लालू परिवार के किले को कैसे भेदेंगे प्रशांत किशोर? राघोपुर से गैर यादव का लड़ना है चुनौती
बिहार की राघोपुर विधानसभा सीट लालू परिवार का गढ़ रही है और अभी तेजस्वी यादव यहां से विधायक हैं। इस सीट पर 30 प्रतिशत से ज्यादा आबादी यादव जाति की है। ऐसे में किसी गैर यादव का यहां लड़ना चुनौती से कम नहीं है।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में हॉट सीट राघोपुर में दो दिग्गजों के बीच मुकाबला देखने को मिल सकता है। वैशाली जिले की राघोपुर से अभी पूर्व डिप्टी सीएम एवं नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव विधायक हैं। इसे लालू परिवार का गढ़ माना जाता है। पिछले 6 विधानसभा चुनावों में से पांच बार यहां से राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के प्रत्याशी ही जीते हैं। वहीं, नई नवेली जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने इस सीट से चुनाव लड़ने के संकेत दे दिए हैं। पीके ने हाल ही में कहा कि उन्हें राघोपुर से तेजस्वी के खिलाफ लड़ने का सुझाव मिला है। अगर वे यहां से चुनावी मैदान में उतरते हैं तो उनके सामने कई तरह की चुनौती होगी।
राघोपुर विधानसभा सीट पर करीब साढ़े तीन लाख मतदाता हैं। यहां मतदान का प्रतिशत अमूमन 50 से 55 फीसदी के बीच रहता है। इस सीट पर यादवों को निर्णायक वोटर माना जाता है। क्योंकि उनकी संख्या लगभग एक तिहाई यानी कि सवा लाख से ज्यादा है। यही लालू परिवार के लिए प्लस पॉइंट माना जाता है। आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव राघोपुर से दो बार विधायक रहे। फिर उनकी पत्नी राबड़ी देवी तीन बार चुनाव जीतीं। तेजस्वी पिछले दो बार से लगातार यहां से विधायक हैं।
प्रशांत किशोर ने पिछले दिनों बेतिया में कहा कि उन्हें पार्टी कार्यकर्ताओं से राघोपुर से चुनाव लड़ने का सुझाव मिल रहा है। वह तेजस्वी यादव के खिलाफ मैदान में उतर सकते हैं। बिहार में इस साल अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने की संभावना है। पीके ने पिछले दो अक्टूबर को जन सुराज पार्टी का गठन किया था। यह सभी 243 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी।
यादवों का गढ़ है राघोपुर, प्रशांत किशोर के लिए बड़ी चुनौती
राघोपुर में तेजस्वी यादव के खिलाफ चुनाव लड़ना पीके के लिए चुनौती से कम नहीं है। इस सीट पर पीके तो क्या किसी भी गैर यादव उम्मीदवार की जीत मुश्किल होती है। यहां राजपूत और पासवान एवं रविदास वोटरों की संख्या भी अच्छी खासी है। राजपूत 20 फीसदी तो दलित वोटर 18 प्रतिशत हैं। मगर यादव मतदाताओं की संख्या 30 फीसदी से ज्यादा है। यादव हमेशा इस सीट पर निर्णायक भूमिका में रहते हैं। यही वजह है कि एनडीए और महागठबंधन, अक्सर यहां इसी जाति के उम्मीदवार उतारते हैं। महागठबंधन से लालू परिवार का ही कोई न कोई सदस्य यहां से चुनाव लड़ता आया है। 1967 के बाद से राघोपुर सीट से गैर यादव उम्मीदवार नहीं जीत पाया है।
दूसरी ओर, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी का दावा है कि वह जातिवाद से इतर मुद्दों पर राजनीति करती है। पीके की पार्टी का कोई खास वोटबैंक भी नहीं है। ऐसे में एमवाई समीकरण (मुस्लिम-यादव) को केंद्र में रखकर राजनीति करने वाली आरजेडी के सीएम कैंडिडेट तेजस्वी यादव को उनके गढ़ में चुनौती देना पीके के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है।
राघोपुर से सतीश यादव एनडीए से चुनाव लड़ते आए हैं। 2010 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़कर पूर्व सीएम राबड़ी देवी को हराया था। लालू परिवार को उनके गढ़ में मिली हार की चर्चा खूब हुई थी। मगर 2015 के विधानसभा चुनाव में तेजस्वी ने आरजेडी का परचम फिर से लहरा दिया। 2020 में वे दोबारा यहीं से विधायक बने।
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