Jivitputrika Vrat katha: यहां पढ़ें जितिया व्रत की कहानी
Jivitputrika Vrat katha: जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे जिउतिया व्रत भी कहा जाता है, इस साल 18 सितंबर को मनाया जाएगा। इसके लिए एक दिन पहले से महिलाएं तैयारी शुरू कर देती हैं। व्रत और पूजा के लिए सभी चीजों
Jivitputrika Vrat katha: जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे जिउतिया व्रत भी कहा जाता है, इस साल 18 सितंबर को मनाया जाएगा। इसके लिए एक दिन पहले से महिलाएं तैयारी शुरू कर देती हैं। व्रत और पूजा के लिए सभी चीजों को एकत्र किया जाता है। व्रत के दिन शाम को घर पर व्रती महिलाएं चौकी सजाकर पूजन करती हैं और जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनती हैं।
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कथा के बाद गले में जिउतिया बांधने के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है। यह व्रत संतान की दीर्घायु की कामना के लिए किया जाता है। इस व्रत में अगले दिन सूर्योदय तक कुछ नहीं खाते और पीते। अगले दिन दूध से व्रत का पारण किया जाता है। कहा जाता है कि इस व्रत में जीमूतवाहन देवता की पूजा की जाती है। इस व्रत की कहानी भी जीमूतवाहन देवता से जुड़ी हुई है।
Jivitputrika Vrat katha: जिउतिया व्रत की पौराणिक कथाः
इस व्रत की कहानी जीमूतवाहन से जुड़ी है। गन्धर्वराज जीमूतवाहन बड़े धर्मात्मा और त्यागी पुरुष थे।इसलिए उन्होंने अपना राज्य आदि छोड़ दिया और वो अपने पिता की सेवा करने के लिए वन में चले गए थे। वन में एक बार उन्हें घूमते हुए नागमाता मिली। नागमाता विवाप कर रही थी, जब जीमूतवाहन ने उनके विलाप करने का कारण पूछा, तो उन्होंने बताया कि नागवंश गरुड़ से काफी परेशान है, वंश की रक्षा करने के लिए वंश ने गरुड़ से समझौता किया है। समझौते के अनुसार वे प्रतिदिन उसे एक नाग खाने के लिए देंगे और बदले में वो हमारा सामूहिक शिकार नहीं करेगा।
उन्होंने आगे बताया कि इस प्रक्रिया में आज उसके पुत्र को गरुड़ के सामने जाना है। नागमाता की पूरी बात सुनकर जीमूतवाहन ने उन्हें वचन दिया कि वे उनके पुत्र को कुछ नहीं होने देंगे। उसकी जगह कपड़े में लिपटकर खुद गरुड़ के सामने उस शिला पर लेट जाएंगे, जहां से गरुड़ अपना आहार उठाता है और उन्होंने ऐसा ही किया।
गरुड़ ने जीमूतवाहन को अपने पंजों में दबाकर पहाड़ की तरफ उड़ गया। जब गरुड़ ने देखा कि हमेशा की तरह नाग चिल्ला नहीं रहा है और उसकी कोई आवाज नहीं आ रही है। गरुड़ ने कपड़ा हटाया, ऐसे में उसने जीमूतवाहन को सामने पाया। जीमूतवाहन ने सारी कहानी गरुड़ को बता दी, जिसके बाद उसने जीमूतवाहन को छोड़ दिया और नागों को ना खाने का भी वचन दिया।
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