एक बार विदाई दे माँ घूरे आसी..., शहीद खुदीराम बोस को 3.50 बजे भोर में मुजफ्फरपुर जेल में श्रद्धांजलि क्यों?
शहीद खुदीराम बोस के गांव मेदनापुर से 14 लोग पहुंचे हैं। इस बार शहीद खुदीराम बोस के गांव की माटी और फूल के दो पौधे लाये गए हैं। फांसी स्थल पर गांव की माटी में पौधे लगाए गए। मेदनापुर के प्रकाश हलदर और उनकी पुत्री ने शहीद खुदीराम बोस के गांव की काली मंदिर का प्रसाद भी लाया था।
शहीद खुदीराम बोस सेन्ट्रल जेल रंगीन बल्बों से सजा है। 11 अगस्त की अहले सुबह तीन बज रहे है। सारा शहर गहरी नींद में सो रहा है और करीब 110 प्रबुद्ध लोग जेल में जाने के लिए गेट पर जुटे है। जेल में चारो तरफ चहल पहल है। हुमाद की भीनी खुशबु पुरे परिसर में फैली हुई है। साउंड बॉक्स पर बैक ग्राउंड में 'एक बार विदाई दे मां घूरे आसी, हाँसी हाँसी परबो फांसी, देखबे जोगोत वासी' गीत की धीमी आवाज आ रही है। यही गीत गाते हुए खुदीराम बोस भारत माता की स्वतंत्रता के लिए फांसी के फंदे को चूमा था।
मौका था, शहीद खुदीराम बोस के शहीदी दिवस समारोह का। कब जेल का गेट खुले और अंदर प्रवेश कर जाऊं हर कोई इसी कोशिश में लगे है। जेल जाने के लिए एक-एक कर डीएम सुब्रत कुमार सेन, एसएसपी राकेश कुमार, सिटी एसपी अवधेश दीक्षित, एएसपी भानु प्रताप सिंह, मिठानपुरा थानेदार समेत सभी अधिकारी पहुंच गए। जेल गेट खुला हाथो पर जेल का मुहर लगाने के बाद अगंतुको को जेल में प्रवेश कराया गया।
शहीद खुदीराम बोस के गांव मेदनापुर से 14 लोग पहुंचे हैं। इस बार शहीद खुदीराम बोस के गांव की माटी और फूल के दो पौधे लाये गए हैं। फांसी स्थल पर गांव की माटी में पौधे लगाए गए। मेदनापुर के प्रकाश हलदर और उनकी पुत्री ने शहीद खुदीराम बोस के गांव की काली मंदिर का प्रसाद भी लाया था। फांसी स्थल पर इसे अर्पित किया गया। इसी जेल में 3.50 बजे शहीद खुदीराम बोस को फांसी की सजा दी गई थी। उसी समय फांसी स्थल पर उन्हें मुजफ्फरपुर वासी और अधिकारियो ने उन्हें सलामी दी। इसके बाद डीएम एसएसपी और अन्य अधिकारियो ने उन्हें फूल माला अर्पित कर श्रद्धांजलि दी।
सेंट्रल जेल के रिकॉर्ड के अनुसार फांसी से पहले खुदीराम बोस ने 'एक बार विदाई दे मां घुरे आसी। हांसी हांसी परबो फांसी देखवे जोगोत वासी' गीत गाया था। उनके इस गीत को सुनकर बंदियों का आभास हो गया कि खुदीराम बोस को फांसी के लिए ले जाया जा रहा है। इसके बाद सारे बंदी वंदे मातरम का नारा लगाने लगे थे। जेल में शहीद खुदीराम बोस को जिस सेल में बंद किया गया था, वहां से फांसी स्थल करीब 200 मीटर की दूरी पर है। बीच में बंदियों के बैरक हैं। 3.50 बजे फांसी स्थल पर शहीद खुदीराम बोस को सलामी पेश करने के बाद सारे लोग उनके सेल पर पहुंच गए। चर्चा है आज भी इस सेल में शहीद खुदीराम बोस की आत्मा वास करती है। इसलिए सेल में जाने से पहले ही सभी ने अपना जूता-चप्पल बाहर ही उतारा। इसके बाद एक एक कर सेल में गए लोगों ने फूल माला अर्पित किया।
इस मौके पर डीएम सुब्रत सेन ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी को शहीद खुदीराम बोस से प्रेरणा लेनी होगी। 18 साल से भी कम उम्र में उन्होंने देश की आजादी के लिए हँसते हँसते फांसी पर चढ़ गए। ऐसे सैकड़ो बलिदानी स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी कुर्बानी दी तब हमारा देश आजाद हुआ है। हमें भी देश के निर्माण, संप्रभूता और अखंडता के लिए इनसे सीख लेनी होगी। करीब साढ़े चार बजे सभी अगतुको के हाथ पर लगे मुहर की जांच करने के बाद जेल से बाहर निकाला गया। जेल के बाहरी परिसर में शहीद खुदीराम बोस के प्रतिमा पर फूल माला अर्पित कर लोग वापस लौटे।