Hindi Newsधर्म न्यूज़Jitiya Vrat 2022 Katha: Lord Shankar told the importance of Jitiya Vrat or Jitiya Vrat to Mother Parvati read the story

Jitiya Vrat 2022 Katha: जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत का भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताया था महत्व, पढ़ें कथा

Jitiya Vrat: माताएं अपने संतान की खुशहाली के लिए जिउतिया व्रत निराहार और निर्जला रखती हैं। व्रत को लेकर विद्वान संतों ने कहा है कि जीवित्पुत्रिका व्रत 18 सितंबर को करना ही श्रेयस्कर होगा।

Saumya Tiwari लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSun, 18 Sep 2022 06:08 AM
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Jivitputrika Vrat 2022 Katha: हिंदू धर्म में जीवित्पुत्रिका व्रत का विशेष महत्व है। इस व्रत को जितिया या जिउतिया व्रत के नाम से भी जानते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि से नवमी तिथि तक जीवित्पुत्रिका व्रत मनाया जाता है। अष्टमी तिथि के दिन सुहागिन महिलाएं अपने संतान की लंबी आयु व सुख-समृद्धि की कामना के लिए व्रत करती हैं। इस साल जीवित्पुत्रिका व्रत 18 सितंबर 2022, रविवार को है।

पढ़ें जीवित्पुत्रिका व्रत से जुड़ी पावन कथा-

इस व्रत के संबंध में भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताया था कि यह व्रत संतान की सुरक्षा के लिए किया जाता है। इस व्रत से जुड़ी एक पौराणिक कथा है, जो जिमूतवाहन से जुड़ी है। सत्य युग में गंधर्वों के एक राजकुमार थे, जिनका नाम जिमूतवाहन था। वे सद् आचरण, सत्यवादी, बडे उदार और परोपकारी थे। जिमूतवाहन को राजसिंहासन पर बिठाकर उनके पिता वन में वानप्रस्थी का जीवन बिताने चले गए। जिमूतवाहन का राज-पाट में मन नहीं लगता था। वे राज-पाट की जिम्मेदारी अपने भाइयों को सौंप पिता की सेवा करने के उद्देश्य से वन में चल दिए। वन में ही उनका विवाह मलयवती नाम की कन्या के साथ हो गया।

वन में भ्रमण करते हुए जब एक दिन वे काफी आगे चले गए, तो एक वृद्धा को रोते हुए देखा। उनका हृदय द्रवित हो गया। उन्होंने वृद्धा से उसके रोने का कारण पूछा तो उसने बताया- मैं नागवंश की स्त्री हूं। मुझे एक ही पुत्र है। नागों ने पक्षीराज गरुड़ को भोजन केे लिए प्रतिदिन एक नाग देने की प्रतिज्ञा की है। आज मेरे पुत्र शंखचूड़ की बलि का दिन है। जिमूतवाहन ने वृद्धा को आश्वस्त करते हुए कहा- डरो मत, मैं तुम्हारे पुत्र के प्राणों की रक्षा करूंगा। आज तुम्हारे पुत्र की जगह स्वयं को लाल कपडों से ढक कर शिला पर लेटूंगा। जिमूतवाहन ने शंखचूड़ के हाथ से लाल कपड़ा ले लिया और उसे लपेट कर निश्चित शिला पर लेट गए।

गरूड़ जी आए और लाल कपड़े में लिपटे जिमूतवाहन को पंजे से पकड़ कर पहाड़ के शिखर पर जा बैठे। इस बीच अपनी पकड़ में आए प्राणी की आंखों में आंसू देख कर गरुड़ जी आश्चर्य में पड़ गए। उससे परिचय पूछा, तो जिमूतवाहन ने सारी कथा सुना दी। गरुड़ जी उनकी बहादुरी और दूसरों की प्राण रक्षा के लिए खुद को बलिदान करने की भावना से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने जीमूतवाहन को जीवनदान दे दिया और नागों की बलि ना लेने का वचन भी दिया। जिमूतवाहन के त्याग और साहस से नाग जाति की रक्षा हुई। तभी से संतान की सुरक्षा और सुख के लिए जीमूतवाहन की पूजा की शुरुआत हो गई। यह व्रत कठिन तो है, पर बहुत फलदायी भी है। इस व्रत को जिउतिया के नाम से भी जाना जाता है।

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