामूली अंतर से सीपीआई-माले के सुदामा प्रसाद ने हरा दिया। इस हार के साथ ही सुनील पांडेय का दस साल का राजनीतिक करियर थम सा गया।
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2020 का विधानसभा चुनाव आया तो भाजपा ने सुनील पांडेय को पत्नी गीता पांडेय को लड़ाने को कहा लेकिन सुनील इस बार खुद लड़ने पर अड़ गए। बात नहीं बनी तो सुनील पांडेय निर्दलीय ही लड़े और भाजपा ने यहां कौशल कुमार विद्यार्थी को टिकट दिया। सीपीआई-एमएल के सुदामा ने इस बार सुनील पांडेय को भी हरा दिया और जीत का अंतर भी दस हजार से ऊपर चला गया। इस के बाद सुनील पांडेय पशुपति पारस कैंप के साथ रहे। 2025 के विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे सुनील पांडेय लगातार जेडीयू और भाजपा के नेताओं के संपर्क में भी थे। अगस्त में भाजपा ने सुनील पांडेय और उनके बेटे विशाल प्रशांत को शामिल कर लिया।
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विशाल प्रशांत की जीत में एक तो माले के कैंडिडेट सेलेक्शन ने भी मदद की। माले ने जब-जब इस सीट पर अति पिछड़ा वैश्य सुदामा प्रसाद को उम्मीदवार बनाया, उसे जीत मिली। वो दो बार विधायक बने और इस बार आरा से सांसद भी बन गए। लेकिन राजू यादव को जब-जब लोकसभा या विधानसभा का टिकट मिला, वैश्य और अति पिछड़ा वोट नहीं जुड़ सके और उन्हें बस काडर वोट से काम चलाना पड़ा। एनडीए ने भी इस बार इस सीट को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था। यहां नीतीश ने सभा की, सम्राट चौधरी ने सभा की, चिराग पासवान ने रोड शो किया। बूथ मैनेजमेंट में भी गठबंधन ने जान झोंक रखी थी क्योंकि सुनील पांडेय के पास संसाधन की कोई कमी नहीं है।
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भोजपुर जिले की सात विधानसभा सीटों पर 2020 में तीन पर राजद, दो पर सीपीआई-माले और दो पर भाजपा को जीत मिली थी। आरा लोकसभा से माले के सुदामा प्रसाद के जीतकर सांसद बन जाने से जिले में माले का प्रभाव काफी बढ़ गया है। माले से चिंतित सवर्ण इस बार वोट करने घर से निकले जो लोकसभा चुनाव में भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह से नाराजगी की वजह से उदासीन रह गए थे।
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प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने तरारी में सेना के उपप्रमुख रहे लेफ्टिनेंट जनरल एसके सिंह को टिकट दिया था। उनके लड़ने में तकनीकी दिक्कत की वजह से जब टिकट बदला तो राजपूत जाति से ही किरण सिंह को टिकट दिया। लेकिन सवर्ण कन्फ्यूज नहीं हुए और भाजपा के साथ बने रहे। इससे पहले 2015 में गीता पांडेय जब हारी थीं तो कांग्रेस नेता अखिलेश प्रसाद सिंह यहां लड़ गए थे और सवर्ण वोटों का जबर्दस्त बंटवारा हुआ था। 2020 में सुनील पांडेय और भाजपा के बीच वोट बंट गया था। इस उपचुनाव में ऐसा कुछ नहीं हुआ जिसकी वजह से सुशील पांडेय जीत गए।