Jitiya vrat 2023 vrat niyam:कठिन हैं जितिया व्रत के नियम, जान लें और तीन दिन के व्रत में न करें कोई भूलचूक
संतान की सुखी जीवन, निरोगता एवं लंबी उम्र के लिए हर साल पितृपक्ष हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष के अष्टमी तिथि जीवित्पुत्रिका पर्व रखा जाता है। यह व्रत उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और कहीं-कहीं मध्यप
संतान की सुखी जीवन, निरोगता एवं लंबी उम्र के लिए हर साल पितृपक्ष हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष के अष्टमी तिथि जीवित्पुत्रिका पर्व रखा जाता है। यह व्रत उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और कहीं-कहीं मध्यप्रदेश में भी महिलाएं खासतौर पर रखती है। वंश वृद्धि के लिए भी महिलाएं जीवित्पुत्रिका व्रत रखती हैं। इस व्रत को जितिया या जिउतिया व्रत भी कहते हैं। यह व्रत कठिन व्रतों में से एक है, इस व्रत में महिलाएं तीन दिनों तक व्रत रखती है। यह व्रत निर्जला रखा जाता है और नवमी के दिन इस व्रत का पारण होता है। पहले दिन नहाय खाय और दूसरे दिन शाम के समय स्नान पूजा करने के बाद व्रत कथा पढ़ती हैं और अगले दिन पारण करती हैं। इस व्रत में नियमों का खास ध्यान रखा जाता है। तीन दिन तक सभी नियमों का पालन करना चाहिए, तभी व्रत पूर्ण माना जाता है।
Rules of Jitiya vrat :जितिया का व्रत के दौरान निर्जला रहा जाता है। इस व्रत में आचमन करना भी वर्जित माना जाता है। इसलिए कोशिश करें कि जितिया व्रत में जल का एक बूंद भी ग्रहण न करें।
जितिया व्रत तीन दिन होता है, इसलिए नहाय खाय से पारण तक पूरे तीन दिनों के लिए नियम मानने चाहिए। पहले दिन नहाय-खाय और दूसरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है। इसलिए तीसरे दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नानादि करने और पूजा-पाठ करने के बाद ही व्रत का पारण करें।
इस दिन भगवान सूर्य देव की भी पूजा की जाती है। उन्हें बाजरे और चने से बने व्यंजन अर्पित करने चाहिए।
इस दिन कोई वस्तु ना काटे और ना ही कटे हुए फल-सब्जी का उपयोग करें। किसी भी तरह की जीव हत्या करना पाप माना जाता है। इसलिए सब्जी में कोई जीव आदि हो और काटते समय वह कट जाए, इसलिए इस दिन चाकू का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
इस व्रत को रखने से पहले नोनी का साग खाने की भी परंपरा है। कहते हैं कि नोनी के साग में कैल्शियम और आयरन भरपूर मात्रा में होता है। जिसके कारण व्रती के शरीर को पोषक तत्वों की कमी नहीं होती है।
इस व्रत के पारण के बाद महिलाएं पूजा में अर्पित किया हुआ लाल या पीला रंग का धागा भी गले में पहनती हैं। इसके बाद कोई शुभ दिन देखकर इसे उतारा जाता है।
जीमूतवाहन की पूजा में सरसों का तेल और खल चढ़ाया जाता है। व्रत पारण के बाद यह तेल बच्चों के सिर पर लगाया जाता है, ऐसा कहा जाता है कि यह भगवान का आशीर्वाद है।
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