Hindi Newsबिहार न्यूज़This village of Bihar became mini Kolkata for flower farming supply to nepal

मिनी कोलकाता बना बिहार का यह गांव, फूलों की खेती से किसान हुए खुशहाल; नेपाल तक सप्लाई

यहां के फूलों की डिमांड मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, शिवहर, मोतिहाी और पड़ोसी देश नेपाल तक है। इस गांव का रकवा करीब 40 एकड़ की है, जहां 30 एकड़ में फुल की खेती होती है। गांव के किसान गेंदा, चेरी और चीना, मोगरा, रजनीगंधा की खेती करते है।

Sudhir Kumar हिन्दुस्तान, सीतामढ़ी, सक्षम कुमार वर्माMon, 18 Nov 2024 01:54 PM
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बिहार के सीतामढ़ी जिले के बथनाहा प्रखंड का बैरहा गांव फूलों की खेती से मिनी कोलकाता बन गया है। यहां की बड़ी आबादी फूलों की खेती कर रही है। इससे सीतामढ़ी के लोगों को कोलकता का रास्ता नही देखना पड़ रहा, बल्कि यहां के फूल कई जिलों में अपनी सुगंध फैला रही है। पहले सीतामढ़ी व शिवहर का बाजार फूलों के लिए बंगाल पर निर्भर था। गेंदा के विभिन्न किस्म, मोगरा, राजनीगंधा की बड़े पैमाने पर खेती होने के कारण ही इस गांव को लोग मिनी कोलकाता के नाम से भी जानने लगे हैं।

यहां के फूलों की डिमांड मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, शिवहर, मोतिहाी और पड़ोसी देश नेपाल तक है। इस गांव का रकवा करीब 40 एकड़ की है, जहां 30 एकड़ में फुल की खेती होती है। किसानों ने बताया कि आज से 10 से 12 साल पहले तक ये लोग आम किसान की तरह पारंपरिक खेती करते थे। लेकिन, फूलों की खेती का आइडिया पांरपरिक खेती से अलग कर दिया।

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125 किसान फूलों की खेती कर गांव को बना रहे सुगंधित

गांव के किसान गेंदा, चेरी और चीना, मोगरा, रजनीगंधा की खेती करते है। इस खेती से करीब 125 किसान जुड़े हुए है, जो फुल की खेती कर अपनी किस्मत संवार रहे हैं। किसान नंदलाल महतो, नवीन कुमार और रमेश महतो समेत आधा दर्जन किसानों ने बताया कि सबसे अधिक कमाई लगन और त्योहार में होती है। वैसे आम दिनों में उतना पैसा नहीं मिलता है। लगन के समय तो एक मिनट फुर्सत नहीं मिलती है। रिश्तेदार या आसपास के गांव के लोग बुलाने पड़ते है। चुकि हर घर में फुल की खेती होती है तो सब अपने अपने माला गूथते है। ऐसे में डिमांड अधिक होती तो बाहर से आदमी बुलाकर काम करा लेते है। किसानों ने कहा कि एक बीघा में लागत छोड़कर एक लाख रूपया की बचत हो जाती है, जो सब्जी या अन्य फसल की खेती से अच्छा मुनाफा देता है।

दो एकड़ से शुरू की थी फूलों की खेती

पहले गांव के किसान पारंपरिक खेती करते थे। इसी बीच गांव के एक किसान को उसके रिश्तेदार ने 15 साल पहले फूल की खेती के बारे में बताया। किसान ने दो एकड़ में खेती शुरू की और गांव के लोगों को भी रोजगार दिया। अन्य किसान भी इस खेती से जुड़ने लगे और देखते ही देखते हर घर के लोग फुल की खेती करने लगे। यहां किसानों ने पहले गेंदा के फूलों की खेती शुरू की।

जब, मुनाफा हुआ तो गेंदा के अलग-अलग प्रजाति की खेती करना शुरु किया। अब यहां के किसान बंगाल रास्ता छोड़ खुद ही रजनीगंधा की भी खेती शुरु कर दी है। यहां के 25 किसानों ने रजनीगंधा की खेती की शुरु की। कोई दो कट्टा तो कोई तीन से 10 कट्टा जमीन में रजनीगंधा की खेती कर रहे है।

क्या कहते हैं अधिकारी?

किसानों को प्लाटिंग मटेरियल के रूप में गेंदा फूल के साथ-साथ रजनीगंधा (ट्यूब रोज) के बीज भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इससे किसान फूल उत्पादन और बेहतर कर सके। किसान अपनी आमदनी को बढ़ा सकेंगे। यहां के किसान गेंदा की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं। फूलों की खेती करने वाले किसानों का समूह बनाकर प्रोत्साहित किया जा रहा है। विभागीय सहायता भी उपलब्ध कराई जा रही है। गेंदे संग रजनीगंधा की खेती हो रही है। - रजनीकांत भारती, उप परियोजना निदेशक, आत्मा।

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