जमीन सर्वे में चुनौती बनी कैथी लिपि के दस्तावेज, अमीन लेंगे मुगलकालीन लेखनी की 3 दिन ट्रेनिंग
बिहार में चल रहे जमीन सर्वेक्षण में कैथी लिपि अमीनों के लिए चुनौती बन गई है। दरअसल मुगल और ब्रिटिश काल में भूमि दस्तावेजों के रिकॉर्ड कैथी लिपी में ही दर्ज हैं। जो बिहार में 1980 तक प्रचलन में थी। ऐसे में अब विभाग ने दो प्रशिक्षकों को नियुक्त किया है।
बिहार में जारी जमीन सर्वे में सदियों पुरानी कैथी लिपी चुनौती बनकर सामने आई है। जिसे भूमि सर्वेक्षण करने वाले राजस्व विभाग के अधिकारी और कर्मचारी समझ नहीं पा रहे हैं। जिसके लिए अब विभाग ने दो प्रशिक्षकों को नियुक्त किया है। तीन दिन अमीनों को कैथी लिपी की लेखनी को समझने की ट्रेनिंग देंगे। दरअसल मुगल और ब्रिटिश काल में भूमि दस्तावेजों के रिकॉर्ड कैथी लिपी में ही दर्ज हैं। जो बिहार में 1980 तक प्रचलन में थी।
राजस्व और भूमि सुधार विभाग के सचिव जय सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि सर्वेक्षण अधिकारियों के सामने ऐसी समस्याओं के बारे में जानकारी मिली है। जिसके लिए हर जिले में क्षेत्रीय अधिकारियों को कैथी लिपी समझने की ट्रेनिंग देने के लिए दो प्रशिक्षकों को नियुक्त किया है। जो कैथी लिपि की लेखनी समझने में माहिर हैं। प्रशिक्षक रोटेशन के आधार पर हर जिले में जाएंगे और ट्रेनिंग देंगे जो तीन दिनों तक चलेगी। दरअसल कैथी लिपि में भूमि दस्तावेज पहले भी प्रचलन में थे। और कई भूमि मालिकों के पास ऐसे दस्तावेज थे। इसलिए इस मुद्दे के हर पहलू को देखा जा रहा है।
भू-राजस्व अधिकारियों ने कहा कि लगभग 15-20 साल पहले तक बिहार के कई जिलों में डीड लेखकों द्वारा भूमि रिकॉर्ड लिखने के लिए कैथी लिपि का इस्तेमाल किया जाता था और भूमि डीड बनाने के लिए इस लिपी को समझने वाले लेखक अच्छी रकम भी लेते थे। भू-राजस्व मामलों के विशेषज्ञ संजय कुमार ने बताया कि कैथी लिपि कई शताब्दियों से प्रचलन में है, और मुगल काल के साथ-साथ ब्रिटिश काल में भी इसका प्रचलन था। बैनामा लेखकों का एक विशेष वर्ग कैथी लिपि में जमीन का बैनामा करता था, जो थोड़ा जटिल और अलग है।
लेकिन अब ऐसे बहुत से लोग उपलब्ध नहीं हैं जो इस लिपी की लेखनी से अच्छी तरह वाकिफ हों, राजस्व अधिकारियों के लिए कैथी में लिखे गए पुराने भूमि दस्तावेजों को समझना एक बड़ी चुनौती है। कैथी लिपि के भूमि दस्तावेजों को समझना थोड़ा कठिन है। लेकिन, अधिकारियों को भूमि की माप की उचित समझ हो सकती है, लेकिन कैथी कोई लिपि कोई नहीं जानता है। जिसे समझना थोड़ा मुश्किल है।
सर्वेक्षण के दौरान, खतियान के फॉर्म को भरने के लिए खानापूरी के चरण में पुष्टि करने के लिए एक सहायक दस्तावेज के रूप में भूमि विलेख की जरूरत होती है। अधिकारियों ने कहा कि किरायेदारी के मालिकों का दावा है कि किराया तय करने के लिए उनके पास कब्ज़ा अधिकार है। विभाग के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने कहा अगले कुछ महीनों में काफी गांवों में खानापूरी का दौर शुरू होने वाला है। विभाग के पास अभी भी समय है, कि सर्वेक्षण अधिकारियों को कैथी लिपि और अन्य संबंधित मामलों के बारे में अवगत कराया जाए।
इस बीच, राजस्व विभाग ने पहले से ही लोगों को बिना किसी प्रमाणीकरण के परिवार के सदस्यों के नाम जमा करने की अनुमति देकर भूमि धारकों की वंशावली जमा करने की प्रक्रिया को सरल बना दिया है, जिसमें बहनों या बेटियों सहित अपने परिवार के कुछ नामों को छोड़कर झूठी घोषणाएं करने वालों को चेतावनी दी गई है। जिन्हे किसी भी गलत इरादे के चलते कानूनी प्रावधानों के मुताबिक कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।
राजस्व और भूमि सुधार विभाग के सचिव ने बताया कि वंशावली एक स्व-घोषणा दस्तावेज है, जहां कोई अपने परिवार के सदस्यों के बारे में घोषणा कर रहा है कि उनकी पैतृक भूमि या उनके कब्जे वाली भूमि में रुचि है। यदि बाद के चरण में यह पाया जाता है कि परिवार के चार्ट या कुछ नामों में विसंगति है, स्व-घोषणा करने वालों द्वारा परिवार के सदस्यों को छोड़ दिया गया है, तो गलत जानकारी देने के लिए कानूनी प्रावधानों के अनुसार उचित कार्रवाई की जाएगी।
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