बिहार में बिजली दरें बढ़ाने वाली याचिका पर फैसला नहीं, आयोग ने दिवाली तक मांगे कागज
कंपनी की दलील थी कि आयोग ने अपने निर्णय में राज्य सरकार की ओर से मिले 1200 करोड़ के अनुदान की गणना नहीं की है। इससे कंपनी की आमदनी अधिक हो गई। इस अनुदान को शामिल कर लिया जाए तो कंपनी घाटे में रहेगी।
बिहार विद्युत विनियामक आयोग ने बिजली दर बढ़ाने संबंधी कंपनी की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई की। आयोग के अध्यक्ष शिशिर सिन्हा ने कंपनी की दलीलों व गैर सरकारी संगठन के प्रतिनिधियों के पक्ष को सुना। हालांकि आयोग ने कोई निर्णय नहीं सुनाया और निर्णय सुरक्षित रख लिया। शुक्रवार को हुई सुनवाई के दौरान विनियामक आयोग ने कंपनी से कई मसलों पर जानकारी मांगी। आधी-अधूरी जानकारी होने के कारण ही आयोग कोई फैसला नहीं ले सका। कंपनी की दलील थी कि आयोग ने अपने निर्णय में राज्य सरकार की ओर से मिले 1200 करोड़ के अनुदान की गणना नहीं की है। इससे कंपनी की आमदनी अधिक हो गई। जबकि इस अनुदान को शामिल कर लिया जाए तो कंपनी घाटे में रहेगी।
बिजली संकट होने पर कंपनी ने बाजार लागत से काफी अधिक मूल्य पर खरीद कर लोगों को बिजली आपूर्ति की है। इसकी भी गणना नहीं की गई। आयोग ने कंपनी को 15 फीसदी के नुकसान को आधार बनाकर गणना की है जबकि केंद्र की आरडीएसएस योजना में बिहार को 19.50 फीसदी पर नुकसान रखना है। कंपनी की इन दलीलों पर आयोग ने कई सवाल पूछे और उसे लिखित रूप से दिवाली तक आवश्यक कागजात कार्यालय में जमा करने को कहा।
आयोग ने दिया था ये फैसला
वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए नॉर्थ बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड और साउथ बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड ने 23835.31 करोड़ की मांग की थी। बिजली की बिक्री से होने वाली आमदनी के बावजूद कंपनी ने 1184.41 करोड़ कम होने का हवाला दिया था। आयोग ने सभी तथ्यों की समीक्षा कर बिजली कंपनी का खर्च 21545.97 करोड़ ही माना। बिजली की बिक्री से कंपनी को होने वाली आय के बाद मात्र 6.69 करोड़ का अंतर पाया और बिजली दरों में कोई वृद्धि नहीं की। इसी के विरोध में कंपनी ने बिजली दरों में वृद्धि करने के लिए संशोधित याचिका दायर की है।