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डॉक्टर नदारद, नर्सें थाम रहीं मरीजों के नब्ज; मंगल पांडे के स्वास्थ्य विभाग की यह कैसी तस्वीर

यूपीएचसी पर डॉक्टर ही कई माह से तैनात नहीं है तो यहां पर तैनात नर्सें मरीजों का नब्ज थामकर लक्षण के आधार पर उनका दवा देकर इलाज कर रही हैं तो बाकी पांच पर आयुष (आयुर्वेदिक, यूनानी या होमियोपैथिक) चिकित्सक एलोपैथिक यानी अंग्रेजी विधि से मरीजों का इलाज कर रहे हैं।

Sudhir Kumar लाइव हिन्दुस्तान, भागलपुरMon, 9 Dec 2024 01:49 PM
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डॉक्टर नदारद, नर्सें थाम रहीं मरीजों के नब्ज; मंगल पांडे के स्वास्थ्य विभाग की यह कैसी तस्वीर

बिहार के भागलपुर में स्वास्थ्य व्यवस्था की बेहद बदसूरत तस्वीर सामने आई है। शहर के पिछड़े क्षेत्रों की आबादी को उनके घर की देहरी पर जांच-इलाज से लेकर टीकाकरण तक की सुविधा प्रदान करने के लिए आठ यूपीएचसी (अरबन प्राइमरी हेल्थ सेंटर) की स्थापना की गई। यहां पर दवा से लेकर जांच तक के बेहतरीन इंतजाम हैं। लेकिन इन यूपीएचसी पर भी डॉक्टरों की मार पड़ रही है और यहां पर इलाज कराने पहुंच रहे मरीजों का इलाज भगवान भरोसे किया जा रहा है। तीन यूपीएचसी पर डॉक्टर ही कई माह से तैनात नहीं है तो यहां पर तैनात नर्सें मरीजों का नब्ज थामकर लक्षण के आधार पर उनका दवा देकर इलाज कर रही हैं तो बाकी पांच पर आयुष (आयुर्वेदिक, यूनानी या होमियोपैथिक) चिकित्सक एलोपैथिक यानी अंग्रेजी विधि से मरीजों का इलाज कर रहे हैं।

यूपीएचसी बरारी, रेकाबगंज, मोहद्दीनगर, हुसैनाबाद और चंपानगर में आयुष चिकित्सक की तैनाती है। जबकि इन पांचों यूपीएचसी पर मरीजों को देने के लिए अंग्रेजी दवाएं उपलब्ध हैं। ऐसे में यहां पर इलाज के लिए आने वाले मरीजों का जहां इलाज यही आयुष चिकित्सक करते हैं। एक यूपीएचसी के डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मरीज आता है तो उसकी समस्या यानी लक्षण के आधार पर बीमारी का अनुमान लगाया जाता है। फिर उस बीमारी के आधार पर उपलब्ध दवा मरीज को दे दिया जाता है। जबकि हरेक यूपीएचसी पर एक-एक एलोपैथिक व आयुष चिकित्सक की तैनाती होनी चाहिए।

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वहीं शहरी पीएचसी सच्चिदानंदनगर, शहरी पीएचसी सराय किलाघाट, शहरी पीएचसी बुधिया नाथनगर में एमबीबीएस चिकित्सक की बात तो दूर कोई आयुष चिकित्सक तक की तैनाती नहीं की गई है। यहां पर तैनात एक नर्स ने बताया कि कई माह से यहां पर डॉक्टर नहीं है। ऐसे में सर्दी, खांसी-जुकाम, बुखार, बदन दर्द जैसी मामूली बीमारियों का इलाज कराने पहुंचे मरीजों को दवा देकर भेज दिया जाता है। अगर बीमारी नहीं समझ में आती है तो सीधे सदर अस्पताल या फिर मायागंज अस्पताल भेज दिया जाता है। यहां पर इलाज के नाम पर बच्चों, महिलाओं का टीकाकरण, प्रसव पूर्व जांच का ही काम होता है। यही कारण है कि बीते तीन माह में यहां पर इलाज कराने वाले मरीजों की संख्या में 70 प्रतिशत तक की कमी आ चुकी है।

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