Hindi Newsधर्म न्यूज़Bhadrapada Amavasya 2022 Date: Kushotpatini Amavasya is suitable for performing Shradh-Pindadan for pitra throughout the year - Astrology in Hindi

Bhadrapada Amavasya 2022 Date:वर्ष भर में पितरों के नाम श्राद्ध-पिंडदान के लिए  कुशोत्पाटिनी अमावस्या उपयुक्त

भारतीय पंचांग में प्रति मास कृष्ण पक्ष की पंद्रहवीं तिथि को अमावस्या कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जिस प्रकार पूर्णिमा तिथि देवताओं को अति प्रिय है। उसी प्रकार अमावस्या तिथि पितरों के लिए है।

Anuradha Pandey हिन्दुस्तान टीम, नई दिल्लीWed, 24 Aug 2022 05:12 AM
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भारतीय पंचांग में प्रति मास कृष्ण पक्ष की पंद्रहवीं तिथि को अमावस्या कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जिस प्रकार पूर्णिमा तिथि देवताओं को अति प्रिय है। उसी प्रकार अमावस्या तिथि पितरों के लिए है। पुरुषोत्तम मास को छोड़कर वर्ष भर में कुल बारह अमावस्या होती हैं, जिनका अलग-अलग नाम है। भाद्रपद की अमावस्या को कुशोत्पतिनी अमावस्या अथवा कुशोत्पाटिनी अमावस्या कहा गया है। इसे पिठोरी अमावस्या या पोला पिठौरा भी कहा जाता है।

नाम से भी यह स्पष्ट होता है कि इसमें कुछ और पिठ्ठी की प्रधानता होती है। विष्णु पुराण से स्पष्ट होता है कि देवताओं द्वारा चंद्रमा का नित्य अमृतपान करते रहने से चंद्रदेव की कलाएं क्षीण होती हैं और फिर अमावस्या तक पूर्ण क्षीण होते ही सूर्य देवता शुक्ल प्रतिपदा से चंद्रमा को पुन पोषण कर पुष्ट कर देते हैं। फिर आधे माह के एकत्र अमृत तत्व का पान देवता गण करते हैं। इसके बाद पुन सूर्य देवता चंद्रमा को पुष्ट कर देते हैं। जिस समय दो कलामात्र अवशिष्ट चंद्रमा सूर्य मंडल में प्रवेश करके उसकी अमा नामक किरण में निवास करता है, वही तिथि अमावस्या कहलाती है।

इस व्रत से जुड़ी धार्मिक कथा से स्पष्ट होता है कि माता पार्वती ने इंद्राणियों को इस व्रत के बारे में पहले पहल बताया था। इस दिन आटा गूंथकर चौंसठ मूर्तियां बनाई जाती, जो भगवती दुर्गा सहित सभी देवियों को समर्पित होता है। आज श्री विष्णु आराधना का भी उत्तम समय बताया जाता है। इस दिन आसन पर मूर्तियों को स्थापित कर सभी की पूजा की जाती है। यह व्रत महिलाएं अपनी संतान और पति के लिए रखती हैं। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से निसंतानों को संतान की प्राप्ति होती है। इसके अलावा संतान की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य का भी आशीर्वाद मिलता है। कुशोत्पतिनी अमावस्या का यह व्रत और पूजन केवल विवाहित महिलाएं ही करती हैं।

वर्ष भर में पितरों के नाम श्राद्ध-पिंडदान के लिए जो तिथि उपयुक्त बताई जाती है,उसमें कुशोत्पतिनी अमावस्या भी एक है। विवरण है कि इस दिन नदी अथवा जल राशि में पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध और ब्राह्मण भोजन कराना अति उत्तम है। इससे पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। शास्त्रोक्त उल्लेख है कि पितृगण इस अमावस्या की तृप्ति से प्रसन्न होकर कर्ता को सपरिवार प्रगति पथ पर अग्रसर रहने का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इस अमावस्या का विशेष महत्व इसलिए भी है कि इसके प्रभाव से पति और संतान दोनों का कल्याण होता है। इस व्रत में दिन भर उपवास रहकर संध्या काल में षोडशोपचार पूजन से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस व्रत में लोकमंगल और जन कल्याण का भाव सन्नहित है।

डॉ. राकेश कुमार सिन्हा ‘रवि’

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