Shani Pradosh Vrat 2023: सावन का पहला शनि प्रदोष व्रत 15 जुलाई को, शनि साढ़ेसाती और ढैया वालों के लिए दोहरा लाभ
सावन का पहला शनि प्रदोष व्रत 15 जुलाई को है। यह दिन शिव भक्तों के साथ-साथ शनिदेव की साढ़ेसाती और ढैया से पीड़ित लोगों के लिए बहुत शुभ है। इस दिन शनि प्रदोष होने के साथ-साथ शिवरात्रि है। सावन का सबसे ब
सावन का पहला शनि प्रदोष व्रत 15 जुलाई को है। यह दिन शिव भक्तों के साथ-साथ शनिदेव की साढ़ेसाती और ढैया से पीड़ित लोगों के लिए बहुत शुभ है। इस दिन शनि प्रदोष होने के साथ-साथ शिवरात्रि है। सावन का सबसे बड़ा दिन, जिसका हर भक्त इंतजार करता है और शिवजी को जल अर्पित करता है। कावंड लेने वाले लोग भी इस दिन शिव जी का जलाभिषेक करते हैं। इस दिन व्रत रखा जाता है। प्रदोष काल के समय शिवजी की पूजा की जाती है और शनिदेव के लिए भी पीपल के पेड़ पर जल और दीपक जलाना, काला कपड़ा और उड़द की दाल दान करना, छाया दान करने से शनिदेव की साढ़ेसाती और ढैया से पीड़ित जातकों को लाभ होता है। एक तरह से यह दिन शिव भक्तों और शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए दो शुभ मौके लेकर आ रहा है, जब एक ही दिन पूजा से भोले बाबा के साथ शनिदेव की कृपा भी मिलेगी। इसलिए भोलेनाथ की अराधना और शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए सावन की शिवरात्रि यानी शनि प्रदोष का दिन बहुत अच्छा है। इस दिन सुबह-सवेरे स्नान करके साफ कपड़े पहनकर भगवान शिव को बेलपत्र, धतूरा अर्पित करना चाहिए। इसके अलावा दूध और जल से भोलेशंकर का अभिषेक करना चाहिए। पूजा के बाद शनि प्रदोष की कथा पढ़नी चाहिए, जो इस प्रकार है।
यहां पढ़ें शनि प्रदोष व्रत की कथा-
प्राचीन समय की बात है। एक नगर सेठ धन-दौलत और वैभव से सम्पन्न था। वह अत्यन्त दयालु था। उसके यहां से कभी कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता था। वह सभी को जी भरकर दान-दक्षिणा देता था। लेकिन दूसरों को सुखी देखने वाले सेठ और उसकी पत्नी स्वयं काफी दुखी थे। दुःख का कारण था उनकी संतान का न होना।
एक दिन उन्होंने तीर्थयात्रा पर जाने का निश्चय किया और अपने काम-काज सेवकों को सोंप चल पड़े। अभी वे नगर के बाहर ही निकले थे कि उन्हें एक विशाल वृक्ष के नीचे समाधि लगाए एक तेजस्वी साधु दिखाई पड़े। दोनों ने सोचा कि साधु महाराज से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा शुरू की जाए। पति-पत्नी दोनों समाधिलीन साधु के सामने हाथ जोड़कर बैठ गए और उनकी समाधि टूटने की प्रतीक्षा करने लगे। सुबह से शाम और फिर रात हो गई, लेकिन साधु की समाधि नही टूटी। मगर सेठ पति-पत्नी धैर्यपूर्वक हाथ जोड़े बैठे रहे।
अंततः अगले दिन प्रातः काल साधु समाधि से उठे। सेठ पति-पत्नी को देख वह मन्द-मन्द मुस्कराए और आशीर्वाद स्वरूप हाथ उठाकर बोले मैं तुम्हारे अन्तर्मन की कथा भांप गया हूं वत्स! मैं तुम्हारे धैर्य और भक्तिभाव से अत्यन्त प्रसन्न हूं। साधु ने सन्तान प्राप्ति के लिए उन्हें शनि प्रदोष व्रत करने की विधि समझाई।
तीर्थयात्रा के बाद दोनों वापस घर लौटे और नियमपूर्वक शनि प्रदोष व्रत करने लगे । कालान्तर में सेठ की पत्नी ने एक सुन्दर पुत्र जो जन्म दिया। शनि प्रदोष व्रत के प्रभाव से उनके यहां छाया अन्धकार लुप्त हो गया । दोनों आनन्दपूर्वक रहने लगे।
ये जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।
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