Hindi Newsबिहार न्यूज़Divided opposition gives space for Prashant Kishore to rise in BPSC re exam protest Nitish Govt finds relief

BPSC आंदोलन में विपक्ष के बिखराव से प्रशांत किशोर को ताकत मिली, नीतीश सरकार को राहत

  • बीपीएससी आंदोलन के दौरान विपक्षी दलों के अलग-अगल सुर में बोलने और आंदोलन में तालमेल की कमी का फायदा जहां सरकार को आंदोलन दबाने में मिला वहीं प्रशांत किशोर को चुनावी साल में पांव जमाने में।

Ritesh Verma हिन्दुस्तान टाइम्स, अरुण कुमार, पटनाMon, 6 Jan 2025 05:26 PM
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बिहार में नीतीश कुमार की अगुवाई वाली सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार प्रशांत किशोर के मुद्दे पर विपक्षी दलों के बिखराव के बीच बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) की संयुक्त प्रांरभिक परीक्षा में हुई गड़बड़ी पर बन रहे बड़े मुद्दे को बड़े करीने से निपटाती दिख रही है। जानकार मानते हैं कि बीपीएससी द्वारा मामले को ढंग से नहीं संभालने के कारण सरकार तो उलझती दिख रही थी लेकिन विपक्ष के एक आवाज में नहीं बोलने और राजनीतिक वर्चस्व की आपसी लड़ाई में वो मुद्दा ही गौण हो गया जिसके लिए हजारों छात्र-छात्रा खुद से सड़कों पर उतर आए थे।

पटना के बापू परीक्षा केंद्र पर देरी से परीक्षा की शुरुआत, सील बॉक्स में जरूरत से कम प्रश्न पत्र होना और एक कोचिंग संस्थान की टेस्ट सीरीज के प्रश्न से मिलते-जुलते कई प्रश्न पूछने जैसे मुद्दे बड़े थे लेकिन सरकार ने आयोग पर ठीकरा फोड़कर अपना पल्ला झाड़ लिया। उप-मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने साफ कहा कि आयोग स्वतंत्र निकाय है और परीक्षार्थियों के हित में जो भी फैसला लेना है, वही लेगा।

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बीपीएससी परीक्षा के कैंडिडेट अंसारी ने कहा- “विद्यार्थी पीटे गए। वो धरना पर बैठे। लेकिन छात्रों की मांग के राजनीतिकरण से पूरा आंदोलन ही पटरी से उतर गया। आश्चर्यजनक है कि इस मसले पर एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में लगी कोई पार्टी सरकार पर फैसला लेने का असर पैदा नहीं कर सकी। सरकार अपने स्टैंड पर अड़ गई और विपक्षी दलों के घटिया प्रदर्शन की वजह से आखिरकार बचकर निकल गई।”

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (टिस) के पूर्व प्रोफेसर पुष्पेंद्र ने कहा कि इतने बड़े मसले पर एक-दूसरे के साथ मिलकर आंदोलन करने में विपक्ष की अपरिपक्वता साफ दिखी। प्रशांत किशोर के साथ अपना-अपना हिसाब बराबर करने के चक्कर में विपक्ष ने बड़ा मौका गंवा दिया। उन्होंने कहा- “ये पता नहीं था कि इससे प्रशांत किशोर को आगे क्या फायदा होगा लेकिन विपक्ष ने अब उनको नेता बना दिया है और वो जगह दे दी है जिसे वो खोज रहे थे। अगर सारी ताकतें किसी एक आदमी के खिलाफ हो जाएं तो उससे वो आदमी मजबूत ही होता है।”

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पुष्पेंद आगे कहते हैं- “प्रशांत ने मुद्दे को पकड़ लिया और परिपक्व राजनेता की तरह राहुल गांधी और तेजस्वी यादव को आंदोलन का नेतृत्व करने का न्योता दे दिया। ये सच्चाई है कि संस्थाओं की साख बहुत गिरी है। इस समय आपसी मतभेद भुलाकर विपक्षी दलों को इस मुद्दे को लपक लेना चाहिए था। लेकिन विपक्षी नेताओं में दूसरे नेता के बढ़ने का भय राह का रोड़ बन गया। ऐसा पहले भी हुआ है।”

एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज के पूर्व निदेशक डीएम दिवाकर कहते हैं कि इस पूरे आंदोलन के दौरान प्रशांत किशोर की एंट्री और गिरफ्तारी ही एकमात्र बड़ी राजनीतिक हलचल है जिसे याद रखा जा सकता है। दिवाकर ने कहा- “नेता बनने की चाहत रखने वाले के लिए इससे बढ़िया गिरफ्तारी का समय ही नहीं हो सकता था। खास तौर पर जब विपक्ष उनको किनारे लगाने में लगा था। चुनावी साल में जिस मौके का फायदा उठाकर विपक्ष को सरकार को घेरना चाहिए था, उस मसले पर सब अलग-अलग सुर में बोलने लगे। जैसा अनुमान भी था, प्रशांत किशोर को बेल मिला लेकिन फिर धरना नहीं देने जैसी जमानत की शर्तों को मानने से इनकार करके उन्होंने जेल जाना चुन लिया। उनकी पार्टी के नेताओं ने कहा कि है वो जमानत की शर्तों को हाईकोर्ट में चुनौती देंगे। प्रशांत जानते हैं कि उनका राजनीतिक भविष्य बनाने में गिरफ्तारी का क्या महत्व है। अब तो जेडीयू के नेता भी कह रहे हैं कि गिरफ्तारी के बाद प्रशांत नेता बन गए हैं।”

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दिवाकर ने कहा कि राजनेताओं के बीच यात्रा निकालने के चलन के बावजूद प्रशांत किशोर को अपनी यात्रा से कुछ खास मिला नहीं। वो कहते हैं- “उपचुनाव के बाद उनको एक कारण चाहिए था फिर से उठ खड़े होने का। इस तरह के मौके एक नेता के लिए उत्प्रेरक का काम करते हैं। अब वो अपनी गिरफ्तारी को नौजवानों के मसले पर लड़ाई में तमगा की तरह दिखा सकते हैं। विपक्ष का कोई नेता बदसलूकी या गिरफ्तारी का दावा नहीं कर सकता लेकिन प्रशांत कर सकते हैं। अब वो सरकार के निशाने पर भी आ गए हैं।”

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राजनीतिक विश्लेषक नवल किशोर चौधरी कहते हैं कि बीपीएससी आंदोलन में बाद में उतरने के बाद भी प्रशांत किशोर ने जिस तरह से आंदोलन चलाया, वो उनके लिए शुभ संकेत है और विपक्ष के लिए निराशा की एक और वजह। उन्होंने कहा- “बीपीएससी के बदले वैनिटी वैन के मुद्दा बनने से दिख गया कि आंदोलन पटरी से उतर गया है। असल में ये बिना नाविक के नाव बन गया जिसे किसी राजनीतिक दल ने संभालने की कोशिश नहीं की। प्रशांत ने कोशिश की लेकिन उन्हें घेरा गया। जब उन्होंने लगा कि उनको दरकिनार किया जा रहा है तो उन्होंने अपनी चाल ठीक से चली जिससे उनकी गिरफ्तारी हुई। अब वो अपनी गिरफ्तारी पर इतरा सकते हैं।”

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