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मकर, कुंभ, धनु, मिथुन, तुला वालों के लिए 1 जुलाई का दिन महत्वपूर्ण, शनि के अशुभ प्रभावों से मुक्ति के लिए करें ये उपाय

shani sade sati and dhaiya : आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत 1 जुलाई, शनिवार को। शनिवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है। त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखा जाता है।

Yogesh Joshi लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSun, 25 June 2023 06:20 AM
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आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत 1 जुलाई, शनिवार को। शनिवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है। त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखा जाता है। हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का बहुत अधिक महत्व होता है। हर माह में दो बार प्रदोष व्रत पड़ता है। एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में। साल में कुल 24 प्रदोष व्रत पड़ते हैं।  प्रदोष व्रत के दिन भगवान शंकर और माता पार्वती की विधि- विधान से पूजा की जाती है। इस व्रत में प्रदोष काल में पूजा करने का बहुत अधिक महत्व होता है। भगवान शंकर और माता पार्वती की कृपा से व्यक्ति को सभी तरह के सुखों का अनुभव होता है। शनिवार के दिन पड़ने से प्रदोष व्रत का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। इस समय मकर, कुंभ, धनु राशि पर शनि की साढ़ेसाती और मिथुन, तुला राशि पर शनि की ढैय्या चल रही है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या लगने पर व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से मुक्ति के लिए लिंगाष्टकम स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। लिंगाष्टकम स्तोत्र का पाठ करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। आगे पढ़ें लिंगाष्टकम स्तोत्र-

  • लिंगाष्टकम स्तोत्र

ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं निर्मलभासितशोभितलिङ्गम् ।
जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥1॥ 

देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं कामदहं करुणाकरलिङ्गम् ।
रावणदर्पविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥2॥

सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम् ।
सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥3॥

कनकमहामणिभूषितलिङ्गं फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम् ।
दक्षसुयज्ञविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥4॥

कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गं पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम् ।
सञ्चितपापविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥5॥

देवगणार्चितसेवितलिङ्गं भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम् ।
दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥6॥

अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गं सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम् ।
अष्टदरिद्रविनाशितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥7॥

सुरगुरुसुरवरपूजितलिङ्गं सुरवनपुष्पसदार्चितलिङ्गम् ।
परात्परं परमात्मकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥8॥

लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

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