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Chaitra Navratri Kalash Sthapana :30 साल के बाद सर्वार्थअमृत सिद्धि योग में नवरात्र, जो अतयंत शुभकारी, इस समय करें घटस्थापना

Chaitra Navratri : इस साल चैत्र नवरात्रि पर 30 साल के बाद सर्वार्थअमृत सिद्धि योग बनने जा रहा है, जो अत्यंत शुभकारी है। इस दौरान मां दुर्गा की आराधना करने से सभी कष्ट और दुखों से मुक्ति मिलती है।

Yogesh Joshi लाइव हिन्दुस्तान टीम, नई दिल्लीTue, 9 April 2024 08:39 AM
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Chaitra Navratri 2024 : इस साल चैत्र नवरात्रि पर 30 साल के बाद सर्वार्थअमृत सिद्धि योग बनने जा रहा है, जो अत्यंत शुभकारी है। इस दौरान मां दुर्गा की आराधना करने से सभी कष्ट और दुखों से मुक्ति मिलती है। नक्षत्रों में पहला नक्षत्र अश्विनी नक्षत्र माना गया है। अगर मंगलवार के दिन अश्विनी नक्षत्र हो तो यह सर्वार्थअमृत सिद्धि योग कहलाता है। इस बार चैत्र नवरात्रि पर बन रहा यह संयोग काफी अद्भुत माना जा रहा है। लगभग 30 साल बाद बन रहे इस योग के संबंध में अथर्ववेद में बताया गया है कि अश्विनी नक्षत्र के दौरान माता की आराधना करने से मृत्यु तुल्य कष्टों से मुक्ति मिलती है। अश्विनी नक्षत्र नौ अप्रैल को 8 बजकर 9 मिनट पर मिनट प्रारंभ होगा। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 8 अप्रैल को देर रात 11 बजकर 55 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन यानी 9 अप्रैल को रात्रि 9 बजकर 44 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि मान्य है। इसलिए 9 अप्रैल को घटस्थापना है। साधक सुविधा के अनुसार घटस्थापना कर मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप की पूजा-अर्चना कर सकते हैं।

इस तरह करें पूजा: नवरात्रि के दिन साधक को प्रात:काल जल्दी उठकर स्नान-ध्यान करके देवी दुर्गा की तस्वीर या मूर्ति को एक लाल रंग के कपड़े में रखकर लाल रंग के वस्त्र या फिर चुनरी आदि पहनाकर रखना चाहिए। इसके साथ एक मिट्टी के बर्तन में जौ के बीज बोना चाहिए। जिसमें प्रतिदिन उचित मात्रा में जल का छिड़काव करते रहना होता है। मंगल कलश में गंगाजल, सिक्का आदि डालकर उसे शुभ मुहूर्त में आम्रपल्लव और श्रीफल रखकर स्थापित करें। फल-फूल आदि को अर्पित करते हुए देवी की विधि-विधान से प्रतिदिन पूजा करें। अष्टमी या नवमी के दिन देवी की पूजा के बाद नौ कन्याओं का पूजन करें और उन्हें पूड़ी, चना, हलवा आदि का प्रसाद खिलाकर कुछ दक्षिण देकर विदा करें। गुप्त नवरात्रि के आखिरी दिन देवी दुर्गा की पूजा के पश्चात् देवी दुर्गा की आरती गाएं। पूजा की समाप्ति के बाद कलश को किसी पवित्र स्थान पर विसर्जन करें।

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