Navratri 2024 Kalash Sthapana: आज चित्रा नक्षत्र में न करें कलश स्थापना, हर हाल में इस समय से पहले करें घटस्थापना
कलश स्थापना के साथ गुरुवार से शारदीय नवरात्रि का अनुष्ठान शुरू हो जाएगा। देवी मंत्रों के आह्वान के बीच श्रद्धालु गुरुवार सुबह से आदिशक्ति मां दुर्गा की आराधना में लीन हो जाएंगे।
Kalash Sthapana kab karein: कलश स्थापना के साथ गुरुवार से शारदीय नवरात्रि का अनुष्ठान शुरू हो जाएगा। देवी मंत्रों के आह्वान के बीच श्रद्धालु गुरुवार सुबह से आदिशक्ति मां दुर्गा की आराधना में लीन हो जाएंगे।
कलश स्थापना का मुहूर्त सुबह 6.15 मिनट से 7.22 बजे तक रहेगा। अभिजीत मुहूर्त सुबह 11.46 बजे से दोपहर 12.33 मिनट तक रहेगा। वैसे दोपहर 3.17 बजे तक कलश की स्थापना की जा सकेगी। ज्योतिषाचार्य पीके युग बताते हैं कि गुरुवार को हस्त नक्षत्र दिन में 3.17 मिनट तक रहेगा। इसके बाद चित्रा नक्षत्र शुरू हो जाएगा। शास्त्रत्तें में चित्रा नक्षत्र में कलश स्थापना नहीं करने की हिदायत है। ज्योतिर्विद पंडित दिवाकर त्रिपाठी के अनुसार चित्रा नक्षत्र नक्षत्रों के क्रमांक में 14वां नक्षत्र माना जाता है। चित्रा नक्षत्र के स्वामी मंगल होते हैं।मंगल साहस, ऊर्जा, महत्वाकांक्षा, उग्रता का प्रतीक ग्रह माना जाता है। ऐसी स्थिति में चित्रा नक्षत्र में कलश स्थापना करने से मन में एकाग्रता की कमी हो जाएगी। इस कारण से चित्रा नक्षत्र में कलश स्थापना करने से बचना चाहिए। यद्यपि की चित्रा नक्षत्र के अंतर्गत दो राशियां कन्या और तुला आती है । जिसमे कन्या के स्वामी ग्रह बुध होते हैं। तुला के स्वामी ग्रह शुक्र होते हैं। दोनों ही ग्रहण का मंगल के साथ मित्रता का संबंध नहीं होता है। इस कारण से चित्रा नक्षत्र में कलश स्थापना करने से बचना चाहिएम क्योंकि नवरात्रि के पूजन के समय मन में एकाग्रता शांति का भाव आना अति आवश्यक है। जो की मंगल के नक्षत्र में हो पाना कम संभव है।
इसलिए श्रद्धालु सुबह से दोपहर 3.17 तक कलश स्थापना कर मां भगवती के नौ दिवसीय पूजन की शुरुआत करेंगे। हर हालत में इस समय के बाद कलश स्थापना नहीं करनी है। इस वर्ष शारदीय नवरात्र 3 अक्टूबर गुरुवार से शुरू होकर 11 अक्टूबर को समाप्त होगा। 12 अक्टूबर को विजयादशमी होगी। इस वर्ष मां की विदाई मुर्गे पर हो रही है। मां का आगमन और प्रस्थान दोनों ही अशुभ है।
पं. प्रेमसागर पांडेय बताते हैं कि इस बार सप्तमी मिश्रित अष्टमी होने के कारण श्रद्धालु अष्टमी का व्रत 10 अक्टूबर को नहीं करेंगे। माना जाता है कि सप्तमी मिश्रित अष्टमी व्रत शुभ नहीं होता है। अष्टमी व्रत करने वाले श्रद्धालुओं के लिए 11 अक्टूबर को अष्टमी मिश्रित नवमी का व्रत करना शुभकारक होगा। अष्टमी तिथि 11 अक्टूबर को सुबह 6.28 बजे तक है। नवमी तिथि प्रारंभ हो जाएगा। नवमी तिथि 12 अकटूबर सुबह 5.47 बजे तक रहेगा।
गुरुवार को सुबह में कलश स्थापना के पहले श्रद्धालु मिट्टी की वेदी बनाकर उसमें जौ और गेहूं मिलाकर बोएंगे। पं. प्रेमसागर पांडेय बताते हैं कि जिनके घरों में कलश स्थापना नहीं हो रही है वे लोग भी दुर्गा सप्तशती का पाठ, सिद्ध कुंजिका स्रोत और दुर्गा चालीसा का पाठ कर मां के आशीर्वाद प्राप्त कर सकते है।
11 सुबह से शाम तक हवन इस वर्ष 11 अक्टूबर को सुबह 6.28 बजे से 12 अक्टूबर सूर्योदय के पहले तक हवन का मुहूर्त बन रहा है।
इन रूपों की होगी आराधना
3 अक्टूबर प्रथम-मां शैलपुत्री की पूजा
4 अक्टूबर द्वितीय-मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
5 अक्टूबर तृतीय-मां चंद्रघंटा की पूजा
6 अक्टूबर चतुर्थ-मां कुष्मांडा की पूजा
7 अक्टूबर पंचम-मां स्कंदमाता की पूजा
8 अक्टूब षष्ठी-मां कात्यायनी की पूजा
9 अक्टूबर सप्तमी-मां कालरात्रि की पूजा
10 अक्टूबर अष्टमी-मां महागौरी
11 अक्टूबर नवमी-मां सिद्धिदात्री
इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।
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