बिहार में पैथोलॉजी जांच के टेंडर का मामला HC पहुंचा; जिसका रेट सबसे कम, उसे ठेका नहीं मिला
- बिहार के 693 सरकारी अस्पतालों व स्वास्थ्य केंद्रों में मरीजों की पैथोलॉजी जांच का ठेका का विवाद पटना हाईकोर्ट पहुंच गया है। सरकार ने हरियाणा की जिस कंपनी को ठेका दिया, उससे सस्ता रेट देने वाली भोपाल की कंपनी अदालत चली गई है।
बिहार के 693 सरकारी अस्पताल और स्वास्थ्य केंद्रों के मरीजों की पैथोलॉजी जांच के लिए टेंडर में विवाद का मामला पटना हाईकोर्ट पहुंच गया है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को तीन दिन में टेंडर के दस्तावेज दिखाने कहा है। सोमवार को मामले की अगली सुनवाई होगी। बिहार राज्य स्वास्थ्य समिति ने 5 नवंबर को हरियाणा की हिन्दुस्तान वेलनेस प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को जांच का ठेका दिया जो टेंडर की भाषा में एल2 यानी सबसे सस्ता रेट देने वाली दूसरी कंपनी थी। भोपाल की जिस कंपनी ने सबसे सस्ता रेट दिया था, उस कंपनी साइंस हाउस मेडिकल्स प्राइवेट लिमिटेड को ठेका नहीं मिला क्योंकि उसके खिलाफ हरियाणा वाली कंपनी के अलावा सबसे सस्ता रेट वाली तीसरी कंपनी लखनऊ के पीओसीटी सर्विसेज ने आपत्तियां दाखिल की थी।
साइंस हाउस मेडिकल्स के वकील निर्भय प्रशांत ने बताया कि सोमवार को चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस पार्थ सारथी की बेंच में मामले की सुनवाई होगी। भोपाल वाली कंपनी से पहले लखनऊ वाली कंपनी भी हाईकोर्ट जा चुकी है और टेंडर को रद्द करने की अपील की है। टेंडर में सात कंपनियों ने हिस्सा लिया था जिसमें बोली के हिसाब से एल1 और एल3 रही कंपनियां कोर्ट में मामला ले जा चुकी हैं। साइंस हाउस का आरोप है कि उसे आपत्तियों पर जवाब देने का मौका दिए बिना दूसरे नंबर की बोली वाली कंपनी को ठेका दिया गया है।
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राज्य सरकार के द्वारा निर्धारित बेस रेट पर भोपाल की साइंस हाउस मेडिकल्स ने 77.07 परसेंट की छूट की बोली लगाई थी। हरियाणा की हिन्दुस्तान वेलनेस की बोली 73.05 परसेंट छूट की थी। लखनऊ की पीओसीटी सर्विसेज ने 69.03 परसेंट छूट का टेंडर डाला था। सबसे कम रेट के बाद भी भोपाल की कंपनी के बदले हरियाणा की कंपनी को जांच का ठेका मिलने से राज्य सरकार को करोड़ों रुपए का नुकसान हो सकता है।
हाईकोर्ट में अब भोपाल की एल1 कंपनी और लखनऊ की एल3 कंपनी ने अलग-अलग मुकदमा करके टेंडर को रद्द करने की गुजारिश की है। साइंस हाउस ने टेंडर को इस आधार पर चुनौती दी है कि उसे एल2 और एल3 की आपत्तियों पर जवाब देने का मौका नहीं दिया गया। साइंह हाउस के खिलाफ आपत्ति ये थी कि उसने टेंडर में एक जगह 1 परसेंट छूट लिखा है जबकि दूसरी जगह 77.06 परसेंट। कंपनी का कहना है कि टेंडर नियमों के मुताबिक टेंडर के कागजात में 77.06 ही दर्ज है। ई-पोर्टल पर विभाग के अधिकारियों की सलाह पर उसने 1 परसेंट डाल दिया था क्योंकि उसे कहा था कि कोई भी नंबर यहां भर दिया जाए।
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कंपनी ने कहा है कि स्वास्थ्य समिति के टेंडर पहले भी इसी तरह से होते रहे हैं। टेंडर नियमों को आधार बनाकर कंपनी ने कोर्ट से कहा है कि अगर कोटेशन के नंबर से कोई भ्रम है तो शब्द को महत्व दिया गया है और उसके टेंडर पेपर में शब्द में भी 77.06 परसेंट लिखा है।
लखनऊ की एल3 कंपनी पीओसीटी सर्विसेज ने कोर्ट में एल2 हिन्दुस्तान वेलनेस की उस आपत्ति को चुनौती दी है जिसमें हरियाणा की कंपनी ने लखनऊ वाली कंपनी द्वारा साल में 20 लाख जांच करने की क्षमता पर सवाल उठाया था। टेंडर के नियमों के मुताबिक वही कंपनी बोली लगा सकती है जिसके पास साल में 20 लाख जांच करने का अनुभव हो। पीओसीटी के एक अधिकारी ने नाम ना बताने की शर्त पर कहा कि हिन्दुस्तान वेलनेस ने 20 लाख जांच की क्षमता साबित करने वाला कोई कागजात नहीं दिया है, ना किसी सरकार या अस्पताल का ऑर्डर, ना कोई करार। बल्कि एक दूसरी कंपनी खन्ना पैथकेयर प्राइवेट लिमिटेड के साथ कंसोर्टियम बनाकर स्वलिखित हलफनामा भर दिया है।
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हिन्दुस्तान वेलनेस की लीगल टीम के अफसर कुबेर रंगन ने कहा है कि 20 लाख जांच की उसकी क्षमता को लेकर पीओसीटी सर्वेसेज का दावा निराधार है। रंगन ने कहा कि लगातार तीन साल से सालाना 20 लाख से ऊपर जांच किया है और इसका प्रमाणित सबूत सरकार को सौंप दिया गया है। हिन्दुस्तान वेलनेस ने पीओसीटी सर्वेसेज पर हाईकोर्ट को भ्रमित करने का आरोप लगाया है।
बिहार राज्य स्वास्थ्य समिति ने 22 अगस्त को पैथोलॉजी जांच का टेंडर निकाला था और उसमें चार बार बदलाव भी किए। समिति ने 24 घंटे के नोटिस पर सात कंपनियों को 23 अक्टूबर को बुलाया और तकनीकी प्रेजेंटेशन देखने के बाद उसी दिन शाम 4 बजे बोली की रकम के दस्तावेज खोल दिए। इतनी हड़बड़ी में तकनीकी प्रेजेंटेशन और बोली खोलने के बाद से ही सवाल उठने लगे थे लेकिन समिति ने सब दरकिनार कर 5 नवंबर को हिन्दुस्तान वेलनेस को ठेका दे दिया।
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समिति के कार्यकारी निदेशक सुहर्ष भगत को 13 नवंबर को इस पत्रकार ने सवाल भेजे थे जिसका उन्होंने जवाब नहीं दिया। 19 नवंबर को उन्हें दोबारा सवालों की याद दिलाई गई फिर भी उन्होंने उत्तर नहीं दिया है। समिति में और कोई भी अफसर इस मसले पर बोलने को तैयार नहीं है।