यशोदा जयंती आज: संतान की मंगल कामना के लिए रखा जाता है यह व्रत, पढ़ें पौराणिक कथा
- Yashoda jayanti 2025: हिंदू धर्म में यशोदा जयंती का विशेष महत्व है। जानें कब और क्यों रखा जाता है व्रत-
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फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को ब्रज में सुमुख नाम के गोप और उनकी पत्नी पाटला के यहां माता यशोदा का जन्म हुआ था। भागवत पुराण के अनुसार यशोदा वसु द्रोण की पत्नी धरा का अवतार थीं। धरा बहुत धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। ऐसी मान्यता है कि द्रोण और उनकी पत्नी धरा ने ब्रह्मा की तपस्या की और उनसे यह वरदान मांगा कि जब हम पृथ्वी पर जन्म लें तो हमारी भगवान कृष्ण में निश्छल भक्ति हो और हम पुत्र के रूप में उनका लालन-पालन करें। इसी वरदान के फलस्वरूप यशोदा का जन्म ब्रज में हुआ और वसु द्रोण ने नंद के रूप में गोकुल में जन्म लिया।
यशोदा का विवाह नंद के साथ हुआ। समय बीतने के साथ कृष्ण ने राजा शूरसेन के पुत्र वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में मध्य रात्रि में जन्म लिया। कंस के भय से वसुदेव कृष्ण को गोकुल में नंद के घर यशोदा के पालने में छोड़ आए। यशोदा ने कृष्ण को अपनी संतान मानकर ही उनका पालन-पोषण किया।
एक अन्य लोक मान्यता के अनुसार यशोदा अपने पूर्व जन्म में कौशल्या थीं। बचपन में राम के अपने भाइयों के साथ पढ़ने के लिए गुरुकुल चले गए और उसके बाद ऋषि विश्वामित्र द्वारा राम-लक्ष्मण को राक्षसों के संहार के लिए अपने साथ ले जाने के कारण कौशल्या राम को मां का प्यार नहीं दे पाईं। इसके बाद जब प्यार देने का समय आया तो कैकेयी के कारण राम को चौदह वर्ष का वनवास हो गया। कौशल्या को पुत्र राम का तो राम को माता का प्यार नहीं मिल पाया। इसी वंचित प्यार की भरपाई के लिए द्वापर युग में कौशल्या ने यशोदा के रूप में जन्म लिया और राम ने कृष्ण रूप में जन्म लेकर उस कमी को पूरा किया। यही नहीं कैकेयी ने देवकी के रूप में जन्म लिया और कंस के कारावास में रहकर अपने पुत्र के प्यार से वंचित रहीं।
गर्ग पुराण के अनुसार मां देवकी के सातवें गर्भ को योगमाया ने ही बदलकर कर रोहिणी के गर्भ में पहुंचाया था, जिससे बलराम का जन्म हुआ, इसलिए बलराम का एक नाम ‘संकर्षण’ भी है। भगवान विष्णु की आज्ञा से योगमाया ने ही यशोदा के यहां पुत्री रूप में जन्म लिया। इनका नाम ‘एकानंशा’ था। इन्हें ‘एकांगा’ भी कहा जाता है। इनके जन्म के समय यशोदा नींद में थीं और उन्होंने इन्हें देखा नहीं था। जब आंख खुली तो उनके पास कृष्ण थे। यही योगमाया आगे चलकर विंध्यवासिनी देवी के रूप में विख्यात हुईं। श्रीमद्भागवत में उन्हें ही नंदजा देवी कहा गया है। उनका एक अन्य नाम कृष्णानुजा भी है। महाभारत युद्ध के पश्चात यशोदा अपने अंतिम समय में कुरुक्षेत्र में कृष्ण से मिलीं थीं। कृष्ण ने उन्हें सांत्वना देते हुए अपनी लीला समेटने से पहले गोलोक भेज दिया। संतान की लंबी आयु और मंगल कामना के लिए इस दिन मांएं माता यशोदा का व्रत और पूजन करती हैं।
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