लोकसभ चुनाव 2024: बिहार में बीजेपी और आरजेडी की राह नहीं होगी आसान, समझिए सियासी गणित
जनवरी 2024 में महागठबंधन का साथ छोड़ एनडीए में जाने वाले नीतीश कुमार के खिलाफ राजद लगातार हमला बोल रही है। राजद ने जदयू के खिलाफ मजबूत उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं।
जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार के भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए में शामिल होने के बाद क्या एक बार फिर 2019 लोकसभा चुनाव परिणाम देखने को मिलेगा? यह तो अब सात चरणों में वोटिंग होने के बाद चार जून 2024 को चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद ही पता चल जाएगा। जनवरी 2024 में महागठबंधन का साथ छोड़ एनडीए में जाने वाले नीतीश कुमार के खिलाफ राजद लगातार हमला बोल रही है। राजद ने जदयू के खिलाफ मजबूत उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। वहीं भाजपा बिहार में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे पर बहुत अधिक निर्भर हो दिखाई दे रही है। पीएम मोदी की बिहार में पहली चुनावी जनसभा 4 अप्रैल को जमुई में है।
जेएनयू के पूर्व महासचिव और पालीगंज विधायक संदीप सौरव को सीपीआई-एमएल ने तीन बार के जेडीयू सांसद कौशलेंद्र कुमार के खिलाफ नालंदा से मैदान में उतारा है। शिक्षकों के मुद्दों पर मुखर विरोध के कारण संदीप सौरव बिहार में एक जाना पहचाना चेहरा रहे हैं। इसी तरह, एक अन्य सीपीआई-एमएल विधायक सुदामा प्रसाद आरा से केंद्रीय मंत्री आरके सिंह को टक्कर देंगे। काराकाट में पार्टी के पूर्व विधायक राजाराम सिंह एक अन्य पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा से मुकाबला करेंगे।
भाजपा ने लोजपा (रामविलास) प्रमुख चिराग पासवान की मांग को मानते हुए हाजीपुर समेत 5 सीटें दे दी। वहीं भाजपा के इस फैसले से नाराज चिराग के चाचा पशुपति पारस ने केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा दे डाला। हालांकि कुछ दिन बाद वो भी मान गए। वहीं माना जा रहा था कि वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी, जो 2014 में भाजपा गठबंधन के साथ थे और बाद में महागठबंधन के साथ चले गए, एक बार फिर एनडीए में शामिल हो सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। इसके अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाह की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) के साथ भी ऐसा ही हुआ, जिसे अपनी एक सीट से ही संतोष करना पड़ा। इस बीच असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने इस बार बिहार की 15 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। बता दें कि 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने पांच विधानसभा सीटें जीती थी। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि एआईएमआईएम मुस्लिम बहुल इलाकों में सेंधमारी कर सकती है।
भाजपा ने लोजपा (रामविलास) प्रमुख चिराग पासवान की मांग को मानते हुए हाजीपुर समेत 5 सीटें दे दी। वहीं भाजपा के इस फैसले से नाराज चिराग के चाचा पशुपति पारस ने केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा दे डाला। हालांकि कुछ दिन बाद वो भी मान गए। वहीं माना जा रहा था कि वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी, जो 2014 में भाजपा गठबंधन के साथ थे और बाद में महागठबंधन के साथ चले गए, एक बार फिर एनडीए में शामिल हो सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। इसके अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाह की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) के साथ भी ऐसा ही हुआ, जिसे अपनी एक सीट से ही संतोष करना पड़ा। इस बीच असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने इस बार बिहार की 15 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। बता दें कि 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने पांच विधानसभा सीटें जीती थी। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि एआईएमआईएम मुस्लिम बहुल इलाकों में सेंधमारी कर सकती है।
एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज के पूर्व निदेशक डीएम दिवाकर ने कहा है कि इस बार बिहार में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए और राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन के बीच सीधी लड़ाई है। जिस तरह भाजपा ने नीतीश कुमार की वापसी के बाद छोटी पार्टियों को महत्व नहीं दिया, उसी तरह राजद ने भी वाम दल को बेहतर मौका देकर, कांग्रेस से समझौता करवाकर और पार्टी छोड़ने वालों की अनदेखी करके जमीनी हकीकत पर ध्यान केंद्रित किया है। उन्होंने कहा कि अवसरवादी राजनीति में पनप रहे छोटे दलों के लिए इस बार विकल्प कम हो गए हैं, क्योंकि राजद ने भी जहां तक संभव हो सके लड़ाई को सीधा करने के लिए अपने पत्ते अच्छे से खेले हैं, खासकर उन सीटों पर जहां भाजपा करती है। बता दें कि एनडीए की ओर से उम्मीदवारों की घोषणा के बाद ही राजद ने अपने सियासी पत्ते खोलते हुए उम्मीदवारों का ऐलान किया।
वहीं सामाजिक विश्लेषक प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी ने कहा है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के द्वारा कई मौकों पर टिप्पणी की गई थी कि नीतीश कुमार के लिए भाजपा के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं, इसके बाद भी नीतीश कुमार एनडीए में शामिल हो गए। मतलब भाजपा के लिए खुद को नीतीश कुमार ने अपरिहार्य बना लिया है। लेकिन लालू प्रसाद के नेतृत्व वाली राजद को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि बिहार की जाति आधारित राजनीति में यह एक दिलचस्प लड़ाई होगी। उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव 2019 के प्रदर्शन को दोहराना, जब एनडीए को बिहार की 40 में से 39 सीटों पर जीत मिली थी और राजद का खाता भी नहीं खुल पाया था, राज्य के जटिल चुनावी अंकगणित के कारण आसान नहीं होगा।