पितृ पक्ष आज से, तर्पण कल से, जानें कैसे करें श्राद्ध, कौन कर सकता है तर्पण और चंद्र ग्रहण का सूतक क्या होगा मान्य?
Pitru Paksha date and time in india: चतुर्दशी तिथि 17 सितंबर को पूर्वाह्न 11.09 बजे तक है, उसके बाद पूर्णिमा तिथि लग जाएगी। अत दोपहर में पूर्णिमा का श्राद्ध होगा। भगवान विश्वकर्मा की पूजा भी शास्त्रत्तनुसार 17 सितंबर को होगी। कोई तिथि क्षय न होने से इस बाऱ पूरे 16 दिन के श्राद्ध होंगे।
अद्भुत संयोगों के साथ पितृ पक्ष का प्रारंभ 17 सितंबर मंगलवार से हो रहा है। ग्रह नक्षत्रों की स्थिति के कारण छह पर्व संयोग उपस्थित होंगे। अनंत चतुर्दशी के दिन ही पूर्णिमा का भी श्राद्ध होगा। हमारे पितृ देवताओं का हमारे घर में वास होगा। तर्पण-अर्पण का क्रम दो अक्तूबर को पितृ विसर्जन अमावस्या तक चलेगा। पं.शंभूनाथ झा और ज्योतिषाचार्य पीके युग के अनुसार, वंशज अपने पितरों का श्राद्ध और तर्पण कर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करेें। -ऊं तस्मै स्वधा नम। भारतीय ज्योतिष कर्मकांड महासभा के अध्यक्ष केसी. पांडेय, ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद शर्मा, पंडित मनोज तिवारी के अनुसार चतुर्दशी तिथि 17 सितंबर को पूर्वाह्न 11.09 बजे तक है, उसके बाद पूर्णिमा तिथि लग जाएगी। अत दोपहर में पूर्णिमा का श्राद्ध होगा। भगवान विश्वकर्मा की पूजा भी शास्त्रत्तनुसार 17 सितंबर को होगी। कोई तिथि क्षय न होने से इस बाऱ पूरे 16 दिन के श्राद्ध होंगे।
अद्भुत संयोग
17 सितंबर को अनंत चतुर्दशी, सूर्य संक्रांति पुण्यकाल, विश्वकर्मा जयंती, गणपति प्रतिमाओं का विसर्जन, भाद्रपद पूर्णिमा के साथ ही पितृ पक्ष का भी प्रारंभ होगा।
18 सितंबर को चंद्रग्रहण, सूतक नहीं
चंद्रग्रहण भारत में दिखाई नहीं देने की वजह से इसका सूतक प्रभावी नहीं होगा। पुत्र, पौत्र, भतीजा, भांजा कोई भी श्राद्ध कर सकता है। जिनके घर में कोई पुरुष सदस्य नहीं है लेकिन पुत्री के कुल में हैं तो धेवता और दामाद भी श्राद्ध कर सकते हैं।
कब होता है पितृ पक्ष
भाद्र पक्ष की पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर श्राद्ध पक्ष आश्विन मास की अमावस्या तक होता है। पूर्णिमा का श्राद्ध उनका होता है, जिनकी मृत्यु वर्ष की किसी पूर्णिमा को हुई हो। वैसे, ज्ञात, अज्ञात सभी का श्राद्ध आश्विन अमावस्या को किया जाता है।उदयतिथि के अनुसार, पूर्णिमा व प्रतिपदा का तर्पण 18 सितंबर को होगा।
कैसे करें श्राद्ध
पहले यम के प्रतीक कौआ, कुत्ते और गाय का अंश निकालें ( इसमें भोजन की समस्त सामग्री में से कुछ अंश डालें) फिर किसी पात्र में दूध, जल, तिल और पुष्प लें। कुश और काले तिलों के साथ तीन बार तर्पण करें। ऊं पितृदेवताभ्यो नम पढ़ते रहें। वस्त्रत्तदि जो भी आप चाहें पितरों के निमित निकाल कर दान कर सकते हैं।
तीन पीढ़ियों तक का ही श्राद्ध
श्राद्ध केवल तीन पीढ़ियों तक का ही होता है। धर्मशास्त्रत्तें के मुताबिक सूर्य के कन्या राशि में आने पर परलोक से पितृ अपने स्वजनों के पास आ जाते हैं। देवतुल्य स्थिति में तीन पीढ़ी के पूर्वज गिने जाते हैं। पिता को वसु के समान, रुद्र दादा के समान और परदादा आदित्य के समान माने गए हैं। इसके पीछे एक कारण यह भी है कि मनुष्य की स्मरण शक्ति केवल तीन पीढ़ियों तक ही सीमित रहती है।
श्राद्ध पक्ष में जल और तिल ( देवान्न) द्वारा तर्पण किया जाता है। जो जन्म से लय( मोक्ष) तक साथ दे, वही जल है। तिलों को देवान्न कहा गया है। इससे ही पितरों को तृप्ति होती है।
पितृ शांति के लिए यह करें
●एक माला प्रतिदिन ऊं पितृ देवताभ्यो नम की करें
●ऊं नमो भगवते वासुदेवाय, गायत्री मंत्र का जाप करते रहें
मृत्यु तिथि याद न हो तो....
●प्रतिपदा नाना-नानी
●पंचमी जिनकी मृत्यु अविवाहित हो गई हो।
●नवमी माता व अन्य महिलाओं का।
●एकादशी व द्वादशी पिता, पितामह
●चतुर्दशी अकाल मृत्यु हुई हो।
●अमावस्या ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों का।
(जिस हिन्दी तिथि को मृत्यु हुई है, श्राद्ध उसी दिन होना चाहिए। अन्यथा पितृ अमावस्या को करें।)
कौआ, कुत्ता और गाय क्यों?
●इनको यम का प्रतीक माना गया है। गाय को वैतरिणी पार करने वाली कहा गया है। कौआ भविष्यवक्ता और कुत्ते को अनिष्ट का संकेतक कहा गया है। इसलिए, श्राद्ध में इनको भी भोजन दिया जाता है। चूंकि हमको पता नहीं होता कि मृत्यु के बाद हमारे पितृ किस योनि में गए, इसलिए प्रतीकात्मक रूप से गाय, कुत्ते और कौआ को भोजन कराया जाता है।
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