एंटीबॉयोटिक दवाओं से जा सकती है आपकी जान, इस्तेमाल में रखें यह सावधानी; क्या कहते हैं डॉक्टर?
जेएलएनएमसीएच यानी जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राजकमल चौधरी बताते हैं कि बीमारी के शुरुआती दौर में एंटीबायोटिक दवाओं के बेजा इस्तेमाल से मुश्किल यानी गंभीर बीमारी के दौर में कॉमन एंटीबायोटिक दवाएं बेअसर हो जा रही हैं।
बात-बात पर एंटीबायोटिक का इस्तेमाल न केवल दवाओं को बेअसर बना रहा है, बल्कि इलाज तक महंगा हो चला है। यहां तक कि परंपरागत एंटीबायोटिक दवाओं के बेअसर होने के बाद मरीजों पर जिन नई दवाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है, वे कॉमन एंटीबायोटिक दवाओं की तुलना में बहुत ही महंगी हैं, जिनका इस्तेमाल करने से न सिर्फ मरीजों की आर्थिक कमर ही टूट रही है बल्कि उनकी जान को खतरा भी उत्पन्न हो गया है।
विशेषज्ञ चिकित्सकों चिंता जताई है कि अगर एंटीबायोटिक दवाओं के बेहतर इस्तेमाल को लेकर पहल नहीं हुई तो आने वाले दिनों में बीमारियों से ज्यादा लोग एंटीबायोटिक दवाओं के रजिस्टेंस यानी बेअसर होने से मरेंगे। इसलिए इन दवाओं का उपयोग करने में हमेशा सावधानी बरतना चाहिए। जबतक जरूरी नहीं हो तबतक एंटीबायोटिक दवाओं के सेवन से यथासंभव बचना चाहिए।
जेएलएनएमसीएच यानी जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राजकमल चौधरी बताते हैं कि बीमारी के शुरुआती दौर में एंटीबायोटिक दवाओं के बेजा इस्तेमाल से मुश्किल यानी गंभीर बीमारी के दौर में कॉमन एंटीबायोटिक दवाएं बेअसर हो जा रही हैं। आलम ये है कि आईसीयू, एचडीयू से लेकर वेंटिलेटर वाले 15 प्रतिशत मरीजों पर कॉमन एंटीबायोटिक दवाएं काम ही नहीं कर रही हैं। दो से पांच प्रतिशत बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक दवाओं ने काम करना तकरीबन बंद ही कर दिया है। बकौल डॉ. चौधरी, बीते दिनों इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की रिपोर्ट में चिंताजनक तस्वीर सामने आई है।
10 साल में नई एंटीबायोटिक दवाएं हो जाएंगी बेअसर
जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के फार्माकोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. जीतेंद्र कुमार बताते हैं कि जितनी एंटीबायोटिक्स बेअसर हो रही हैं, उसकी तुलना में बेहद कम नई एंटीबायोटिक्स बाजार में आ रही हैं। दरअसल, इंसान और बैक्टीरिया के बीच सर्वाइवल की लड़ाई चल रही है। जब आपके शरीर में उस बैक्टीरिया से संक्रमण होता है और आप उसके लिए एंटीबायोटिक्स देते हैं तो वह बेअसर हो जाती है। ऐसे में यदि कम उम्र में ही नई एंटीबायोटिक दवा दी जाने लगी तो आने वाले पांच से दस साल में ये नई एंटीबायोटिक दवाएं उन पर बेअसर होने लगेंगी।
खुले में फेंकी दवाओं से मजबूत हो रहे बैक्टीरिया
वरीय फिजिशियन डॉ. विनय कुमार झा बताते हैं कि सर्दी-जुकाम होने पर लोग एंटीबायोटिक दवाएं खाने लगते हैं। जबकि इन बीमारियों में मरीजों को एंटीबायोटिक दवाओं को खाने की कोई जरूरत नहीं होती है। वहीं एंटीबायोटिक की पूरी डोज न लेने पर उसके रजिस्टेंस होने का खतरा होता है। इसके अलावा एक्सपायर होने के बाद लोग एंटीबायोटिक दवाओं को खुले में फेंक देते हैं। लोगों को इस बात का इल्म (ज्ञान) नहीं है कि इन दवाओं के संपर्क में आकर बीमारियों को बढ़ाने वाले बैक्टीरिया और मजबूत हो जाते हैं।
हाई एंटीबायोटिक दवाएं 10 गुनी तक पड़ रहीं महंगी
मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. ओबेद अली ने बताया कि एंटीबायोटिक दवाओं के बेअसर होने के कारण मरीजों को हाई एंटीबायोटिक दवा देनी पड़ रही है। कामन एंटीबायोटिक दवाओं की तुलना में हाई एंटीबायोटिक दवाएं 10 गुनी तक महंगी हैं। ऐसे में दवाओं के बेअसर होने के कारण मरीजों को न केवल लंबे समय तक इलाज के लिए अस्पताल में गुजारना पड़ता है, बल्कि हाई एंटीबायोटिक दवाओं के खरीदने के कारण उनका इलाज तक करीब दोगुना महंगा हो जाता है। इसको लेकर लोगों की नासमझी और डॉक्टरों की लापरवाही भी बहुत हद तक जिम्मेदार है।