29 मार्च 2025 तक इन राशियों पर रहेगी शनि की टेढ़ी नजर, अशुभ प्रभावों से हो सकता है नुकसान, रोजाना करें ये उपाय
Shani Dev : शनिदेव 29 मार्च 2025 को मेष राशि से वृषभ राशि में प्रवेश करेंगे। 29 मार्च 2025 तक शनि कुंभ राशि में ही रहेंगे। शनि की साढ़ेसाती लगने पर व्यक्ति का जीवन प्रभावित हो जाता है।
शनिदेव का राशि परिवर्तन 29 मार्च 2025 को होगा। इस दिन शनिदेव मेष राशि से वृषभ राशि में प्रवेश करेंगे। 29 मार्च 2025 तक शनि कुंभ राशि में ही रहेंगे। शनि के कुंभ राशि में रहने से कुंभ, मकर, मीन राशि पर शनि की साढ़ेसाती और तुला, वृश्चिक राशि पर शनि की ढैय्या चल रही है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या लगने पर व्यक्ति का जीवन प्रभावित हो जाता है।
शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या वाले रखें अपना विशेष ध्यान
- कुंभ, मकर, मीन राशि पर शनि की साढ़ेसाती और तुला, वृश्चिक राशि पर शनि की ढैय्या चल रही है। ये राशि वाले साल 29 मार्च 2025 के अंत तक अपना विशेष ध्यान रखें।
शनि के राशि परिवर्तन के बाद इन राशियों को मिलेगी शनि की ढैय्या से मुक्ति
- शनि के राशि परिवर्तन करने से तुला, वृश्चिक राशि के जातकों को शनि की ढैय्या से मुक्ति मिल जाएगी।
शनि के राशि से हटेगी शनि की साढ़ेसाती
- शनि के राशि परिवर्तन करने से मकर राशि से शनि की साढ़ेसाती हट जाएगी।
जरूर करें ये उपाय- शनि की साढ़ेसाती से बचने के लिए रोजाना हनुमान जी की उपासना करनी चाहिए। हनुमान जी की उपासना करने से शनि का अशुभ प्रभाव नहीं पड़ता है। धार्मिक कथाओं के अनुसार शनि देव को रावण ने लंका में बंधी बना रखा था। हनुमान जी ने ही शनि देव को रावण के बंधन से मुक्त करवाया था। तब शनि देव ने हनुमान जी को ये वचन दिया था कि मेरा अशुभ प्रभाव आपके भक्तों पर कभी भी नहीं पड़ेगा।
हनुमान जी इस कलयुग में जागृत देव हैं और बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। हनुमान जी को खुश करने के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए और श्री राम और माता सीता के नाम का सुमिरन करना चाहिए। जिस व्यक्ति पर हनुमान जी की कृपा हो जाए उसपर जीवन में किसी भी तरह का संकट नहीं आता है। कुंभ, मकर, मीन वाले रोजाना श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें और श्री राम और माता सीता के नाम का सुमिरन करे। आगे पढ़ें श्री हनुमान चालीसा-
श्री हनुमान चालीसा
दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
चौपाई :
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।
दोहा :
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
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