Pitru Paksha : पूर्णिमा का श्राद्ध आज, ज्योतिषाचार्य से जानें पितृदोष के लक्षण और उपाय, नोट कर लें तर्पण की आसान विधि
bhadrapada purnima shradh : इस पक्ष के महत्व पर प्रकाश डालते फेफना थाना क्षेत्र के इंदरपुर थम्हनपुरा निवासी आचार्य डॉ. अखिलेश उपाध्याय ने बताया कि पितृपक्ष अपने पितरों को भोजन, दान व तर्पण कर तृप्त कर
पितृ ऋण से मुक्ति का सबसे उत्तम समय शास्त्रों में पितृपक्ष को बताया गया है। यह पक्ष इस वर्ष 11 सितम्बर यानि कल से शुरू हो रहा है। वहीं भाद्रपद की पूर्णिमा श्राद्ध आज यानि 10 सितम्बर को है।
इस पक्ष के महत्व पर प्रकाश डालते फेफना थाना क्षेत्र के इंदरपुर थम्हनपुरा निवासी आचार्य डॉ. अखिलेश उपाध्याय ने बताया कि पितृपक्ष अपने पितरों को भोजन, दान व तर्पण कर तृप्त करने का समय आश्विन कृष्ण पक्ष को पितृपक्ष 11 सितम्बर से शुरू हो रहा है जबकि पितृ विर्सजनी अमवस्या 25 सितम्बर को मनाई जायेगी।
बताया कि पुराणों में वर्णन मिलता है कि चंद्रमा के ऊपर एक अन्य लोक है, जिसे पितर लोक माना जाता है। शास्त्रों में वर्णन के अनुसार पितरों को दो भागों में बांटा गया है, इसमें एक मनुष्य पितर व दूसरा दिव्य पितर। मनुष्य व अन्य जीवों के कर्मों के आधार पर दिव्य पितर उनका न्याय करते हैं, जबकि न्यायाधीश यमराज होते हैं। शास्त्रों में वर्णन के अनुसार पितर गंध व रस से तृप्त होते हैं, जबकि जलते हुए उपले में गुड़ घी और अन्न अर्पित किया जाता है, इससे उत्पन्न गंध से पितर भोजन ग्रहण करते हैं।
ऐसे तर्पण से प्रसन्न होते हैं पितृ
- डॉ. अखिलेश उपाध्याय ने बताया कि पितरों को तर्पण करते समय हाथ में कुश लेकर हाथ जोड़कर अंगूठ से जल देने से पितर तृप्त होते हैं। श्राद्ध करते समय ऊं आगच्छतु पितर ग्रहन्तु जलांजलिम मंत्र उच्चारित कर जल देना श्रेयस्कर होता है। हालांकि डॉ. उपाध्याय ने बताया कि श्राद्ध श्रद्धा से किया जाता है इसमें आस्था होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि पितृपक्ष में काला तिल, गेहूं, चावल, गाय, सोना, सफेद वस्त्र, चांदी का दान फलदायी होता है।
यह है पितृदोष के लक्षण
- डॉ. अखिलेश उपाध्याय ने बताया कि गृहक्लेश, संतान से सम्बंधित परेशानी, विवाह में बाधा आकस्मिक दुर्घटना, नौकरी, व्यापार में घाटा, खराब सेहत सहित तमाम दु:ख पितृदोष के लक्षण हैं। डॉ. उपाध्याय ने बताया कि पितृपक्ष में जलांजलि, पिंडदान व श्राद्ध नहीं करने पितृदोष लगता है। इस दोष से मुक्ति के लिए श्राद्ध पक्ष में पूर्वजनों के निधन की तिथि पर तर्पण करना चाहिए। पिंडदान के लिए उत्तम स्थान घर, मंदिर, गंगा या अन्य नदी तलाब का तट होता है। पिंडदान के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।
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