Hindi Newsधर्म न्यूज़Pitru Paksha 2022: Ancestors waiting for tarpan in Muktidham

पितृ पक्ष 2022: मुक्तिधाम के कलशों में तर्पण का इंतजार कर रहे पुरखे

Pitru Paksha 2022: हल्द्वानी के मुक्तिधाम में चार वर्षों से लावारिस पड़ी हैं मृतकों की अस्थियां, अंतिम संस्कार के बाद वापस अस्थियां लेने ही नहीं आए परिजन।

Saumya Tiwari मुकेश सक्टा, हल्द्वानीMon, 12 Sep 2022 07:31 AM
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गरुड़ पुराण में तर्पण और श्राद्ध का विशेष महत्व है। माना जाता है कि तर्पण और श्राद्ध से पितर खुश होकर वंशजों को सुख, समृद्धि और संतान के सुख का आशीर्वाद देते हैं। लेकिन मान्यता के उलट हल्द्वानी के राजपुरा श्मशान घाट के मुक्तिधाम में कलशों में बंद पुरखों की अस्थियां तर्पण के लिए वंशजों का इंतजार कर रही हैं।

इन दिनों घर-घर में पूर्वजों को प्रसन्न करने के लिए श्राद्ध किए जा रहे हैं। इसके विपरीत आधुनिकता के इस दौर में कई लोग तर्पण और श्राद्ध का महत्व भूलते जा रहे हैं। इसकी तस्दीक राजपुरा श्मशान घाट में बना बंद कमरा कर रहा है। जिसमें सौ से अधिक अस्थि कलश जमा हो चुके हैं। इनमें से कई कलश ऐसे हैं, जो चार-पांच बीतने से क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। इतना लम्बा समय बीतने के बाद भी अस्थियों को लेने के लिए वंशज नहीं आए।

2018 में कराया था सामूहिक विसर्जन मुक्तिधाम समिति के मुंशी भगरासन प्रसाद ने बताया कि 2018 में यहां काफी संख्या में अस्थि कलश जमा हो गए थे। इसके बाद लोगों से संपर्क किया गया। कई लोगों ने अस्थियों को वापस ले जाने में असमर्थता जताई, जिसके बाद उन अस्थियों का रानीबाग स्थित चित्रशिला घाट पर विर्सजन कर दिया गया।

वादा कर लौटकर नहीं आते वंशज

मुक्तिधाम समिति के कर्मचारी दीपू कश्यप ने बताया कि कई बार लोग तेरहवीं के बाद अस्थि कलश वापस लेने की बात कहकर चले जाते हैं। बाकायदा रजिस्टर में उन लोगों का नाम और नंबर भी दर्ज किया जाता है, लेकिन कई लोग पुरखों की अस्थियां लेने नहीं आते।

श्राद्धों में विसर्जन की उम्मीद

समिति के मुंशी भगरासन प्रसाद ने बताया कि श्राद्ध वह अवसर है, जब लोगों को पितरों की याद आती है। हर साल इस अवसर पर कुछ लोग यहां रखे अस्थि कलश को लेने पहुंचते भी हैं। उन्हें उम्मीद है कि इस बार भी वंशज धाम में रखे अस्थि कलश को लेने आएंगे और उनका विसर्जन कर पितरों का तर्पण करेंगे।

कई बार दुर्घटना, अस्पतालों में बीमारी से हुई मौत आदि के मामलों में परिजन अस्थि कलश यहीं छोड़ जाते हैं। संस्था इन्हें सुरक्षित रखती है। मुक्तिधाम समिति ने चार साल पूर्व हिन्दू रीति-रिवाज के साथ अस्थियों का विसर्जन किया था। इस बार भी परिजनों से संपर्क कर लावारिस रह गए अस्थि कलशों को विसर्जित कर दिया जाएगा।

-रामबाबू जायसवाल, अध्यक्ष, मुक्तिधाम समिति

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