पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी के VC पर राजभवन का डंडा; पावर सीज, शो कॉज भेज मांगा यह जवाब
पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉक्टर आरके सिंह ने एसडीएम कॉलेज पुनपुन रामकृष्ण द्वारका कॉलेज और बी कॉलेज में सीनियर टीचर के रहते हुए जूनियर को प्रिंसिपल का चार्ज दे दिया। ऐसा करई कॉलेजों में किया गया।
बिहार के प्रतिष्ठित पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर पर राज भवन का डंडा चला है। प्रिंसिपल बहाली में गड़बड़ी मामले में उन्हें शो कॉज नोटिस भेजा गया है। कुलपति का राज भवन ने नीतिगत मामलों में निर्णय लेने का अधिकार भी वापस ले लिया है। वीसी डॉक्टर आरके सिंह को यह नोटिस तब जारी किया गया है जब विधानसभा के मानसून सत्र में इस मामले को उठाया गया। भाजपा विधायक अरुण कुमार सिन्हा ने पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी में प्रिंसिपल की बहाली में गड़बड़ी का सवाल पूछा था। आरोप लगाया जा रहा है कि कुलपति ने सीनियर प्रोफेसर को दरकिनार करते हुए जूनियर को प्रभारी प्राचार्य बना दिया।
विधानसभा में मानसून सेशन के दौरान भाजपा विधायक अरुण कुमार सिन्हा ने सवाल उठाया था कि पटना हाईकोर्ट के आदेश की कैसे अवहेलना कई गई। पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉक्टर आरके सिंह ने एसडीएम कॉलेज पुनपुन रामकृष्ण द्वारका कॉलेज और बी कॉलेज में सीनियर टीचर के रहते हुए जूनियर को प्रिंसिपल का चार्ज दे दिया। यह भी आरोप लगाया गया था कि बीडी कॉलेज के चार शिक्षक बगैर प्रिंसिपल रहे सिटी अलाउंस कैसे ले रहे हैं ? यह मामला शिक्षा विभाग को भेजा गया था जहां से हायर एजुकेशन का केस देखते हुए गवर्नर सेक्रेटेरिएट को रेफर कर दिया गया था। राज्यपाल के विचारण के बाद नोटिस जारी किया गया है। राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर के प्रधान सचिव ने पत्र भेजकर 15 दिनों के भीतर कुलपति से जवाब मांगा है। इस बीच सभी पावर वापस ले लिए गए हैं।
भाजपा विधायक ने यद्यपि यह मामला 23 जुलाई को सदन में उठाया था लेकिन, पिछले 1 साल से कुलपति डॉक्टर आरके सिंह पर आरोप लगाए जा रहे हैं। इस संबंध में राज भवन को और शिक्षा विभाग को सीनेट मेंबर अजय यादव पत्र भेज कर कार्रवाई करने की मांग की थी। उन्होंने यूनिवर्सिटी के सीनेट सिंडिकेट में भी यह मामला राज्यपाल के रहते हुए उठाया था। अजय यादव आरएसएस जुड़े हुए स्वयंसेवक भी हैं
बताते चलें कि बिहार विश्वविद्यालय अधिनियम 1976 में यह साफ-साफ प्रावधान है कि स्थाई प्रिंसिपल की गैर मौजूदगी में जो सीनियर मोस्ट प्रोफेसर या एसोसिएट प्रोफेसर होते हैं उन्हें प्रभारी प्रिंसिपल बनाया जाता है। आरोप लगाया गया है कि कुलपति कार्यालय द्वारा पैसे के लेनदेन के आधार पर जूनियर को प्रिंसिपल का प्रभार दे दिया गया। सीनेट में जब यह मसला उठा तो कुलपति ने गलत उत्तर देकर भ्रमित कर दिया।