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Pitru paksha special: कौन हैं पितरों के देवता और अधिपति, इनके संतुष्ट होने से तृप्त होते हैं पितृ

god of ancestors pitru:अर्यमा की गणना नित्य पितर में की जाती है। इस सृष्टि में शरीर का निर्माण नित्य पितृ ही करते हैं। इनके संतुष्ट होने पर ही पितरों को तृप्ति मिलती है।

Anuradha Pandey हिन्दुस्तान टीमTue, 24 Sep 2024 09:48 AM
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भागवत गीता के दसवें अध्याय में श्रीकृष्ण ने कहा है—अनंतश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्।

पितृणामर्यमा चास्मि यम संयमतामहम्॥

(।। 10.29।।)

—‘मैं नागों में अनंत (शेषनाग) और जल-जंतुओं का अधिपति वरुण हूं। पितरों में मैं अर्यमा हूं और नियमन करनेवालों में मैं यम हूं।’ अर्यमा पितरों के राजा माने गए हैं और यमराज न्यायाधीश। अर्यमा चंद्रमंडल में स्थित पितृलोक के सभी पितरों के अधिपति हैं। कौन-सा पितृ किस कुल और किस परिवार से है, इसका लेखा-जोखा भी अर्यमा ही रखते हैं। ऋषि कश्यप और देवमाता अदिति के बारह पुत्रों में तीसरे पुत्र अर्यमन हैं, जिन्हें अर्यमा भी कहा जाता है। ये आदित्य का छठा रूप हैं और वायु रूप में प्राण शक्ति का संचार करते हैं तथा प्रकृति की आत्मा के रूप में निवास करते हैं। पितरों के देवता के रूप में इनका प्रात और रात्रि के चक्र पर अधिकार है तथा आकाशगंगा इनका मार्ग है। नक्षत्रों में मघा नक्षत्र के स्वामी हैं। अर्यमा की गणना नित्य पितर में की जाती है। इस सृष्टि में शरीर का निर्माण नित्य पितर ही करते हैं। इनके संतुष्ट होने पर ही पितरों को तृप्ति मिलती है।

श्राद्ध के समय इनके नाम से जल दान किया जाता है। पितृ पक्ष में पितृ देव अर्यमा की पूजा का विधान है। यदि पितृ पक्ष में त्रयोदशी तिथि के दिन मघा नक्षत्र भी हो तो पितरों की पूजा का विशेष फल मिलता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन स्वयं पितृ देव अर्यमा पितरों सहित मनुष्यों द्वारा दिए गए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म को ग्रहण करते हैं, इसलिए इसे ‘मघा’ श्राद्ध भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मृत्यु के पश्चात यमराज सोलह दिनों के लिए मृत आत्माओं को मुक्त कर देते हैं, ताकि वे अपने परिजनों के पास जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें और उन्हें आशीर्वाद दें।

सूर्य के कन्या राशि में आने पर पितृ पक्ष लगता है, इसलिए इसे कनागत भी कहा जाता है। तीन पीढ़ी के पूर्वज ही देवतुल्य स्थिति में माने जाते हैं, इसलिए श्राद्ध तीन पीढ़ियों तक ही किया जाता है। इनमें पिता, पितामह, प्रपितामह और माता, मातामह, प्रमातामह आते हैं। शास्त्रों में पिता को वसु के समान, दादा को रुद्र के समान और परदादा को आदित्य के समान माना गया है। शास्त्रों में अर्यमा की स्तुति में कहा गया है—

ॐ अर्यमा न त्रिप्य्ताम इदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नम।

ॐ मृत्योर्मा अमृतं गमय।।

अर्थात पितरों में अर्यमा श्रेष्ठ हैं। अर्यमा पितरों के देव हैं। अर्यमा को प्रणाम। हे! पिता, पितामह और प्रपितामह। हे! माता, मातामह और प्रमातामह आपको भी बारंबार प्रणाम। आप हमें मृत्यु से अमृत की ओर ले चलें।

अश्वनी कुमार

इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

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