Shani Pradosh Vrat 2022 Katha: शनि त्रयोदशी या प्रदोष व्रत आज, जानें पूजन का शुभ मुहूर्त, विधि व व्रत कथा
Shani Pradosh Vrat 2022 Muhurat and Katha: शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति के जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। इस व्रत को करने से भगवान शिव की कृपा सदैव आप पर बनी रहती है।
Shani Pradosh Vrat 2022 Muhurat and Katha: हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। प्रदोष व्रत त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखा जाता है। हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का बहुत अधिक महत्व होता है। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शंकर और माता पार्वती की विधि- विधान से पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव व माता पार्वती की विधिवत पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है। शनि प्रदोष व्रत 22 अक्टूबर, शनिवार को है। इस दिन धनतेरस भी है। ऐसे में इस साल धनतेरस पर शनि त्रयोदशी का शुभ योग बन रहा है। आइए जानते हैं शनि प्रदोष व्रत पूजा- विधि और शुभ मुहूर्त-
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शनि प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त 2022-
22 अक्टूबर को त्रयोदशी शाम 06 बजकर 02 मिनट से प्रारंभ होगी, जो कि 23 अक्टूबर को शाम 06 बजकर 03 मिनट पर समाप्त होगी। भगवान शिव की पूजन का सबसे उत्तम मुहूर्त शाम 06:02 पी एम से 08:17 पी एम तक रहेगा।
शनि प्रदोष व्रत विधि-
शनि प्रदोष व्रत के दिन व्रती को प्रात:काल उठकर नित्य क्रम से निवृत हो स्नान कर शिव जी का पूजन करना चाहिये। पूरे दिन मन ही मन “ऊँ नम: शिवाय ” का जाप करें। पूरे दिन निराहार रहें। त्रयोदशी के दिन प्रदोष काल में यानी सुर्यास्त से तीन घड़ी पूर्व, शिव जी का पूजन करना चाहिये।
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शनि प्रदोष व्रत कथा-
प्राचीन समय की बात है। एक नगर सेठ धन-दौलत और वैभव से सम्पन्न था। वह अत्यन्त दयालु था। उसके यहां से कभी कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता था। वह सभी को जी भरकर दान-दक्षिणा देता था। लेकिन दूसरों को सुखी देखने वाले सेठ और उसकी पत्नी स्वयं काफी दुखी थे। दुःख का कारण था उनकी संतान का न होना।
एक दिन उन्होंने तीर्थयात्रा पर जाने का निश्चय किया और अपने काम-काज सेवकों को सोंप चल पड़े। अभी वे नगर के बाहर ही निकले थे कि उन्हें एक विशाल वृक्ष के नीचे समाधि लगाए एक तेजस्वी साधु दिखाई पड़े। दोनों ने सोचा कि साधु महाराज से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा शुरू की जाए। पति-पत्नी दोनों समाधिलीन साधु के सामने हाथ जोड़कर बैठ गए और उनकी समाधि टूटने की प्रतीक्षा करने लगे। सुबह से शाम और फिर रात हो गई, लेकिन साधु की समाधि नही टूटी। मगर सेठ पति-पत्नी धैर्यपूर्वक हाथ जोड़े बैठे रहे।
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अंततः अगले दिन प्रातः काल साधु समाधि से उठे। सेठ पति-पत्नी को देख वह मन्द-मन्द मुस्कराए और आशीर्वाद स्वरूप हाथ उठाकर बोले मैं तुम्हारे अन्तर्मन की कथा भांप गया हूं वत्स! मैं तुम्हारे धैर्य और भक्तिभाव से अत्यन्त प्रसन्न हूं। साधु ने सन्तान प्राप्ति के लिए उन्हें शनि प्रदोष व्रत करने की विधि समझाई।
तीर्थयात्रा के बाद दोनों वापस घर लौटे और नियमपूर्वक शनि प्रदोष व्रत करने लगे । कालान्तर में सेठ की पत्नी ने एक सुन्दर पुत्र जो जन्म दिया। शनि प्रदोष व्रत के प्रभाव से उनके यहां छाया अन्धकार लुप्त हो गया । दोनों आनन्दपूर्वक रहने लगे।
ये जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।
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